सम्पादकीय

अग्निपथ पर

Subhi
16 Jun 2022 4:38 AM GMT
अग्निपथ पर
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सेना में जवानों की भर्ती की पुरानी प्रक्रिया को खत्म कर सरकार ने स्पष्ट संकेत दे दिया है कि वह सेना में भी जरूरत के मुताबिक सुधार करने से पीछे नहीं हटेगी। थलसेना, वायुसेना और नौसेना में जवानों की भर्ती अब ‘अग्निपथ प्रवेश योजना’ के जरिए होगी।

Written by जनसत्ता: सेना में जवानों की भर्ती की पुरानी प्रक्रिया को खत्म कर सरकार ने स्पष्ट संकेत दे दिया है कि वह सेना में भी जरूरत के मुताबिक सुधार करने से पीछे नहीं हटेगी। थलसेना, वायुसेना और नौसेना में जवानों की भर्ती अब 'अग्निपथ प्रवेश योजना' के जरिए होगी। यह एक महत्त्वपूर्ण और बड़ा कदम इसलिए है कि जवानों की भर्ती से लेकर नौकरी तक में बुनियादी बदलाव कर दिया गया है। इस आमूलचूल परिवर्तन से जवानों की नौकरी पहले जैसी नहीं रह जाएगी। अब सेना में भर्ती के लिए उम्र साढ़े सत्रह साल से इक्कीस साल निर्धारित कर दी गई है।

चुने गए 'अग्निवीरों' को चार साल के लिए नौकरी पर रखा जाएगा। चार साल पूरे होते ही इन अग्निवीरों की सेवा समाप्त हो जाएगी। लेकिन इन्हीं में से पच्चीस फीसद को उनके बेहतर सेवा रिकार्ड के आधार पर सेना में स्थायी तौर पर शामिल किया जाएगा। सेना के इन नए अग्निवीरों को बीमा, निश्चित वेतन और सेवानिवृत्ति पर जमा पैसा तो मिलेगा, लेकिन पेंशन नहीं मिलेगी। यानी आने वाले वक्त में अब सेना के जवान भी अनुबंध की नौकरी वाले हो जाएंगे।

सेना के लिए इस तरह का सुधार कितना लाभदायी साबित हो पाएगा, यह कह पाना जरा मुश्किल है। हालांकि अग्निवीर योजना को लेकर सरकार ने कम खूबियां नहीं गिनार्इं हैं। जैसा कि योजना के बारे में दावा किया गया है कि अग्निवीरों को इस तरह से प्रशिक्षित किया जाएगा कि चार साल बाद वे दूसरे क्षेत्रों में भी संभावनाएं खोज सकेंगे। मसलन सशस्त्र पुलिस बलों, राज्य पुलिस बलों, सुरक्षा बलों जैसी नौकरियों में इन्हें प्राथमिकता देने की बात है। मोटा अनुमान यह है कि अगले चार वर्षों में एक लाख चौरासी हजार अग्निवीरों की भर्ती हो चुकेगी और इनमें से हर साल साढ़े ग्यारह हजार को सेवा में स्थायी तौर पर शामिल किया जाएगा।

जहां तक पैसे की बात है, तो पहले साल में अग्निवीर को तीस हजार रुपए प्रतिमाह मिलेंगे। यह पैसा बढ़ते-बढ़ते चौथे साल में चालीस हजार रुपए हो जाएगा। इस वेतन का तीस फीसद हिस्सा अग्निवीर कोर फंड में जाएगा। जमा पैसा सेवानिवृत्ति पर दे दिया जाएगा। लेकिन मुश्किल सवाल यह है कि चार साल बाद जो अग्निवीर बाहर आते रहेंगे, वे दूसरी जगह व्यावहारिक तौर पर कितना खप पाएंगे? रोजगार संकट तो स्थायी है ही। फिर, दूसरे बलों में भी कोई थोक भर्तियां तो होती नहीं रहतीं। ऐसे में हजारों नौजवान हर साल सेना से निकलने के बाद फिर से नए रोजगार की तलाश में होंगे।

फायदा आखिर किसे है? गौरतलब है कि सरकार वर्षों से सैनिकों की पेंशन के बोझ से जूझ रही है। देश में अभी करीब चौबीस से पच्चीस लाख पूर्व सैनिक हैं और हर साल तीनों सेनाओं से साठ से सत्तर हजार जवान सेवानिवृत्त होते हैं। ऐसे में रक्षा क्षेत्र को मिलने वाले आवंटन का बड़ा हिस्सा सिर्फ पेंशन पर ही खर्च हो जाता है। इसका असर सेना के आधुनिकीकरण, हथियार खरीद व दूसरी जरूरतों पर पड़ रहा है।

सेना की चुनौतियां भी बढ़ रही हैं। पर अब माना जा रहा है कि इस बड़े बदलाव से आने वाले वर्षों में पेंशनभोगियों की संख्या घटनी शुरू हो जाएगी। इस लिहाज से जवानों की भर्ती प्रक्रिया में किया गया यह बदलाव दूरगामी नतीजे वाला है। एक बात यह भी कि सेना के जवानों को अभी तक लंबे और कड़े प्रशिक्षण से गुजारा जाता था। लेकिन अब अग्निवीरों को छह महीने के प्रशिक्षण की बात है। ऐसे में क्या सेना की गुणवत्ता प्रभावित नहीं होगी, यह भी कम बड़ा सवाल नहीं है।


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