सम्पादकीय

एक बड़ा मिशन- नर्सरी एडमिशन

Subhi
27 Nov 2022 4:32 AM GMT
एक बड़ा मिशन- नर्सरी एडमिशन
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क्या एक छोटे से बच्चे अर्थात जिसकी उम्र तीन से चार साल के बीच हो को लेकर मां-बाप पर बोझ बढ़ जाता है। यह बोझ ऐसा है जैसे माता-पिता के ऊपर बेटी ब्याहने का एक बड़ा बोझ होता है।

किरण चोपड़ा; क्या एक छोटे से बच्चे अर्थात जिसकी उम्र तीन से चार साल के बीच हो को लेकर मां-बाप पर बोझ बढ़ जाता है। यह बोझ ऐसा है जैसे माता-पिता के ऊपर बेटी ब्याहने का एक बड़ा बोझ होता है। छोटा बच्चा जब तीन साल का हो जाता है तो माता-पिता के बीच में एक अजीब सी चिंता शुरू हो जाती है कि उसका नर्सरी स्कूल में घर के आसपास या दूरदराज के बेस्ट स्कूल में एडमिशन कैसे होगा? जी हां, दिल्ली की यही कहानी है। धीरे-धीरे नर्सरी एडमिशन के लिए मिशन एनसीआर और देश के अन्य हिस्सों की ओर बढ़ रहा है। खबर है कि सरकार की ओर से एकेडमिक सेशन 2022-23 एक दिसंबर से शुरू होने जा रहा है तथा यह प्रक्रिया 23 दिसंबर तक चलेगी। मैंने कितने ही माता-पिता के तनाव को महसूस किया है। इस एडमिशन प्रक्रिया को लेकर बड़ी बात यह है कि दिल्ली के लगभग 2000 से ज्यादा प्राइवेट स्कूलों में नर्सरी, केजी और क्लास वन के लिए पैरेंट्स फार्म भर सकेंगे। इसी कड़ी में एक बात और जोड़ रही हूं जो एडमिशन लेने वालों के लिए एक बड़ी सूचना है कि दिल्ली शिक्षा निदेशालय 28 नवंबर तक एडमिशन क्राइटेरिया अपनी वेबसाइट पर लोड करवाने के लिए स्कूलों को आदेश दे चुका है और इसके बाद 20 जनवरी को सभी स्कूल अपनी पहली एडमिशन लिस्ट जारी कर देंगे। इस कड़ी में दूसरी और तीसरी एडमिशन लिस्ट भी आ सकती है। इस सारे प्रोसेस को देखते हुए सचमुच मुझे वह जमाना याद आता है जब हम स्कूल में पढ़ते थे। मुझसे अनेक लोग पसंद के स्कूल में एडमिशन के लिए एप्रोच के लिए संपर्क करते हैं। कभी जमाना था तो ऐसे सिस्टम वगैराह नहीं थे और हम उनके लिए स्कूलों में फोन कर देते थे और एडमिशन हो जाता था। परंतु अब बहुत झमेले वाले सिस्टम आ गये हैं और मैं यही सोचती हूं कि हमारा समय बहुत सरल और बहुत अच्छा था जबकि आज की परिस्थितियों में छोटे बच्चे के एडमिशन को लेकर मां-बाप की चिंता बहुत बढ़ जाती है। हंसते हुए मेरे एक सहयोगी कहते हैं कि यह बच्चे का एडमिशन टेस्ट नहीं बल्कि माता-पिता की टेंशन और जेब पर पड़ने वाला खर्च है। प्रक्रिया इतनी जटिल है कि सबको इससे गुजरना पड़ता है और तनाव झेलना ही पड़ता है। मैंने कई घर ऐसे देखे हैं कि जहां बच्चा दो साल का होते ही उन्हें प्ले स्कूल में जरूरी बातें सीखने के लिए मां-बाप बहुत पैसा खर्चते हैं। अच्छी शिक्षा का मतलब अच्छी अंग्रेजी बोलना और नर्सरी एडमिशन