सम्पादकीय

ओमीक्रॉन का खौफ: मीडिया के लिए खुद पर शिकंजा कसने का समय

Rani Sahu
3 Dec 2021 7:57 AM GMT
ओमीक्रॉन का खौफ: मीडिया के लिए खुद पर शिकंजा कसने का समय
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कोरोना वायरस (Corona Virus) के वेरिएंट्स के खिलाफ चल रहे जंग में जिस एक पहलू को ज्यादातर नज़रअंदाज किया गया वो है

बिक्रम वोहरा कोरोना वायरस (Corona Virus) के वेरिएंट्स के खिलाफ चल रहे जंग में जिस एक पहलू को ज्यादातर नज़रअंदाज किया गया वो है मीडिया की भूमिका. इसमें पहला, तीसरे का हवाला देता है और चौथा भरोसेमंद स्त्रोतों से भेजी गई जानकारियों को हटा देता है. लेकिन पाठकों को अपनी ओर खींचने के लिए जानकारियों को व्यावसायिक नजरिए से फ़िल्टर कर देता है. लोगों के सामने चीखती हेडलाइन्स और भयावह माहौल परोसा जाता है, क्योंकि हो सकता है कि प्रतिद्वंदी ग्राफिक्स और डरावनी तस्वीरों की मदद से मुद्दे को बढ़ा-चढ़ा कर अपनी कवरेज और आकर्षक बना रहा हो. हालात ऐसे हो गए हैं कि आंकड़ों की छोटी-मोटी गड़बड़ी और कयामत के दिन की कहानियां भी अब स्वीकार्य हो गई हैं.

अगर खबरों को ऐसे दिखाना गलत है तो कल्पना कीजिए कि सोशल मीडिया फॉरवर्ड्स से कितनी गंदगी फैलती होगी. जहां किसी भी खबर की प्रामाणिकता की परवाह किए बिना संदेश लाखों लोगों तक पहुंचा दिए जाते हैं. पिछले दो दिनों में मुझे ऐसे पांच मैसेज मिले हैं जो ओमीक्रॉन (Omicron) की भयावहता को रेखांकित करते हैं. दो मैसेज के मुताबिक यह डेल्टा से आठ गुना ज्यादा खतरनाक है. दूसरे दो मैसेज में लिखा था कि यह कमजोर है और गायब हो जाएगा क्योंकि यह इतना संक्रामक है कि ऐसे वायरस स्वयं को नष्ट कर देते हैं.
व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी पर मिली जानकारियों को शेयर करने से बचें
एक संदेश में जॉन्स हॉपकिन्स के एक डॉक्टर विर्क को ये कहते हुए दिखाया गया था कि कोरोना का ये वेरिएंट एंटीबॉडी को पीछे छोड़ देता है और बिना किसी लक्षण के फेफड़ों में घुस जाता है और खामोशी से जान लेने की क्षमता रखता है. कहने की जरूरत नहीं कि ऐसे मैसेजेज में लगभग एक क्रूर उल्लास का आभास होता है. इन सारी जानकारियों से में काफी उलझन में फंस जाता हूं. इतना ही नहीं, संदेश भेजने वाला हर एक व्यक्ति कहता है कि इसे अपने परिवार और दोस्तों को बतौर चेतावनी भेज दें और इस संदेश को ज्यादा से ज्यादा फैलाने में मदद करें. मैं निश्चित रूप से सभी को ये संदेश भेज सकता हूं, लेकिन शायद डा. विर्क को नहीं भेज सकता.
चूंकि मैं जॉन्स हॉपकिन्स में किसी को जानता हूं, इसलिए थोड़ी बहुत जासूसी कर डा. विर्क तक पहुंचने की कोशिश करता हूं. इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि जॉन्स हॉपकिन्स के चिकित्सा विभाग में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है. इसके अलावा ये भी एक हकीकत है कि कोई भी डॉक्टर इस तरह की अधपकी जानकारियों को आगे नहीं भेजेगा जिसका कोई वैज्ञानिक आधार न हो. और ये कहना भी जल्दबाजी होगी कि इसका कोई असर नहीं पड़ेगा या आगे क्या होगा. और अगर दो साल बाद भी आपको दूरी बनाए रखने, मास्क पहनने, सुरक्षित रहने और सैनिटाइज़र का उपयोग करने के लिए कहा जाए तो मुमकिन है कि आप ये जंग छोड़ सकते हैं.
खबरों को मिर्च-मसाला लगा कर बेचना बंद करना होगा
ओमीक्रॉन की कवरेज के दौरान मीडिया हर तरह की नाटकीय और भयावह सिद्धांतों को सामने रखने की जल्दबाजी में रहता है. ये उसके गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार को ही दर्शाता है. न्यूज़ एजेंसियों की वैसी रिपोर्ट को लेना जो बिना किसी अधिकारिक व्यक्ति की बातचीत पर आधारित होती हैं, ये दर्शाता है कि मीडिया उन मुद्दों को जैसे-तैसे दर्शकों को परोस देती है. चूंकि सौम्य खबरें नहीं बिकती हैं इसलिए मीडिया सबसे डरावनी व्याख्या को ही चुनता है. जब मैं ये लिख रहा हूं, एक दैनिक समाचार पत्र के पहले पन्ने पर एक बैनर हेडलाइन्स चीखते हुए कह रही है: दूर-दूर तक फैलता जा रहा है ओमीक्रॉन.
फिर ये कहती है कि दुनिया डरी–सहमी हुई है. लोग बड़ी तादाद में उड़ानें रद्द कर रहे हैं. और अपने इस दावे को सही ठहराते हुए वो कहता है कि एक व्यक्ति स्कूल की छुट्टियों के दौरान अपनी यात्रा योजनाओं पर फिर से विचार करने की बात कर रहा है. पर्यटन उद्योग संकट में आ जाता है. डॉक्टर अभी भी इसकी ताकत के बारे में कोई ठोस विचार नहीं रख पाए हैं. फिर यह कहता है कि दुनिया भर में 226 मामले दर्ज किए गए हैं जो उस हेडलाइन से दूर-दूर तक मेल खाते नहीं दिखते.
खबरों से लोगों के बीच भय बढ़ाना बंद करना होगा
शायद यह शपथ लेने का समय है कि झूठी अफवाहों को न फैलाया जाए, चाहे उनकी मंशा कितनी भी अच्छी क्यों न हो. मेरे विचार से चूंकि मीडिया सूचना का संवाहक है इसलिए उसे और जिम्मेदार होना पड़ेगा. क्योंकि अब जो हो रहा है वह ये है कि मोबाइल फोन पर बड़े पैमाने पर नकली डाटा में निहित झूठ को मुख्यधारा के पत्रकारों द्वारा रसीले अंदाजों में उठाया जाता है और बिना किसी परवाह के विश्लेषण के रूप में जारी कर दिया जाता है. निस्संदेह इस तरह की खबरों से लोगों के बीच भय और बढ़ जाता है.
ओमीक्रॉन की घोषणा के बाद से एक सप्ताह से भी कम समय में भ्रम और अनिश्चितता का माहौल बन गया है. आप और हम उन जहरीली और बेबुनियाद बातों के जाल में फंसते जा रहे हैं जिन्हें हकीकत के तौर पर पेश किया जा रहा है. सच कहूं तो मुझे बुधवार के बाद नई दिल्ली से सात कॉल आए हैं. इसमें दोस्तों ने मुझे बताया कि लॉकडाउन जरूर आएगा और किसी भी क्षण लागू हो सकता है. अब सवाल ये है कि उन्हें ये किसने बताया?
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