सम्पादकीय

एक देश-एक राशन कार्ड: करोड़ों फर्जी राशन कार्ड पीडीएस में व्याप्त भ्रष्टाचार की कहानी बयां करते हैं

Gulabi
6 Nov 2020 3:51 PM GMT
एक देश-एक राशन कार्ड: करोड़ों फर्जी राशन कार्ड पीडीएस में व्याप्त भ्रष्टाचार की कहानी बयां करते हैं
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साढ़े चार करोड़ फर्जी राशन कार्डो की पहचान किया जाना सार्वजनिक वितरण प्रणाली में व्याप्त भ्रष्टाचार की कहानी ही बयान

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। बीते सात सालों में करीब साढ़े चार करोड़ फर्जी राशन कार्डो की पहचान किया जाना सार्वजनिक वितरण प्रणाली में व्याप्त भ्रष्टाचार की कहानी ही बयान करता है। ये फर्जी राशन कार्ड यह भी बता रहे हैं कि अपात्र लोगों द्वारा किस तरह पात्र लोगों के अधिकारों पर डाका डाला जा रहा था। इतनी बड़ी संख्या में फर्जी राशन कार्डों की पहचान तकनीक के इस्तेमाल और विशेषकर उन्हें आधार कार्ड से जोड़े जाने की प्रक्रिया से ही संभव हुई। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि इस प्रक्रिया को अपनाए जाने का कैसा विरोध किया गया था? यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि कहीं यह विरोध इसलिए तो नहीं किया जा रहा था कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिये गरीबों को सस्ते दाम पर दिए जाने वाले अनाज की बंदरबाट होती रहे?

सच्चाई जो भी हो, यह एक तथ्य है कि कई राज्य सरकारों ने राशन कार्डों को आधार से जोड़े जाने की प्रक्रिया को गति देने में सहायक बनने के बजाय इस पर जोर दिया जाए कि ऐसा करने से बचा जाए। यह तो गनीमत रही कि सुप्रीम कोर्ट ने कल्याणकारी योजनाओं को आधार से जोड़े जाने को सही ठहराया, अन्यथा कुछ लोगों का बस चलता तो यह भी नहीं हो पाता। वास्तव में ऐसे ही लोगों के कारण सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार नहीं हो पा रहा था।

यदि मोदी सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार के लिए प्रतिबद्धता नहीं दिखाई होती तो शायद वह आज भी तमाम खामियों और भ्रष्टाचार से ग्रस्त होती। इस प्रणाली के तहत करीब 80 करोड़ राशन कार्ड धारकों को कहीं कम दाम पर अनाज उपलब्ध कराया जाता है। केंद्र सरकार ने हाल में एक देश-एक राशन कार्ड योजना इस उद्देश्य से शुरू की है कि गरीब लोग देश के किसी भी हिस्से में सस्ते दाम पर अनाज हासिल कर सकें, लेकिन कोई नहीं जानता कि सभी राज्य सरकारें इस योजना को अपनाने के लिए तत्परता क्यों नहीं दिखा रही हैं? एक ऐसे समय जब कोरोना संकट के कारण तमाम लोग शहरों से अपने गांव-घर लौटने को मजबूर हुए हैं, तब इसका कोई औचित्य नहीं कि कुछ राज्य इस योजना को लागू करने में हीलाहवाली का परिचय दें।

समझना कठिन है कि गरीबों के हितों की चिंता में दुबले होते रहने वाले राजनीतिक दल यह सुनिश्चित करना जरूरी क्यों नहीं समझ रहे कि जन कल्याण की एक जरूरी योजना पूरे देश में जल्द से जल्द से लागू हो? अच्छा होगा कि उन्हें यह भी समझ आ जाए कि जन कल्याणकारी योजनाओं के साथ-साथ अन्य सरकारी कामकाज में तकनीक का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने का एक कारगर उपाय है।

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