के दौरान छोटे बच्चे से अंग्रेजी में उसका नाम और उसके माता-पिता का नाम पूछा जाता है। यानि कि बच्चे को यह सब कुछ अंग्रेजी में सिखलाने के लिए आप पैसा खर्च करने के लिए मजबूर हैं। आखिरकार यह जटिल सिस्टम क्यों? इसे लेकर अलग-अलग विद्वान लोग बहस कर रहे हैं। परंतु मैं अपने स्कूल दिनों के गुजरे जमाने को याद करती हूं जिसमें सहजता, सरलता और शिक्षकों के साथ-साथ सामाजिक स्तर पर मौहल्ले वालों तक की जिम्मेवारी सिर्फ अपने बच्चे के लिए नहीं हर एक के बच्चे के लिए रहती थी। यह अपनापन आज की तारीख में खत्म हो रहा है। संपादकीय :राष्ट्र हितों का पैरोकार संघबाबा साहेब का संविधानगन कल्चर और गैंग लैंडराजस्थान कांग्रेस का झगड़ा !मुम्बई में खसरा का प्रकोपसरमा जी जबान संभाल कर...आज की तारीख में छोटे बच्चे के एडमिशन के लिए राशन कार्ड, स्मार्ट कार्ड, बच्चे या पैरेंट्स का डोमिसाइल सर्टिफिकेट, माता-पिता का वोटर आईडी कार्ड, आप घर के मालिक हैं या किरायेदार उस स्थान का बिजली, पानी बिल, माता-पिता का आधार कार्ड ये सब चीजें माता-पिता के लिए कितनी कष्टदायी होती होंगी। इन सबको आवश्यक डाक्यूमेंट्स कहा गया है। शिक्षा निदेशालय मेें एक-एक बच्चे का डाटा पासपोर्ट बनने से भी ज्यादा जांच के दौर से गुजरता है। यहां तक कि पैरेंट्स की क्वालीफिकेशन, इंटरव्यू, पैरेंट्स क्या खाते हैं क्या पीते हैं यह सब शामिल किये गये हैं। मेरी एक सहयोगी बताती हैं कि गुरुकुल का सिस्टम ज्यादा अच्छा था। उसी के दम पर गुरु और शिष्य की परंपरा जीवित थी परंतु आज सब कुछ बदल रहा है। देश में मेकाले की शिक्षा पद्धति हावी है। रविन्द्र नाथ टैगोर जिन्होंने पाठशाला की थीम को सृजित किया था अब हर तरफ किताबों और बस्तों के भारी बोझ तले सब कुछ खत्म हो रहा है। दो साल की उम्र में ही बच्चे के बोलचाल की भाषा के ऊपर अंग्रेजी को लादा जा रहा है। इसे स्टैंडर्ड कहा जाता है। समय आ गया है कि इस बारे में गंभीरतापूर्वक सोचा जाना चाहिए।बच्चे की विचारधारा स्वतंत्र और स्वच्छंद होनी चाहिए जैसे नदी की धारा आगे बढ़ती है वैसे ही बच्चे को कुछ भी करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। इस किस्म का बोझ न सिर्फ बच्चे के लिए बल्कि माता-पिता के लिए भी घातक हो सकता है। फिर भी कुछ जानकारियां पैरेंट्स के जीवन का हिस्सा हो गयी हैं जो नर्सरी एडमिशन के लिए अहम बनती जा रही हैं। लेकिन उनकी टैंशन बढ़ रही है, इस दिशा में कुछ सोचने का नहीं बल्कि करने का वक्त आ गया है क्योंकि यह नर्सरी नहीं मिशन एडमिशन है। आजकल न चाहते हुए भी बच्चों का बचपन खो रहा है और उनकी हर परीक्षा उनकी तो है ही साथ ही माता-पिता की भी होती है, खास करके मां की।

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