सम्पादकीय

दिल्ली में कोरोना कंट्रोल के नाम पर केवल राजनीति, थर्ड वेव की तैयारी कब शुरू होगी?

Gulabi
15 May 2021 12:50 PM GMT
दिल्ली में कोरोना कंट्रोल के नाम पर केवल राजनीति, थर्ड वेव की तैयारी कब शुरू होगी?
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देश की राजधानी दिल्ली में प्रदूषण के कारण जहरीली हवा में साँस लेना वैसे आम दिनों में भी मुश्किल होता है

अजय झा। देश की राजधानी दिल्ली में प्रदूषण के कारण जहरीली हवा में साँस लेना वैसे आम दिनों में भी मुश्किल होता है, पर पिछले एक पखवाड़े में महानगर में जो नज़ारा दिखा ऐसा शायद ही पहले कभी किसी सुना या देखा होगा. हजारों लोग कोरोना महामारी के संक्रमण और लॉकडाउन के बीच शहर के एक कोने से दूसरे कोने तक ऑक्सीजन की तलाश में भटकते दिखे. सरकारी हो या प्राइवेट, लगभग सभी अस्पतालों में मरीजों की भर्ती इसलिए नहीं हो पा रही थी कि उनके पास या तो समुचित संख्या में बेड नहीं था, या अगर बेड था तो पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं थी. जहाँ कुछ समाजसेवी संस्थाओं ने मरीजों के लिए ऑक्सीजन का लंगर तक लगा डाला, वही अमानवीयता का दूसरा रूप भी दिखा, ऑक्सीजन की सरेआम कालाबाजारी हो रही थी, लोग मारे मारे फिर रहे थे और सरकारें बेबस दिख रही थीं.


पिछले साल कोरोना महामारी फैलने के बाद एक खबर सुर्ख़ियों में छा गयी थी कि कैसे एक लड़की दिल्ली से सटे गुरुग्राम शहर से अपने बीमार बाप को साइकिल से अपने बिहार राज्य के गाँव तक ले गयी थी. और इस बार एक उल्टा नज़ारा दिखा. झारखण्ड के औद्योगिक शहर बोकारो से एक व्यक्ति कार में ऑक्सीजन सिलिंडर ले कर दिल्ली से जुड़े गाजियाबाद जिले के अंतर्गत आने वाले इंदिरापुरम तक अपने एक दोस्त की जान बचने आ गया. भले ही इंदिरापुरम उत्तर प्रदेश का हिस्सा हो, पर दिल्ली से जुड़े अन्य राज्यों के जितने भी शहर हैं उनपर दिल्ली की स्थिति का सीधा असर पड़ता था. जाहिर सी बात है कि उत्तर प्रदेश और हरियाणा के दिल्ली से सटे शहरों में भी ऑक्सीजन की कमी के कारण तबाही मची हुयी थी.देश के दूसरे राज्यों में भी ऑक्सीजन की किल्लत देखी गयी, पर दिल्ली में स्थिति शायद सबसे भयावह थी.

ऑक्सीजन की कमी से दिल्ली में लोगों की हो रही थी मृत्यु
जब तक दिल्ली में ऑक्सीजन की सप्लाई सुचारु रूप से हो पाती, शहर के दो अस्पतालों में 23 लोगों के मृत्यु हो चुकी थी, कोरोना से नहीं बल्कि ऑक्सीजन की कमी के कारण. बेबसी का आलम यह था कि बौखलाहट में दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार और केंद्र में नरेन्द्र मोदी सरकार एक दूसरे पर आरोप लगाते दिखे. जब तक ऑक्सीजन की सुचारु सप्लाई मुहैय्या हो पायी, तब तक कोरोना अपने चरम पर पहुँच चुका था और उसका कहर अब दिन प्रतिदिन कम होने लगा है. कुदरत का नियम है कि चाहे वह कोई पदार्थ हो या बीमारी, जिस रफ़्तार से वह ऊपर जाता है उसी रफ़्तार से वह नीचे भी आता है. दिल्ली में पिछले दो-तीन दिनों में कोरोना संक्रमण की संख्या में कमी दिखने लगी है. सरकारी तंत्र के प्रयत्न के कारण नहीं बल्कि कुदरत के नियम के कारण. पॉजिविटी रेट जो एक पखवाड़े पहले 35 प्रतिशत था वृहस्पतिवार को घट कर 14 प्रतिशत पर आ गया था और शुक्रवार को इसमें और भी गिरावट आई. अब यह 12.40 प्रतिशत पर आ चुका था. उम्मीद की जानी चाहिए की आने वाले कुछ दिनों में स्थिति एक बार फिर से सामान्य के तरफ बढ़ती दिखेगी.

