सम्पादकीय

कबीर की उलटबासी के सहारे ही हम मौजूदा विरोधाभास विसंगतियों को समझ सकते हैं

Rani Sahu
28 Sep 2021 1:04 PM GMT
कबीर की उलटबासी के सहारे ही हम मौजूदा विरोधाभास विसंगतियों को समझ सकते हैं
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बिमल पटेल, सेंट्रल विस्टा के आर्किटेक्ट हैं। नए संसद भवन के साथ ही उन्हें काशी विश्वनाथ मंदिर के गलियारों को दुरुस्त करने का काम भी दिया

जयप्रकाश चौकसे। बिमल पटेल, सेंट्रल विस्टा के आर्किटेक्ट हैं। नए संसद भवन के साथ ही उन्हें काशी विश्वनाथ मंदिर के गलियारों को दुरुस्त करने का काम भी दिया गया है। गौरतलब है कि बनारस के कायाकल्प में कुछ गलियां हटाकर रास्तों को चौड़ा किया जा रहा है। इधर संसद का पुराना भवन अंग्रेजों ने अपने शासन काल में बनाया था और इतने समय बाद भी वह जस का तस मौजूद है। वह भवन कितना ही मजबूत और सुविधाजनक क्यों ना हो परंतु वह हमें गुलामी के दिनों की याद दिलाता है।

इसी विचार को आगे ले जाएं तो वृक्ष विहीन जंगल, सूखी नदियां और प्रदूषित फिजाएं ही हमारी अपनी हैं। बिमल पटेल ने पहले दिए गए बयान को बदला है। पटेल साहब पहले रेडीकल परिवर्तन की बात कर रहे थे कि नए डिजाइन में सब कुछ मौलिक और नया है। बाद में उन्होंने संतुलन की बात कही कि पहले बनी इमारतों की अगली कड़ी के रूप में नए भवन बनेंगे। बातचीत की यह शैली विगत कुछ वर्षों से हर क्षेत्र में देखी जा रही है। अंग्रेजों ने पर्वत पर संसद भवन बनाए।
रूपक यह है कि हम हुकूमत कर रहे हैं और गुलाम नीचे नगर में रहें। सेंट्रल विस्टा आकलन में इसे पलट दिया जाएगा। अवाम ऊपरी सतह पर रहेगा और शासक नीचे नगर में रहेंगे, गोया कि निचली सतह से ऊपरी सतह को शासित किया जाएगा। कबीर की उलटबासी के सहारे ही हम मौजूदा विरोधाभास विसंगतियों को समझ सकते हैं। आयन रैंड द्वारा लिखे उपन्यास 'फाउंटेनहेड' का नायक अमेरिका के वास्तु शास्त्र में परिवर्तन लाता है।
वह सजावटी वस्तुओं को हटाकर सीधी गगनचुंबी इमारतें गढ़कर अमेरिका को आधुनिकता का स्वरूप देना चाहता है। अमेरिका में जमीन की कमी नहीं है। वहां गगनचुंबी इमारतों की जगह सुविधाजनक बंगले बनाए जा सकते थे। मुंबई तो तीन तरफ समुद्र से घिरा है इसलिए गगनचुंबी इमारतें बनाना आवश्यक रहा है। ज्ञातव्य है कि फिल्म 'शोले' के निर्माता जीपी सिप्पी ने मुंबई में अपना करियर ऊंची इमारतों के ठेकेदार के रूप में प्रारंभ किया था।
इमारतों के निर्माण से धन कमा कर वे फिल्म निर्माण में आए थे। 'फाउंटेनहेड' किताब में एक निहायत गैर प्रजातांत्रिक बात कही गई है कि दो तरह के कानून होने चाहिए। प्रतिभाशाली लोगों के लिए अलग और आम आदमी के लिए अलग दंड विधान होना चाहिए। इसी तरह जॉन इरविंग का उपन्यास 'द वर्ल्ड अकॉर्डिंग टू कॉर्प' के बारे में विचार बदला है।
बहरहाल, एक पाठक का भी क्रमिक विकास होता है परंतु कुछ लेखकों और कवियों के प्रति सम्मान समय के साथ बढ़ता जाता है, जैसे मुंशी प्रेमचंद, रवींद्रनाथ टैगोर, राजेंद्र सिंह बेदी, सआदत हसन मंटो, ख्वाजा अहमद अब्बास, हरिशंकर परसाई, कुमार अंबुज और पत्रकार राजेंद्र माथुर। कुछ फिल्मकारों की फिल्में भी प्रिय लगती रही हैं, जैसे राज कपूर, गुरु दत्त, बिमल रॉय और अमिया चक्रवर्ती।
सत्यजीत रॉय अपनी श्रेणी में कंचनजंघा की तरह रहे हैं। फिल्मकार राजकुमार हिरानी भी प्रिय बने रहे हैं। संगीतकार शंकर जयकिशन और सचिन देव बर्मन तो जीवन रागनी में 'स्थाई' की तरह हैं। इसी तरह शैलेंद्र, हसरत जयपुरी, जोश मलीहाबादी, जानिसार अख्तर, जावेद अख्तर भी गुनगुनाए जाते रहेंगे।
ऐतिहासिक इमारतों पर की गई बात अधूरी रह जाती है अगर हम आर्किटेक्ट ईसा आफंदी, शाहजहां और ताजमहल की बात ना करें तो। दिल्ली में लाल किला आज भी जस का तस रहा है। हर प्रधानमंत्री ने लाल किले से भाषण दिया है। इस लेख की कुछ सामग्री पत्रकार मीनल बघेल द्वारा बिमल पटेल से लिए गए साक्षात्कार से ली गई है, धन्यवाद।


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