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- महंगाई के मोर्चे पर
Written by जनसत्ता: आखिर रिजर्व बैंक ने अपनी मौद्रिक नीति में उदारवादी रवैया त्यागते हुए रेपो दरों में पचास आधार अंक की बढ़ोतरी कर दी। पिछले महीने भी उसने एक अप्रत्याशित बैठक बुला कर चालीस आधार अंक की बढ़ोतरी कर दी थी। यानी पिछले पांच हफ्तों में यह दूसरी वृद्धि है। अब रेपो दर बढ़ कर 4.9 फीसद हो गई है। रिजर्व बैंक ने स्वीकार किया है कि अभी खुदरा महंगाई की दर 6.7 फीसद तक बनी रहेगी। हालांकि विकास दर का अनुमान 7.2 फीसद रखा गया है।
मुद्रास्फीति पर काबू पाने के मकसद से यह कदम उठाया गया है। मगर इस फैसले से आवास, वाहन आदि हर तरह के कर्ज की किस्तें बढ़ जाएंगी। रेपो दर वह होता है, जिस पर रिजर्व बैंक सभी बैंकों को कर्ज देता है। यानी बैंक जो ब्याज रिजर्व बैंक को चुकाएंगे, उससे अधिक अपने ग्राहकों से वसूल करेंगे।
कोरोना संकट के समय रिजर्व बैंक ने उदारवादी नीति अपनाते हुए रेपो दरों में कटौती की थी, ताकि बाजार में पूंजी का प्रवाह बढ़े और लोगों पर आर्थिक बोझ कम हो। उसका कुछ असर तो दिखा, मगर व्यापक प्रभाव नहीं पड़ पाया। फिर रिजर्व बैंक लंबे समय तक इस नीति को लागू नहीं रख सकता। इसलिए उसे यह कदम उठाना ही पड़ा।
महंगाई पर काबू पाना इस समय सरकार के सामने बहुत बड़ी चुनौती है। कई उपाय आजमाए जा चुके हैं, पर इस पर अंकुश नहीं लग पा रहा, तो इसकी कुछ वजहें स्पष्ट हैं। तेल की कीमतें बेतहाशा बढ़ी हैं। इसका असर हर चीज पर पड़ा है।
इस तरह आर्थिक विकास दर और महंगाई के बीच संतुलन बिठाना कठिन बना हुआ है। अब रेपो दर बढ़ने से लोगों को कर्जों के ब्याज पर अधिक जेब ढीली करनी पड़ेगी। यही नहीं, आवास और वाहनों की बिक्री पर भी असर पड़ेगा। कोरोना काल से पहले ही वाहन उद्योग एक तरह से बैठ गया था। वाहनों की बिक्री बहुत तेजी से घट गई थी। यही हाल नए भवनों की खरीद को लेकर था।
लाखों तैयार फ्लैटों के खरीदार नहीं मिल रहे थे। तब सरकार ने रियल एस्टेट क्षेत्र में पूंजी झोंकी थी। फिर बैंकों की ब्याज दरों में कटौती हुई तो लोगों का रुझान नए वाहन और आवास खरीदने की तरफ बढ़ा। मगर वह फिर मंद पड़ चुका है। कई बड़ी विदेशी वाहन कंपनियां अपना कारोबार समेट कर वापस लौट चुकी हैं। ऐसे में कर्ज पर ब्याज बढ़ने से इन क्षेत्रों पर बुरा असर पड़ने की आशंका है।
इन स्थितियों में आर्थिक विकास दर बढ़ने की उम्मीद भला कैसे की जा सकती है। केवल औद्योगिक उत्पादन के बल पर इस दर को ऊंचा नहीं बनाए रखा जा सकता। निर्यात के मामले में निराशाजनक स्थिति है। लघु, मझोले और सूक्ष्म उद्योग आर्थिक मंदी के दौर से बाहर नहीं निकल पाए हैं। नए रोजगार के अवसर सृजित न हो पाने से लोगों की क्रयशक्ति काफी घटी है।
कर्ज पर ब्याज अधिक चुकाना पड़ेगा, तो उनकी स्थिति और बुरी होगी। खुदरा महंगाई बढ़ने की कुछ वजहें भी स्पष्ट हैं, पर उस दिशा में व्यावहारिक कदम नहीं उठाए जा रहे। खेतों से बाजार तक वस्तुएं पहुंचाना महंगा पड़ रहा है, इसलिए भी रोजमर्रा इस्तेमाल की बहुत सारी चीजें महंगी हो गई हैं। इसी तरह ईंधन की कीमत बढ़ने से वस्तुओं की उत्पादन लागत बढ़ रही है। ऐसे में केवल रेपो दर में बढ़ोतरी से महंगाई पर कितना अंकुश लग पाएगा, कहना मुश्किल है।