सम्पादकीय

भारत में 'ओमिक्रॉन'

Rani Sahu
3 Dec 2021 7:05 PM GMT
भारत में ओमिक्रॉन
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दो दिसंबर, 2021 को भारत में भी कोरोना के ‘ओमिक्रॉन’ वायरस की पुष्टि हो गई

दो दिसंबर, 2021 को भारत में भी कोरोना के 'ओमिक्रॉन' वायरस की पुष्टि हो गई। कर्नाटक में दो संक्रमित मामले मिले हैं, जिनमें जीनोम सीक्वेंसिंग के बाद नए वायरस की पुष्टि हुई है। एक व्यक्ति 66 वर्षीय दक्षिण अफ्रीकी था, जो बाद में दुबई चला गया। क्या संक्रमण के साथ ही वह दुबई गया है, तो क्या वहां संक्रमण फैलाने की संभावना नहीं है? दूसरा व्यक्ति 46 वर्षीय भारतीय और स्वास्थ्यकर्मी है। उसने विदेश यात्रा ही नहीं की। दोनों संक्रमितों के संपर्क में करीब 300 लोग आए थे। उनमें 10 ही संक्रमित पाए गए। उनमें 'ओमिक्रॉन' की मौजूदगी है अथवा नहीं, उसके लिए जीनोम सीक्वेंसिंग की रपट आनी है। दक्षिण अफ्रीका से इस वायरस की शुरुआत मानी जाती है। वहां 10 दिनों में ही 28 गुना केस बढ़ गए हैं, लेकिन रोज़ाना मौतों का औसत 30 ही रहा है। यह आलेख लिखने तक 30 देशों में 373 संक्रमित मामले दर्ज किए जा चुके थे, लिहाजा भारत में भी विशेषज्ञ डॉक्टरों ने इसे चेतावनी और चिंता की ख़बर माना है। हालांकि घबराने आर दहशत पैदा होने के आसार नहीं हैं। कुछ तथ्य हमारी व्यवस्था के आलसीपन और लापरवाही की तरफ भी संकेत कर रहे हैं।

भारत में हररोज़ टेस्टिंग की संख्या औसतन 11 लाख पर थम गई है। नवंबर,'21 में करीब 3 लाख कोरोना संक्रमित केस दर्ज किए गए। उनमें से 9000 से कुछ ज्यादा के सैंपल ही जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए भेजे गए हैं। यह मात्र 3 फीसदी है, जबकि तुलना में ब्रिटेन में यह औसत करीब 15 फीसदी है। यदि टीकाकरण की बात करें, तो बेशक 125 करोड़ से ज्यादा खुराकें लोगों को दी जा चुकी हैं। करीब 46 करोड़ लोगों, अर्थात् करीब 36 फीसदी आबादी, को टीके की दोनों खुराकें दी गई हैं। टीकाकरण का औसत दुनिया के प्रमुख देशों की तुलना में कम है। देश में 12 करोड़ से अधिक लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने पहली खुराक लेने के 120 दिन के बाद भी दूसरी खुराक नहीं ली। यह संख्या हर माह करीब एक करोड़ बढ़ रही है। जाहिर है कि विशेषज्ञ चिकित्सक मान रहे हैं कि भारत भी सुरक्षित स्थिति में नहीं है, लिहाजा वे सुझाव दे रहे हैं कि घर-घर जाकर, युद्धस्तर पर, टीकाकरण की शुरुआत की जाए। दूसरे, जिन डॉक्टरों, स्वास्थ्यकर्मियों और आपात् कर्मचारियों को फरवरी-मार्च, '21 में ही टीके की दोनों खुराकें दी जा चुकी हैं, उनमें एंटीबॉडी समापन की ओर होगी तथा इम्युनिटी भी कम हो सकती है, लिहाजा उनमें 'बूस्टर डोज़' लगाने की यथाशीघ्र शुरुआत की जानी चाहिए। फिलहाल हम न तो पुराने मंजर की ओर बढ़ रहे हैं और न ही लॉकडाउन के आसार हैं, लेकिन भारत सरकार और राज्य सरकारों ने बंदोबस्त करने में फुर्ती दिखाई है। चिकित्सक भी आग्रह कर रहे हैं कि मास्क, दूरी, भीड़ से बचाव, पार्टी और समारोह से परहेज और सबसे अहम टीकाकरण आदि का प्रोटोकॉल निभाएं। डॉक्टरों का अभी तक का यही निष्कर्ष है कि जो टीके हमें दिए गए हैं, उनकी प्रभावशीलता फिज़ूल नहीं है।
वे एक सीमा तक किसी भी वायरस से लड़ने में सक्षम हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. सौम्या स्वामीनाथन ने भी कहा है कि 'ओमिक्रॉन' के संदर्भ में किसी भी टीके का असर बिल्कुल कम हो जाएगा, ऐसा नहीं है। यानी टीके नए वायरस पर भी असरदार साबित होंगे। लेकिन किसी ठोस निष्कर्ष पर पहुंचने में अब भी 15-20 दिन का समय लगेगा, क्योंकि लक्षण, गंभीर असर, वायरस की ताकत और मृत्यु-दर आदि पर फिलहाल कोई वैज्ञानिक साक्ष्य और शोध सामने नहीं आया है। दरअसल दिसंबर माह आमतौर पर यात्रा और पर्यटन का होता है। लोग छुट्टियां लेकर मस्ती करने बाहर जाते हैं, लेकिन कोरोना के नए वायरस की आशंकाओं के मद्देनजर इस पर असर पड़ सकता है। हालांकि जुलाई-सितंबर '21 की दूसरी तिमाही के दौरान आर्थिक विकास दर 8.4 फीसदी रही है, लेकिन टे्रड, होटल, रेस्तरां और सेवा क्षेत्र में निजी मांग, खपत, खर्च और गतिविधियां अब भी धीमी हैं। इन्हीं क्षेत्रों में सबसे ज्यादा अनौपचारिक कामगार काम करते हैं, लिहाजा निजी आर्थिकी भी प्रभावित हो सकती है। फिलहाल व्यापक पाबंदियों का भी दौर नहीं आया है। निगरानी, टेस्ट और जीनोम बेहद महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं। फिलहाल डेल्टा वाली रणनीति से ही भारत सुरक्षित रह सकता है। यह सुखद है कि अभी संक्रमण के लक्षण हल्के और इलाज योग्य हैं, लेकिन खतरे की घंटी को अनसुना करना उचित नहीं होगा। कोविड प्रोटोकॉल का पालन करना निहायत ही जरूरी है। भीड़भाड़ से बचना, बार-बार हाथ धोना या सेनेटाइज करना, दो गज की दूरी और मास्क का प्रयोग जारी रहना चाहिए।

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