- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- युद्ध के गर्भ से बाहर...
x
पिकासो नाम का यह अब तक हो चुका विश्वविख्यात चित्रकार अपने अक्खड़ और रूखे स्वभाव के लिए जाना जाने लगा था
मैं आपसे एक नये जन्मदिन के बारे में बात करने जा रहा हूँ. तारीख 3 जून और वर्ष 1937. 85 साल पहले के इस दिन का संबंध गुएर्निका से है. निश्चित रूप से आप यह जानने को उत्सुक होंगे कि यह गुएर्निका नामक शख्स है कौन. तो मैं स्पष्ट कर दूं कि यह कोई शख्स-वख्श नहीं है. तो फिर यह है कौन?
गुएर्निका यूरोप के देश स्पेन का एक गांव था. तो क्या इस गांव की विधिवत स्थापना 3 जून को हुई थी? जी नहीं, ऐसा भी नहीं है. तो आइये जानते है कि फिर यह माजरा है क्या. 26 अप्रैल 1937 के दिन के अभी साढे-चार बजे थे. सात-आठ हजार की आबादी वाले स्पेन के इस गांव के साप्ताहिक हाट में लोग निश्चित होकर खरीददारी करने में मग्न थे. कि अचानक देखते हैं कि आसमान में 52 जुंकर विमानों का काफिला गिद्धों की तरह चिंघाड मारता हुआ मंडरा रहा है. आसमान से भयानक बमबारी होने लगी. इससे पहले कि लोग कुछ संभल पाते, बम से उठते शोलों में वे जल-भून गये. रात के आठ बजते-बजते कुछ घंटों पहले चहक रहा यह गांव गुएर्निका श्मशान में तब्दील हो गया था.
यह द्वितीय विश्व युद्ध का दौर था. और इस काले कारनामे को अंजाम दिया था- जर्मनी के तानाशाह हिटलर की नाजी सेना ने. एक मई के सांध्य दैनिक में छपी इस खबर पर जब पेरिस में रह रहे स्पेन के चित्रकार पाब्लो पिकासो की नजर पड़ी, तो वह छटपटा उठा. उसकी आत्मा कराह उठी. ठीक है कि गुएर्निका इसका अपना गांव नहीं था. उसने तो मालागा में जन्म लिया था. लेकिन यह उसके देश का गांव तो था.
सवाल था कि वह कैसे अपनी आत्मा की इस छटपटाहट और कराह से मुक्ति पाये. वह सोचता रहा, सोचता रहा, और 9 मई 1937 को उसके दिमाग में वह तस्वीर साफतौर पर बन चुकी थी, जिसे वह बनाने जा रहा था. अपने स्टूडियो की दीवार पर पिकासो ने साढ़े तीन मीटर से केवल एक सेन्टीमीटर कम चौड़ा और पौने आठ मीटर से दो सेन्टीमीटर अधिक लम्बा कैनवास लगा दिया. इस कैनवास पर वह सीढी पर चढ़कर चित्र बनाने वाला था. इस चित्र का नाम उसने पहले से ही सोच लिया था – गुएर्निका.
पिकासो नाम का यह अब तक हो चुका विश्वविख्यात चित्रकार अपने अक्खड़ और रूखे स्वभाव के लिए जाना जाने लगा था. किसी की क्या मजाल कि उसके स्टूडियो में कोई पैर भी रख सके. लेकिन अपनी अब तक की इस कठोर आदत के विपरीत पिकासो ने अपने इस स्टूडियो का द्वार केवल अपने परिचितों के लिए ही नहीं, बल्कि सबके लिए खोल दिये थे. उसके अनुसार बनने वाला यह चित्र युद्ध की विभीषिका के खिलाफ एक ऐसा संदेश दे रहा था, जिसे लोगों तक पहुँचना ही चाहिए था. आने वाले दर्शकों से पाब्लो अक्सर यह कहा करता था कि "स्पेन का यह युद्ध तानाशाही एवं आजादी के बीच छिड़ी हुई जंग है. मैं अपने अन्य चित्रों की तरह इसमें भी सैन्य जमातों के प्रति अपनी नफरत को व्यक्त करने वाला हुँ. इस जमात ने स्पेन को वेदना और मृत्यु के सागर में डुबो दिया है."
