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- यशपाल के बहाने

एक ओर हिमाचल सरकार ने प्रदेश में लता मंगेशकर संगीत महाविद्यालय खोलने की घोषणा करके पर्वतीय वाद्य यंत्रों के सुर छेड़ दिए हैं, तो दूसरी ओर क्रांतिकारी लेखक यशपाल की स्मृति में नादौन में बने साहित्य सदन को अपंग बनाया जा रहा है। साहित्य जगत ने उपर्युक्त सदन का इस्तेमाल इतर भूमिका करने की योजना का विरोध शुरू किया है। आश्चर्य यह है कि भाषा-संस्कृति विभाग ऑनलाइन कार्यक्रमों का गुलफाम बन कर यह भी भूल गया कि नादौन का सदन महज एक सरकारी भवन नहीं, आजादी में हिमाचल की भागीदारी और क्रांतिकारी यशपाल की विरासत में साहित्य के नजरिए को बांचने-जांचने का मील-पत्थर भी है। आश्चर्य यह कि विभाग शिमला में किताब घर की स्थापना से लेखकीय संपदा को प्रश्रय देता हुआ साधुवाद हासिल करना चाहता है, लेकिन यशपाल की साहित्यिक भूमिका को उजाड़ कर अपना नया रैन बसेरा स्थापित करना चाहता है। यह बिडंबना ही है कि लालचंद प्रार्थी और नारायण चंद पराशर के बाद हिमाचल का साहित्यिक वातावरण अब पहुंच और पहचान के पंजे में फंस गया है, जहां विभागीय शिरोमणि केवल सूचीबद्ध कार्यों में नजराने पेश कर रहे हैं।
क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचल
