सम्पादकीय

आतंकवाद पर सिर्फ संबोधन

Rani Sahu
26 Sep 2021 7:01 PM GMT
आतंकवाद पर सिर्फ संबोधन
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पाकिस्तान आतंकवाद की पनाहगाह है। आतंकी वहां खुलेआम घूमते हैं

पाकिस्तान आतंकवाद की पनाहगाह है। आतंकी वहां खुलेआम घूमते हैं। आतंकवाद को 'राजनीतिक औजारÓ के तौर पर इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। आतंकवाद पर देश भी सचेत रहें, क्योंकि आतंकवाद उनके लिए भी बड़ा खतरा साबित हो सकता है। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि किसी भी देश की (मौजूदा संदर्भ अफगानिस्तान) सरज़मीं आतंक फैलाने और किसी अन्य देश पर आतंकी हमले के लिए इस्तेमाल न की जाए। दुनिया में चरमपंथ, कट्टरपंथ फैलता जा रहा है। समंदर किसी की बपौती नहीं, सभी देशों की साझा विरासत है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार की जीवन-रेखा है। उसका इस्तेमाल करें, दुरुपयोग न करें। विस्तारवाद पर लगाम लगनी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र महासभा और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारतीय प्रधानमंत्री का संबोधन कमोबेश यही रहता है। प्रधानमंत्री मोदी संयुक्त राष्ट्र महासभा के मंच से चार बार दुनिया के देशों को संबोधित कर चुके हैं। दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से प्रधानमंत्री मोदी तक के अंतरराष्ट्रीय संबोधनों का विश्लेषण करें, तो शाब्दिक सारांश होगा-पाकिस्तान और आतंकवाद। कुछ गलत भी नहीं है, क्योंकि भारत बीते तीन दशकों से अधिक समय से आतंकवाद का शिकार रहा है।

पाकिस्तान ने सीमापार से आतंकियों की आपूर्ति लगातार जारी रखी है। करीब 60,000 नागरिक और सैन्य बलों के जवान हताहत हो चुके हैं। 'ज़मीनी जन्नत' का नूर विद्रूप होता रहा है। संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर के नाम पर आज भी दुष्प्रचार फैलाया जाता है। इसमें पाकिस्तान और चीन के अलावा, कुछ और भारत-विरोधी देश भी शामिल हैं। लब्बोलुआब यह है कि आतंकवाद से पूरी दुनिया चिंतित है। अमरीका, यूरोप, रूस, चीन और अरब देशों में, अलग-अलग रूपों में, आतंकवाद के 'प्रॉक्सी वार' भी जारी हैं, लेकिन आतंकवाद पर कोई साझा, सामूहिक और संगठनात्मक कार्रवाई आज तक नहीं की जा सकी है। क्या यूएनओ भी जवाब दे सकता है? क्या कुछ देशों की 'वीटो पॉवर' शेष दुनिया से भी महत्त्वपूर्ण और ताकतवर हो सकती है? क्या 'वीटो' को नए सिरे से परिभाषित करने की ज़रूरत नहीं है? लिहाजा प्रधानमंत्री मोदी ने आतंकवाद, विस्तारवाद के साथ-साथ यूएनओ के ढांचे में सुधार, विस्तार और बदलाव की जो बात उठाई है, वह बेहद गौरतलब है। भारत के अलावा जर्मनी, जापान, ब्राजील और साउथ अफ्रीका ने भी यही मांग की है, तो यूएनओ और सुरक्षा परिषद के स्तर पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस बार भी बड़े प्रखर अंदाज़ में आतंकवाद पर अपना पक्ष रखा और दुनिया को सोचने पर बाध्य किया है। जाहिर है कि उनके भाषण को यूएनओ महासभा के रिकॉर्ड में दर्ज कर लिया गया है। क्या यूएनओ की क्रिया-प्रणाली और उसके दायित्व सिर्फ इतने ही हैं? अमरीकी राष्ट्रपति बाइडेन समेत दुनिया के बड़े देशों के नेताओं ने भी आतंकवाद का मुद्दा गंभीरता से उठाया और उस पर मंथन का आग्रह भी किया है। हम पहले भी कई बार आतंकवाद की अधिकृत परिभाषा का सवाल उठा चुके हैं। यकीनन तालिबानी अफगानिस्तान शेष विश्व की नई चिंता है। वहां ऐसे आतंकवादी कैबिनेट में शामिल किए गए हैं, जिन्हें यूएनओ और सुरक्षा परिषद समेत कुछ बड़े देशों ने प्रतिबंधित घोषित कर रखा है। उन पर करोड़ो के इनाम भी हैं। वे सरेआम सक्रिय हैं। उन्हें न तो मारा जा सका है और न ही गिरफ्तार करके दंडित किया जा सका है। फिर यूएनओ महासभा में आतंकवाद पर चिंताएं जताने के मायने क्या हैं? क्या विवशता है कि यूएनओ आज तक भी आतंकवाद की सर्वसम्मत परिभाषा पर विचार नहीं कर सका है, निश्चित करने की बात तो बहुत दूर की है। प्रधानमंत्री मोदी ने यूएनओ और विश्व स्वास्थ्य संगठन पर सवाल उठाकर एक व्यापक बहस की शुरुआत कर दी है कि यदि इन अंतरराष्ट्रीय संगठनों की निरंतरता रखनी है, तो उन्हें विश्वसनीय बनना होगा। यदि यूएनओ गंभीरता से महासभा में उठाए गए सवालों पर कोई पहल नहीं करता है, तो 193 सदस्य-देशों को पुनर्विचार करना होगा कि यूएनओ में क्या बदलाव किए जाएं।

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