चौबीस दिनों के सतत और अथक मेहनत के बाद 3 जून को 'गुएर्निका' नामक उस चित्र ने जन्म लिया, जो विश्व की सबसे बड़ी, तथा युद्ध-विरोधी सर्वाधिक प्रभावशाली पेंटिंग बन गई.
इस ऐतिहासिक पेंटिंग को देखने के बाद लोग अपना सिर खुजलाने लगते. इसका नाम तो था 'गुएर्निका', लेकिन इसमें इस गाँव का कोई भी दृश्य दूर-दराज तक न था. चित्र भी काले और श्वेत रंग का था. दरअसल, पिकासो ने अखबारों में जल रहे गुएर्निका गांव का छायाचित्र इसी रंग में देखा था. तो उसने इसी रंग में उस ध्वस्त गांव को रेखाओं द्वारा हमेशा-हमेशा के लिए निर्मित कर दिया. है यह चित्र महायुद्ध पर. लेकिन इसमें कहीं भी न तो तोप और बन्दूकें हैं, और न ही लड़ती हुई सेनायें. तो फिर इसमें ऐसा क्या है, जो इस चित्र को इतना प्रभावशाली और कालजयी बनाता है.
वस्तुतः यह युद्ध के विध्वंस पर चित्रित की गई एक अत्यंत मार्मिक कविता है. चित्र के बायीं ओर आँखें तरेरे हुए एक सांड है. अपने हाथों में अपने मरे हुए बच्चें को लेकर एक स्त्री दु:खी है, और यह सांड इसी महिला के ऊपर खड़ा है. पूरा चित्र एक कमरे की पृष्ठभूमि में है. इस कमरे के बीचोंबीच तड़पता हुआ एक घोड़ा एक बड़े से गढ्डे के बगल में एक भाले से बिंधा हुआ है. इस घोड़े के नीचे एक निहत्था मृत सैनिक पड़ा हुआ है. घोड़े के सिर के ऊपर एक लपलपाता हुआ पुराना बल्ब पीली रोशनी दे रहा है. हथियार के रूप में यहाँ सिर्फ एक तलवार है, और वह भी टूटी हुई.
इस चित्र को देखने के बाद अनायास धर्मवीर भारती के गीतिकाव्य 'अंधा युग' की याद ताजी हो जाती है, जिसमें उन्होंने महाभारत युद्ध के बाद के कुरूक्षेत्र का चित्रण किया है.
एक अत्यंत महत्वपूर्ण बात यह कि अपने हर छोटे-छोटे चित्र में अपने हस्ताक्षर करके तारीख डालने वाले इस महान चित्रकार ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किये है. फिर तारीख डालने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता. ऐसा करके पिकासो ने इसे विश्व के सभी लोगों की भावनायें बताते हुए कालजयी घोषित किया है.
किसी भी चित्र के लिए इससे अधिक प्रभावशाली संदेश और सम्मान की बात क्या होगी कि इसकी कपड़े पर चित्रित फुल साइज प्रति संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् के प्रवेश द्वार पर लगी हुई है, ताकि विश्व की सुरक्षा पर कुछ भी निर्णय लेने से पहले कक्ष में प्रवेश करने वाले सदस्य इस चित्र से शांति की प्रेरणा ले सकें, विभत्स दृश्य से शांति की प्रेरणा. ऐसे महान चित्र गुएर्निका का जन्म दिवस है – 3 जून.
डॉ॰ विजय अग्रवाल
पूर्व सिविल सेवा अधिकारी एवं प्रख्यात लेखक
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
Next Story