सम्पादकीय

आय से अधिक संपत्ति केस में ओमप्रकाश चौटाला की सजा भविष्य में नेताओं के लिए चेतावनी है

Gulabi Jagat
25 May 2022 8:20 AM GMT
आय से अधिक संपत्ति केस में ओमप्रकाश चौटाला की सजा भविष्य में नेताओं के लिए चेतावनी है
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पहले कानून को तोड़ना और फिर कानून से खिलवाड़ करते-करते हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला को लगने लगा था
अजय झा |
पहले कानून को तोड़ना और फिर कानून से खिलवाड़ करते-करते हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला (Om Prakash Chautala) को लगने लगा था कि वह कानून से ना सिर्फ ऊपर हैं, बल्कि कानून उनकी कठपुतली है जिसे वह जब और जैसे चाहे नचा सकते हैं. होता भी क्यों ना जब पिता देवीलाल केंद्र में ऐसे उपप्रधानमंत्री थे जिनकी केंद्र में तूती बोलती थी और हरियाणा (Haryana) में वह स्वयं मुख्यमंत्री थे. महम कांड में उन पर कोई कानूनी आंच तक नहीं आयी और उनके बेटे अभय सिंह चौटाला भी अदालत से बरी हो गए. महम में किसने 10 लोगों को मारा इसका खुलासा नहीं हुआ और बात दब गयी. 1989 में देवीलाल के उपप्रधानमंत्री बनने के पहले भी एक ऐसी घटना हुई थी, जिससे चौटाला परिवार कानून के चपेटे के आने से बच गया था. महम में जो भी हुआ वह उसी घटना का परिणाम और सोच था कि कानून उनका बाल भी बांका नहीं कर सकता.
बात 11 नवम्बर 1988 के शाम की है. देवीलाल उन दिनों हरियाणा के मुख्यमंत्री थे और चौटाला राज्यसभा के सदस्य. घटना चौटाला परिवार के सिरसा जिले के तेजा खेड़ा गांव में उनके फार्महाउस की है. चौटाला चंडीगढ़ में थे और देवीलाल फार्महाउस से थोड़ी दूर किसी रेस्टोरेंट में किसी से मिलने गए थे. देवीलाल की पत्नी हरकी देवी अपने गांव के लिए आधे घंटे पहले प्रस्थान कर चुकी थीं और अभय सिंह दादा से मिलने फार्महाउस से निकले ही थे कि वह घटना हो गयी. बैठक में चौटाला के बड़े बेटे अजय सिंह चौटाला की कुछ लोगों के साथ मीटिंग चल रही थी और उनका नौकर भी वहीं था. इतने बड़े फार्महाउस के एक कमरे में अभय सिंह की पत्नी सुप्रिया अकेले थीं. अचानक पीछे के एक कमरे से जोर के धमाके की आवाज़ आयी. बताया गया कि सभी ने सोचा कि वह दिवाली का पटका था. दिवाली दो दिन पहले ही मनाई जा चुकी थी. थोड़ी देर के बाद नौकर दुर्गा बैठक में आया और बताया कि पीछे वाले कमरे में सुप्रिया खून में लथपथ पड़ी हुई हैं.
हरियाणा में रसूख था चौटाला परिवार का
जब बैठक से लोग वहां पहुचे तो सुप्रिया की जान जा चुकी थी. उस समय अभय सिंह 22 साल के थे और सुप्रिया 19 वर्ष की. लगभग डेढ़ वर्ष पहले ही उन दोनों की शादी हुई थी. ना ही पुलिस को बुलाया गया ना ही सुप्रिया को अस्पताल ले जाया गया. अगले दिन सुबह 9 बजे सुर्पिया का अंतिम संस्कार भी हो गया और मुख्यमंत्री देवीलाल के कार्यालय से मीडिया को बताया गया कि अभय सिंह की पिस्तौल को अटैची से निकालते हुए सुप्रिया से पिस्तौल का घोड़ा दब गया और उनको गोली लग गयी. यानि ना तो यह हत्या थी ना ही आत्महत्या, बल्कि एक हादसा था. चौटाला परिवार पर आरोप लगा कि सुप्रिया की लाश का पोस्टमार्टम भी नहीं किया गया. कहा जाता है कि अभय सिंह की अपनी पत्नी से बनती नहीं थी और अपनी साली कांता से वह काफी करीब थे. मामला वहीं रफा दफा हो गया और इस हादसे के दो साल बाद अभय सिंह की शादी कांता से हो गई. दो साल इसलिए क्योंकि सभी को कांता के वयस्क होने तक प्रतीक्षा करनी पड़ी.