अब दिल्ली के पास पर्याप्त ऑक्सीजन
कोरोना का कहर तो कम हो जाएगा, पर अभी विवादों और आरोप-प्रात्यारोप का सिलसिला जारी रहेगा.शुरू में दिल्ली सरकार ने केंद्र पर भेदभाव का आरोप लगाया और केंद्र सरकार का कहना था कि पिछले साल आये कोरोना के पहले दौर के बाद दिल्ली को ऑक्सीजन संयंत्र लगाने के लिए जो पैसा दिया गया था, उसका इतेमाल ही नहीं हुआ, सिर्फ एक ही ऑक्सीजन संयंत्र लगाया गया. चूंकि अब स्थिति सुधरती दिख रही है,दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने वृहस्पतिवार को ऐलान किया कि अब दिल्ली को अब ऑक्सीजन के उसे पूरे कोटे की जरूरत नहीं है. बड़ी जद्दोजहद के बाद दिल्ली को प्रतिदिन 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का कोटा फिक्स किया गया था. सिसोदिया के अनुसार अब दिल्ली की जरूरत सिर्फ 582 मीट्रिक टन की रह गयी है.दिल्लीके उपमुख्यमंत्री ने कहा कि उन्होंने केंद्र से आग्रह किया है कि दिल्ली के कोटे का अरिरिक्त ऑक्सीजन उन राज्यों को दिया जाए जिन्हें इसकी ज्यादा जरूरत है. सिसोदिया ने जहां केंद्र सरकार, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट का इसके लिए धन्यवाद व्यक्त किया, वह यह कहने से नहीं चूके कि दिल्ली को उसके कोटे का पूर्ण 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन सिर्फ दिन ही मिला था.

बीजेपी के प्रवक्ता संबित पात्रा ने इसका पलट कर जवाब दिया कि दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी कभी नहीं थी बल्कि ख़राब हालात दिल्ली सरकार की कुव्यवस्था का नतीजा था. बीजेपी के प्रवक्ता ने आरोप लगाया कि दिल्ली में ऑक्सीजन भण्डारण की व्यवस्था ही नहीं है. पात्रा ने एक उदाहरण दे कर शुक्रवार को बताया कि 9 मई को फरीदाबाद से उसके कोटे से 120 मीट्रिक टन ऑक्सीजन भेजा गया जिसमे से दिल्ली ने 74 मीट्रिक टन ऑक्सीजन लेने से मना कर दिया, क्योकि दिल्ली के पास ऑक्सीजन भण्डारण की समुचित व्यवस्था नहीं थी.

2022 के एमसीडी चुनाव में बीजेपी-आप में रहेगी लड़ाई
राजनीति आपदा के समय में भी नहीं थमती, यह एक कटु सत्य है. दिल्ली में बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच गर्मी अभी बढ़ेगी ही – कारण है अप्रैल 2022 में होने वाला दिल्ली का स्थानीय निकाय चुनाव. दिल्ली नगर निगम (MCD) पर बीजेपी का 2007 से लगातार कब्ज़ा है. दिल्ली के मतदाता भी अनोखे हैं. लोकसभा और MCD के चुनाव में वह बीजेपी को वोट देते हैं और विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को. 2014 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सभी सातों सीटों पर बीजेपी के खाते में गयी थीं पर 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप की एकतरफा जीत हुई. 2017 के MCD चुनाव में एक बार फिर से बीजेपी ने जीत दर्ज की. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी दिल्ली की सातों सीटें एक बार फिर से जीती और 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप की फिर से एकतरफा जीत हुयी.

आम आदमी पार्टी और बीजेपी दोनों की नजरें अब MCD चुनाव पर हैं, लिहाजा कोरोना हो या कुछ भी, राजनीतिक सरगर्मी अभी बढ़ेगी ही. पर कहीं ना कहीं लगता है कि जैसे करोना महामारी के दूसरे दौर के लिए भारत तैयार नहीं था, वर्ना स्थिति इतनी भयावह नहीं होती, दिल्ली भी इसका अपवाद नहीं था. दिल्ली की आप सरकार ने अपने पहले पांच वर्षों में दिल्ली की शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था में अतुल्य सुधर के नाम पर वोट माँगा था, और जनता ने इसे सराहा भी. पर कोरोना महामारी ने अब इस दावे पर बड़ा सवालिया निशान लगा दिया है. क्या दिल्ली सरकार यह मान कर बैठी थी कि कोरोना खत्म होने वाला है या फिर उनकी सोच यह थी कि दिल्ली के निवासियों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है? संभव है कि स्थिति की गंभीरता का सही आंकलन नहीं किया गया, जिसके कारण हालत बेकाबू होता दिखा और लोग ऑक्सीजन के लिए त्राहि त्राहि करते दिखे.

करोना का प्रकोप अभी कम होना शुरू हुआ है, कोरोना अभी ख़त्म नहीं हुआ है. राजनीति और चुनाव लगा ही रहता है पर जनता की जान सबसे महत्वपूर्ण है. MCD चुनावों के मद्देनजर आप और बीजेपी में आरोप-प्रत्यारोप चलता रहे, इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होना चाहिए, पर दोनों दलों को याद रहे कि सत्ता जनता की सेवा के लिए होती है. कोरोना पर जीत तब ही संभव है जब अभी से इसके तीसरे और चौथे संभावित दौर के लिए हर एक तरह की तैयारी कर के रखी जाए, ताकि भविष्य में ऑक्सीजन, दवाई और अस्पताल में बेड की कमी के कारण एक भी जान ना जाए.


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