सम्पादकीय

रज्जुमार्गों के नक्शे पर

Rani Sahu
28 Dec 2021 6:55 PM GMT
रज्जुमार्गों के नक्शे पर
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रज्जुमार्गों के मायाजाल में अब हिमाचल अपनी किस्मत पलट कर देखना चाहता है

रज्जुमार्गों के मायाजाल में अब हिमाचल अपनी किस्मत पलट कर देखना चाहता है। यह करिश्मा फिर से केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी कर रहे हैं और एक ऐलान की तरह वह 13 रज्जु मार्ग परियोजनाओं को करीने से सजा देते हैं। ऐसा माना जा रहा है या यह प्रचार शुरू हो गया है कि चयनित पच्चास परियोजनाओं में से तेरह पर केंद्र की नजरें एनायत हैं। कुल 5644 करोड़ की लागत से कुछ शहरों की परिवहन सेवा सुधरेगी, तो कुछ पर्यटक स्थलों की सूरत बदेलगी। अगर रज्जु मार्ग परिवहन की दिशा तय करते हुए केंद्र की प्राथमिकताओं में हिमाचल आता है, तो सारा परिदृश्य बदल जाएगा।

दरअसल हिमाचल की पर्यावरणीय चिंता और भौगोलिक परिस्थिति के कारण 'एलिवेटिड ट्रांसपोर्ट नेटवर्क' ही एकमात्र विकल्प है, जिसके माध्यम से सार्वजनिक परिवहन के मायने बदलेंगे। हालांकि पिछले कई वर्षों से हिमाचल रज्जु मार्गों का मानचित्र बना रहा है, लेकिन परियोजनाओं के शिलान्यास खिलौने बनकर दर्ज होते रहे हैं। प्रदेश की पहली परियोजना का शांता कुमार सरकार ने धर्मकोर्ट से त्रियूंड का खाका बनाया और बाकायदा शिलान्यास भी किया, लेकिन दशकों बाद भी यह ख्वाब मिट्टी हो गया। इसी तरह पालमपुर, दियोट सिद्ध, बिजली महादेव तथा चामुंडा रोप-वे परियोजनाओं के संकल्प केवल सियासी चिट्ठी पत्री ही बने रहे। टिंबर ट्रेल के बाद नयना देवी की रज्जु मार्ग परियोजनाओं ने सबसे पहले आंख खोली, लेकिन आनंदपुर साहिब-नयना देवी जैसी परियोजनाओं के आसपास सियासी नाकेबंदी रही। शिमला का जाखू रज्जु मार्ग एक कठिन एहसास से राजधानी की जरूरत पूरी करता है, तो धर्मशाला-मकलोड़गंज रोप-वे परियोजना ने शहरी परिवहन का नक्शा बदलने का प्रारूप स्थापित किया। इसी परिप्रेक्ष्य में प्रस्तावित तेरह रोप-वे परियोजनाएं शहरी ट्रासंपोर्ट का नक्शा बदल सकती हैं।
खास तौर पर राजधानी शिमला के बढ़ते यातायात को एलिवेटिड नेटवर्क से गतिशील बनाया जाए तो कई रुकावटें दूर होंगी। 22.4 किलोमीटर के दायरे में शिमला का यातायात दबाव ही दूर नहीं होगा, बल्कि निजी वाहनों का इस्तेमाल भी घटेगा। इससे पहले स्काई बस की परिकल्पना में शिमला के परिवहन को समझने की चेष्टा हुई, लेकिन वित्तीय पोषण की कठिनाई ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया। दूसरी ओर बेलारूस की कंपनी ने अगर धर्मशाला में स्काई बस का सपना सच करने का समझौता किया, तो राजनीति ने इसे दुत्कार दिया। बहरहाल आठ सौ करोड़ से धर्मशाला के 14 किलोमीटर लंबाई में रोप-वे का नक्शा मुकम्मल होता है, तो इससे जीवन की गति और मानवीय प्रगति को चिन्हित किया जा सकता है। इन दो शहरी परियोजनाओं के कार्यान्वयन से समूचे प्रदेश की परिवहन तासीर बदलेगी। शहरी परिवहन की दृष्टि से हिमाचल के कई शहरों के कलस्टर बनाने होंगे। उदाहरण के लिए सुंदरनगर से मंडी तक अगर एरिया विकास प्राधिकरण के तहत शहरी विषय समझे जाएं तो इसी को तसदीक करते इरादे बल्ह घाटी को मंडी से जोड़ पाएंगे। तमाम मंदिर परिसर अपने विकास की योजनाएं-परियोजनाएं बनाते हुए रज्जु मार्गों का नेटवर्क कायम कर सकते हैं, जबकि प्रदेश की मंडियों तक माल ढुलाई के लिए भी ऐसे विकल्प को आगे बढ़ाना होगा। बहरहाल रज्जु मार्गों का यह सपना काफी सुखद है, लेकिन इससे पहले जब एक मुश्त 69 नेशनल हाई-वे तथा फोरलेन परियोजनाओं की चिट्ठियां बांट रहे केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने घोषणाएं की थीं, तो यह खुशफहमी ही साबित हुई हंै। ऐसे में रज्जु मार्गों के नक्शे पर टंगी सियासत का अंतर व भ्रम दूर करना होगा। अगर यह वाकई कपोल कल्पना नहीं, तो इसे जमीन पर उतारने का बजट सामने आना चाहिए।

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