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- संघ का एक राष्ट्र, एक...
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघ चालक डा. मोहन भागवत के सान्निध्य में जागृत होती राष्ट्रीय भावना, हिंदू व हिंदुत्व के महीन पर्दे और मानवीय अलंकरण के मसौदों में समाज के दर्पण का अवलोकन, इन दिनों कांगड़ा की परिधि में एक बड़ी कार्यशाला में निरुपित हुआ। अपने इतिहास के सौ साल की ओर बढ़ रहा संघ परिवार मानवीय जिज्ञासा, राष्ट्रीय चित्रण, सामाजिक संकल्प, देश के ध्येय और स्वयं को निर्धारित करते आदर्शों को सामने ला रहा है। इसी परिप्रेक्ष्य में हिमाचल के प्रबुद्ध वर्ग की नुमाइंदगी में मोहन भागवत के साथ हिमाचल रू-ब-रू हुआ, तो मोहन भागवत जीवन का तिनका-तिनका और राष्ट्र का मनका-मनका जोड़ देते हैं। यहां स्वयं सेवक और संघ परिवार दो अलग संदर्भों की व्याख्या में जीवन के मूल का उच्चारण होते हैं, लेकिन जीवन पद्धति से देश के लिए जीने और मरने वालों की पौध की शिनाख्त भी सामने आती है। समाज की एकता में देश और नागरिक, न जाति और न ही पंथ के रूप में देखे जाते हैं। भागवत देश के अभिप्राय में नागरिक समाज में गुणवत्ता का आचरण टटोलते हैं। देश को आगे रखते हुए समाज कितना अनुशासित दिखाई देता है या कायदे-कानूनों में कितना जीरो टांलरेंस दिखाता है, इसको लेकर भारतीय मानस को वह खंगालते हैं। ऐसे में वक्तव्यों की तांकझांक में उच्चारण तो सही व सटीक हैं, लेकिन नागरिक जिम्मेदारी व जवाबदेही के आंकड़े तो बुरी तरह कुचले जा रहे हैं।
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