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अनिता सोनी।
वर्ष 2012 के 16 दिसंबर की वह काली रात अभी भी लोगों के जेहन से नहीं उतरी है। दिल्ली में एक 23 वर्षीय छात्रा के साथ नृशंसतापूर्वक दुष्कर्म किया गया। बाद में पीडि़ता ने सिंगापुर में इलाज के दौरान दुनिया को अलविदा कह दिया था। तब इस जघन्य वादरात ने पूरे देश को एकजुट किया और दोषियों को सजा व बेटी को न्याय दिलाने के लिए एक स्वर से आवाज बुलंद की। लोग बेटियों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हो गए। व्यापक विरोध प्रदर्शनों एवं जनता के गुस्से को देखते हुए सरकार को कानून में संशोधन करना पड़ा तथा निर्भया फंड बनाया गया, जिससे केंद्रीय एवं राज्य स्तर पर बेटियों की सुरक्षा के तमाम प्रबंध की व्यवस्था की गई।
इसके बाद न्यायमूर्ति जेएस वर्मा कमेटी का गठन किया गया। इस कमेटी ने एक माह में अपनी रिपोर्ट दी जिसमें अपराध प्रक्रिया में संशोधन का सुझाव दिया। कानून में संशोधन कर यौन अपराधों के लिए कठोर दंड का प्रविधान किया गया। ऐसा माना गया कि शायद अब बेटियों पर अत्याचार रुक जाएगा, किंतु नौ वर्ष बीतने के बाद भी पीछे मुड़कर देखने पर पता चलता है कि फास्टट्रैक कोर्ट, महिला हेल्पलाइन, महिला थाने, पैनिक बटन, मिशन शक्ति जैसी तमाम कवायदोंं के बावजूद महिलाओं/ बेटियों के विरुद्ध लगातार जघन्य वारदात हो रहे हैं।