सम्पादकीय

एक और टीका

Rani Sahu
13 Dec 2021 7:30 AM GMT
एक और टीका
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न दुनिया महामारी पर ठिठकी है और न विज्ञान कोरोना पर ठहरा है

न दुनिया महामारी पर ठिठकी है और न विज्ञान कोरोना पर ठहरा है। दूसरी व्याधियों पर भी शोध जारी हैं और टीकों व दवाइयों की खोज भी निरंतर चल रही है। इसी बीच एक बड़ी खुशखबरी यह भी है कि एक खतरनाक श्वसन रोग से जुड़ी दवा या टीके की निर्माण प्रक्रिया अंतिम चरण में पहंुच गई है। एक प्रभावी आरएसवी टीका मानव जाति की पहुंच के भीतर है : टीका भी कोई एक नहीं, चार-चार टीके पुख्ता होने के कगार पर पहुंच गए हैं। श्वसन रोग के लिए जिम्मेदार एफ प्रोटीन संरचना को समझे आठ साल बीत चुके हैं, और तभी से एक मुकम्मल टीके को अंतिम रूप देने की कोशिश हो रही है। वैज्ञानिकों ने साल 2013 से ही आरएसवी2 को निशाना बना रखा है। आरएसवी2 मतलब रेस्पिरेटरी सिंकाइटियल वायरस। यह इंसानों के श्वसन मार्ग में संक्रमण का कारण बनता है। यह गंभीर संक्रमण है, जो हर साल दुनिया भर में 6.4 करोड़ लोगों को प्रभावित करता है। यह हर साल 5 साल से कम उम्र के 30 लाख बच्चों और लगभग 3,36,000 वयस्कों को अस्पताल में भर्ती होने पर मजबूर कर देता है। वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया था कि साल 2017 में छोटे बच्चों में आरएसवी से जुड़े संक्रमणों की वैश्विक स्वास्थ्य देखभाल लागत 5.45 अरब अमेरिकी डॉलर थी।

दम फूलने और सांस लेने में तकलीफ की यह बीमारी दुनिया के लगभग सभी देशों में पाई जाती है। इसका टीका आने से असंख्य बच्चों व वयस्कों को एक बड़ी तकलीफ से निजात मिलेगी। वैसे कोविड-19 भी श्वसन तंत्र से जुड़ी बीमारी है, पर यह बहुत अलग है। कोविड-19 नई बीमारी या महामारी है, जबकि आरएसवी2 ने सदियों से परेशान कर रखा है। शोधकर्ता दशकों से इसके उपचार के लिए वैक्सीन विकसित करने में लगे हैं, और पहले कुछ विशेष विनाशकारी विफलताएं हासिल हुई हैं। 1960 के दशक में वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि उन्होंने टीका बना लिया है, लेकिन परीक्षण में ही उस टीके ने बीमारी को बढ़ा दिया था और दो बच्चों की मौत हो गई थी। उसके बाद से ही वैज्ञानिकों ने अपने शोध की दिशा बदल दी थी। वह समझ नहीं पा रहे थे कि श्वसन में आने वाली समस्या की मूल वजह क्या है। साल 2013 में एक मूल वजह मतलब एफ प्रोटीन की खोज ने वैज्ञानिकों के उत्साह को बढ़ा दिया और वह तभी से टीका बनाने में लगे हैं
गौर करने की बात है कि फरवरी 2020 में जब कोरोना वायरस ने कहर ढाना शुरू किया, तब विज्ञान पत्रिकाओं में एक शोध प्रकाशित हुआ। संरचनात्मक जीवविज्ञानी जेसन मैकलेलन और उनकी टीम ने मानव कोशिकाओं पर आक्रमण करने के लिए उपयोग किए जाने वाले प्रमुख प्रोटीन की संरचना को अपनी रिपोर्ट में उजागर कर दिया था। मतलब यह मानव जाति के लिए बड़ी खुशनसीबी ही थी, जब कोविड-19 ने दुनिया को सताया, तब मानव जाति श्वसन को प्रभावित करने वाले प्रोटीन की संरचना को समझ चुकी थी। इसी संरचना को लेकर वैज्ञानिक तत्काल कोरोना की वैक्सीन बनाने में लग गए और जल्दी कामयाब हुए। जो लोग कोरोना वैक्सीन जल्दी बनने से अचंभित हैं, उनके लिए यह सूचना रोमांचकारी है। बेशक, कोरोना वैक्सीन के निर्माण की प्रक्रिया दशकों से चल रही थी और सिद्ध हो गया कि स्वस्थ रहने के लिए दुनिया को विज्ञान की बड़ी जरूरत है।

हिंदुस्तान।

Rani Sahu

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