सम्पादकीय

भारत बंद के नाम पर एक बार फिर लोगों को बंधक बनाने वाली राजनीति

Tara Tandi
28 Sep 2021 4:34 AM GMT
भारत बंद के नाम पर एक बार फिर लोगों को बंधक बनाने वाली राजनीति
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कृषि कानूनों का विरोध कर रहे विभिन्न किसान संगठनों ने भारत बंद के नाम पर एक बार फिर लोगों को बंधक बनाने वाली राजनीति का परिचय दिया

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| तिलकराज ! कृषि कानूनों का विरोध कर रहे विभिन्न किसान संगठनों ने भारत बंद के नाम पर एक बार फिर लोगों को बंधक बनाने वाली राजनीति का परिचय दिया। इस दौरान कुल मिलाकर आवागमन को बाधित करने पर ही जोर दिया गया, ताकि आम लोग ज्यादा से ज्यादा परेशान हो सकें। वास्तव में अब यही किसान संगठनों का एकमात्र मकसद बन गया है, क्योंकि वे जिन कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलनरत हैं, वे तो अस्तित्व में ही नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उनके अमल को स्थगित कर रखा है। बावजूद इसके किसान संगठन यही मांग करने में लगे हुए हैं कि इन स्थगित कानूनों को वापस लिया जाए।

यह और कुछ नहीं, एक तरह की हठधर्मिता ही है। इस हठधर्मिता ने एक विकृत राजनीति का रूप धारण कर लिया है। किसान संगठन यह अच्छी तरह जान रहे हैं कि उनके धरना-प्रदर्शन और खासकर सड़कों को घेर कर बैठने से आवागमन के साथ लोगों की रोजी-रोटी पर बुरा असर पड़ रहा है, लेकिन वे अपनी जिद छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं

आंदोलनरत किसान संगठनों को समर्थन देने वाले राजनीतिक दल भी यह भली तरह समझ रहे हैं कि यह आंदोलन आम लोगों के साथ उद्योग-व्यापार जगत के लिए मुसीबत बन गया है, लेकिन अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के फेर में वे अराजकता पैदा करने वाले इस तथाकथित आंदोलन को हवा देने में लगे हुए हैं। ध्यान रहे कि यही काम नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में दिल्ली के शाहीन बाग आंदोलन के समय भी किया गया था।

राजनीतिक दल अराजकता पैदा करने वाले आंदोलनों को समर्थन देकर एक बेहद खराब परंपरा की नींव रख रहे हैं। यदि ऐसे आंदोलनों को बल मिला तो सरकारों के लिए शासन करना कठिन हो जाएगा। बेहतर हो कि अपने संकीर्ण स्वार्थों के लिए किसान संगठनों को उकसा रहे विपक्षी राजनीतिक दल यह समङों कि इसी तरह के अराजक आंदोलनों से वे भी दो-चार हो सकते हैं। उन्हें यह स्मरण रहे तो अच्छा कि पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह को किसान संगठनों से आजिज आकर ही यह कहना पड़ा था कि वे राज्य से बाहर जाएं। उनका साफ कहना था कि इस आंदोलन से पंजाब को नुकसान हो रहा है।

किसान संगठनों के आंदोलन से उपजी समस्याओं से सुप्रीम कोर्ट भी अवगत है, लेकिन समझना कठिन है कि वह कोई फैसला सुनाने से क्यों बच रहा है? वह न तो किसान संगठनों की ओर से सड़कों को बाधित किए जाने का संज्ञान ले रहा है और न ही कृषि कानूनों की समीक्षा करने वाली समिति की रपट का। विडंबना यह है कि यह स्थिति तब है, जब खुद उसने ही इस समिति का गठन किया था।

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