1977 से 1989 के बीच इतना कुछ हो गया पर चौटाला और उनके परिवार पर आंच तक नहीं आयी. आती भी कैसे जब हरियाणा में उनका रसूख था. 1991 के लोकसभा चुनाव में चंद्रशेखर सरकार की हार के बाद ना तो देवीलाल उपप्रधानमंत्री रहे और ना ही चौटाला हरियाणा के मुखमंत्री. देवीलाल ने अपनी पार्टी इंडियन नेशनल लोक दल का गठन किया और एक बार फिर से संघर्ष का रास्ता चुना. 1996 के विधानसभा चुनाव में चौधरी बंसीलाल की हरियाणा विकास पार्टी और बीजेपी गठबंधन सत्ता में आयी और बंसीलाल मुख्यमंत्री बने. देवीलाल के अथक प्रयास के कारण उनकी पार्टी की स्थिति काफी अच्छी हो गयी. बंसीलाल सरकार तीन साल से कुछ अधीक समय तक चली, पर उनके और बीजेपी के बीच तकरार बढ़ गया, जिस कारण बीजेपी ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया और इंडियन नेशनल लोक दल के साथ हाथ मिला लिया. देवीलाल ने चौटाला को मुख्यमंत्री बनाया, जिससे बीजेपी को कोई आपत्ति नहीं थी.
2000 में समय से पहले ही चौटाला ने विधानसभा चुनाव करने का फैसला किया जो सही साबित हुआ. इंडियन नेशनल लोक दल को बहुमत हासिल हुआ और चौटाला एक बार फिर से मुख्यमंत्री बने. 2001 में देवीलाल का निधन हो गया. पर अब तक चौटाला अपने दम पर बड़े नेता बन चुके थे. बहुमत की सरकार के मुखिया और कानून से खिलवाड़ करने की उनकी आदत के कारण वह अब तक एक तानाशाह से बन गए थे. और फिर शुरू हुआ वह सिलसिला जिसके कारण वह ना सिर्फ अगला चुनाव हार गए, बल्कि एक बार जेल की सजा काट चुके हैं और एक बार फिर से अब जेल जाने वाले हैं.
26 मई को अदालत अपना निर्णय सुनाएगी
यह चौटाला की तानाशाही का ही परिणाम था कि देवीलाल जो किसानों के नेता होते थे, उनके बेटे की सरकार ने मई 2002 के आन्दोलनकारी किसानों को सड़क से हटाने का पुलिस को निर्देश दिया. किसानों ने जींद जिले में सड़क जाम कर दिया था. उनकी मांग थी कि चौटाला सरकार उनके बिजली के बिल को माफ़ करे, जैसा कि इंडियन नेशनल लोक दल ने 2000 में चुनाव में उनसे वादा किया था. अब अगर किसान चौटाला को आंख दिखाने लगे, वह उन्हें कहां मंजूर था. पुलिस ने सड़क खाली करने के लिए बल का प्रयोग किया, किसान और पुलिस आपस में भीड़ गए और पुलिस में सफाई दी कि अपनी सुरक्षा में उन्होंने गोली चलायी. आत्मसुरक्षा में गोली तो चलती रहती है, पर उससे 17 लोग मारे जाएं, यह पहली बार सुना गया था. धीरे-धीरे पुरे हरियाणा में चौटाला की तानाशाही और भ्रष्ट सरकार के खिलाफ माहौल बन गया और 2005 के चुनाव में इंडियन नेशनल लोक दल चुनाव हार गई. फिर धीरे धीरे उसका वजूद ही अब खतरे में पड़ गया. पार्टी लगातार चार बार चुनाव हार चुकी है.
1999 से 2005 तक चौटाला मुख्यमंत्री रहे और चौटाला पर आरोप लगने लगा कि सरकारी नौकरियों में किसकी नियुक्ति होगी, इसका फैसला हरियाणा लोकसेवा आयोग नहीं करता था, बल्कि लिस्ट मुख्यमंत्री के घर से बन कर आती थी. जिस पर लोक सेवा आयोग अपना ठप्पा लगा देता था. 1999-2000 में 3206 जूनियर बेसिक टीचर (जेबीटी) की नियुक्ति हुई और एक बार फिर से सफल उम्मीदवारों की लिस्ट मुख्यमंत्री के निवास में बनी. उस समय तो सब ठीक चलता रहा पर जब 2005 विधानसभा में इंडियन नेशनल लोक दल चुनाव हार गई, तो यह मुद्दा उछला. इसकी जांच शुरू हुई और 2008 में चौटाला, उनके बड़े बेटे अजय सिंह चौटाला और 52 अन्य लोगों के खिलाफ मुकदमा दायर हुआ और 2013 में चौटाला को दोषी करार देते हुए 10 साल के कारावास की सजा सुनाई गयी.
सीबीआई ने जब जेबीटी भर्ती घोटाले की जांच की तो उस जांच में चौटाला के अन्य भ्रष्टाचार का भी पता चला, जिसमे एक था 1999 से 2005 के बीच चौटाला द्वारा आय से अधिक 6.09 करोड़ की संपत्ति अर्जित करना. दिल्ली के एक अदालत ने उन्हें इस केस में दोषी करार दिया है और कल यानि 26 मई को अदालत अपना निर्णय सुनाएगी कि चौटाला के कारावास की अवधि क्या होगी. चौटाला के ऊपर कानूनी कार्रवाई भविष्य के नेताओं के लिए एक चेतावनी हो सकती है कि नेता भले ही कानून बनाते हों, पर वह कानून से ऊपर नहीं हो सकते.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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