सम्पादकीय

सिर्फ स्थान और पात्र अलग

Gulabi
16 Sep 2021 5:42 AM GMT
सिर्फ स्थान और पात्र अलग
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2019 में भारत में बलात्कार के करीब 32 हजार मामले दर्ज हुए

2019 में भारत में बलात्कार के करीब 32 हजार मामले दर्ज हुए। जानकार कहते हैं कि रेप के मामलों के वास्तविक आंकड़े शिकायत में दर्ज मामलों से बहुत ज्यादा हैं। तो अब विचारणीय यह है कि घटना विशेष के बाद जो हाय-तौबा मचती है, आखिर उसका महत्त्व या प्रासंगिकता क्या है?

घटना वैसी ही है। समस्या वही पुरानी है, जिसकी जड़ें हमारी संस्कृति में कहीं छिपी हैं। कानून-व्यवस्था की एजेंसियों की नाकामी भी उसी तरह की है। लेकिन असल बात यह है कि यह मामला पुलिस की क्षमता से बाहर का ही है। यह सच है कि पुलिस तो आखिर सबको हर जगह सुरक्षा नहीं दे सकती। अगर लोगों के दिमाग में महिला को लेकर एक खास तरह की सोच है और अगर महिला दलित-पिछड़ी जाति की हो, तो वह सोच और भी उभर कर सामने आ जाती हो, तो ऐसे मसले का हल व्यापाक सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्य के भीतर ही ढूंढा जा सकता है। ताजा घटना यह है कि मुंबई में एक दलित महिला की रेप के दौरान आई चोटों के कारण मौत हो गई। इस घटना की साल 2012 में दिल्ली में हुए बर्बर गैंगरेप से तुलना की गई है। इसकी वजह स्थानीय अधिकारियों की ओर से दी गई जानकारियां हैं। इस मामले में भी रेप के दौरान महिला की योनि में एक लोहे की छड़ घुसाई गई। महिला एक मिनी बस में बेहोश पाई गई और इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।
पुलिस की ओर से इस मामले में एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है, जिसने अपराध कबूल लिया है। इस तरह पुलिस ने एक हद तक अपना काम कर लिया है। अगर वह उसका जुर्म अदालत में साबित करने में सफल रही, तो आपराधिक न्याय व्यवस्था भी अपनी जिम्मेदारी निभा देगी। लेकिन उससे ऐसी घटनाएं नहीं रुकेंगी। कुछ रोज में फिर कहीं, किसी और के साथ ऐसी घटना होगी। यहां ये उल्लेखनीय है कि भारत में रेप को लेकर कानून बहुत कड़े हैं। ऐसे अपराध में मौत की सजा तक का प्रावधान है। ये दीगर बात है कि कड़े कानून के बावजूद यहां रेप की घटनाएं कम नहीं हुई हैँ। राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के मुताबिक साल 2019 में भारत में बलात्कार के करीब 32 हजार मामले दर्ज हुए। जानकार कहते हैं कि रेप के मामलों के वास्तविक आंकड़े शिकायत में दर्ज मामलों से बहुत ज्यादा हैं। डर और शर्म के चलते अब भी कई महिलाएं इन अपराधों की शिकायत नहीं करतीं। कई मामलों में तो पुलिस की ओर से ही रिपोर्ट नहीं लिखी जाती। तो अब विचारणीय यह है कि घटना विशेष के बाद जो हाय-तौबा मचती है, आखिर उसका महत्त्व या प्रासंगिकता क्या है?
क्रेडिट बाय नया इंडिया
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