सम्पादकीय

बस प्रभु! वही सब ऐज यूजुअल!

Rani Sahu
27 Jun 2023 6:58 PM GMT
बस प्रभु! वही सब ऐज यूजुअल!
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आस्था की फील्ड के दो तरह के भक्त होते हैं। एक वे जिनके कंट्रोल में भगवान होते हैं और दूसरे वे जो भगवान के कंट्रोल में होते हैं। एक वे जिनके इंतजार में भगवान पलक पांवड़े बिछाए बैठे होते हैं तो दूसरे वे जो अपने प्रभु के दर्शन की संशोधित रेट लिस्ट की परवाह किए बिना हाथ में वही आस्था के बीस रुपए और पचासियों बार चढ़ चुका सूखा नारियल लिए घंटों लाइन में एक दूसरे की आस्था को आगे पीछे ठेलते रहते हैं। पहले प्रभु के दर्शन के लिए एक दूसरे की बदतमीजी पूरी आस्था से झेलते रहते हैं। मैं इसी टाइप का भक्त हूं। कल फिर जब भगवान को उन्होंने कुछ देर के लिए अपने से मुक्त किया तो उनका फोन आ गया, ‘और दूसरे दर्जे के भक्त! क्या चल रहा है?’ उनका फोन आते ही मैं भाव विभोर हो उठा। उल्लू से मोर हो उठा। लगा, गैस सिलेंडर सौ रुपए का हो गया हो ! पेट्रोल मिट्टी का तेल हो गया हो! ‘चलना क्या प्रभु! बस, आपकी कद्रदानी है। दूध के भाव मजे से बिक रहा पानी है। व्यवस्था में जिसे देखो वही धोखे, भय, भ्रष्टाचार और नौकरशाही के खिलाफ लड़ रहा है। बावजूद इस लड़ाई के धोखे, भय, भ्रष्टाचार नौकरशाही का ग्राफ दिन दुगना रात चौगुणा ऊपर चढ़ रहा है। कानून की नाक तले फर्जी पासपोर्ट मजे से बन रहे हैं, फर्जी कोर्ट मजे से चल रहे हैं। गुरुदेव अपना रिजल्ट बेहतर दिखाने को बच्चों को परीक्षा में नकल करवा रहे हैं। कंपिटिशनों के पेपर लीक हो रहे हैं। नैतिक मूल्य आलुओं से भी चीप हो रहे हैं। …मेरे जैसे शरीफ रोगियों को शैतान मानने वाले समर्पित डॉक्टर साहब मेरे जैसे कुत्तों को अपनी कुशल ट्रीटमेंट कला से मृत्यु लोक से भवसागर पार उतार रहे हैं, पर आप तो अंतरयामी हैं प्रभु! हर तबके के सुख दुख जाननहार हैं, ऐसे में मेरे समय के सच मुझसे ही पूछ मुझे क्यों शर्मिंदा करते हो?’ ‘इसलिए कि मैं अपने देखे सचों पर विश्वसनीयता की मोहर लगाना चाहता हूं। गरीब सब कुछ बोलता है, पर झूठ नहीं बोलता। वह किसी से डरे या न, पर मुझसे जरूर डरता है।’ मैं भी किसी के लिए विश्वसनीय हूं, यह पता चलते ही मैं बाग बाग हुआ। वर्ना घरवालों को तो छोड़ो, अब तो मुझे मुझ पर से भी विश्वास उठ गया है। कई बार लगता है जैसे मैं अपने से भी सच नहीं कह पा रहा हूं।
अपने से भी बच नहीं पा रहा हूं। ‘बस प्रभु! वैसा ही प्री सावन फिर से आ गया है। व्यवस्था की सफाई व्यवस्था की पोल वेश्या के घाघरे की तरह खुल रही है। शहर की सारी नालियां बंद हो गई हैं। कूड़ा सडक़ों पर हिलोरे मार रहा है। लोक निर्माण विभाग वालों की पोल खुल रही है। नदी अपना रास्ता छोड़ पब्लिक हो सडक़ पर मचलती हुई चल रही है। ठेकेदार नालियों की सफाई के लिए टेंडर वाले साहब का दफ्तर खंगाल रहा है। नालियों का पानी जनता के घरों में दिन दहाड़े चोरों की तरह घुस रहा है। मानसून से लडऩे की सरकार की चाक चौबंद घोषणा पर से जनता का विश्वास एक बार फिर उठ रहा है। जितनी बार भी जनता सरकार की बातों पर विश्वास करती है, हर बार सरकार का विश्वास औंधे मुंह गिरता है। उसके बाद भी सरकार की चाक चौबंद व्यवस्था पर विश्वास करने के सिवाय जनता के पास और कोई विकल्प नहीं। सावन महीने में प्रभु के दर्शनों की नई रेट लिस्ट आ गई है। प्रभु के सुगम दर्शन सामान्य दिनों में अब चार सौ से पांच हो गए हैं और सोमवार को पांच सौ से बढक़र सात सौ पचास। जो मंगला आरती पहले सामान्य दिनों में एक हजार में होती थी, अब वह बारह सौ की हो गई है। और सोमवार को दो हजार की। जिस रुद्राभिषेक का रेट पहले सामान्य दिनों में एक शास्त्री एक हजार था अब पंद्रह सौ हो गया है। और सोमवार को पंद्रह सौ से बढक़र सीधा दो हजार। एक संन्यासी भोग जो पहले सामान्य दिनों में एक हजार रुपए था अब वह सावन के सामान्य दिनों में एक हजार से बढक़र दो हजार हो गया है और सोमवार को दो हजार से बढक़र तीन हजार। सावन सिंगार तो आप जैसे किस्मत वाले ही कर सकते हैं प्रभु अब।’
अशोक गौतम
By: divyahimachal
Rani Sahu

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