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- किसान आंदोलन के 7 माह...
कृषि कानून विरोधी आंदोलन के सात माह पूरे होने के बहाने प्रदर्शनकारियों ने राजभवनों को घेरने का जो अभियान चलाया, वह एक-दो जगह छोड़कर नाकाम और निष्प्रभावी रहा तो इसी कारण कि वह अपनी धार खोने के साथ अपने उद्देश्य से भी भटक चुका है। आंदोलनकारी ले-देकर चंडीगढ़ और दिल्ली में ही थोड़ी-बहुत हलचल पैदा कर सके और वह भी हंगामे के सहारे। इससे साफ हो गया कि आम किसानों का इस आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं। लेना-देना हो भी क्यों, उनकी फसलों की रिकार्ड खरीद हुई और पैसा सीधे उनके खातों में पहुंचा। इसके अलावा वे इससे भी परिचित हैं कि विभिन्न फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी लगातार बढ़ रहा है। किसान नेताओं के इस आरोप में कोई दम नहीं कि मोदी सरकार एमएसपी खत्म करने जा रही है। यह बेसिर-पैर का आरोप है और इसे केवल किसानों को बहकाने के लिए उछाला जा रहा है। किसान संगठनों के साथ इस आरोप को उछालने का काम कुछ विपक्षी दल भी कर रहे हैं। वास्तव में अब इस अंदेशे की पुष्टि हो चुकी है कि विपक्षी दल किसान संगठनों को उकसा रहे हैं। गत दिवस राहुल गांधी ने यह ट्वीट करके किसान संगठनों को राजनीतिक दलों की शह मिलने की आशंका पर मुहर ही लगाई कि हम सत्याग्रही अन्नदाता के साथ हैं।