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- बुढ़ापे की जवानी
बुलाकी शर्मा: जन्मदिन सभी मनाते हैं, पर फ्लोरिडा की रेमंड सुलिवन ने पिछले दिनों अपना सौवां जन्मदिन जिस अंदाज से मनाया, कोई युवा भी वैसा करने का साहस नहीं कर सकता। द्वितीय विश्वयुद्ध में नर्स के रूप में सेवाएं दे चुकीं रेमंड ने दस हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ रहे विमान से छलांग लगा कर अपना सौवां जन्मदिन मनाया। उन्होंने जता दिया कि उम्र सिर्फ एक संख्या है। दृढ़ इच्छाशक्ति और आत्मबल से उम्र के आखिरी पड़ाव पर भी मन मुताबिक किया जा सकता है।
रेमंड की यह जीवटता और जीजिविषा समाज के ऐसे लोगों के लिए सबक है, जो उम्रदराज व्यक्तियों के अनुभवों और उनकी उपलब्धियों के प्रति उदासीन रहते हैं। जैसे-जैसे बुजुर्गियत बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे उनके प्रति अवहेलना भी बढ़ती जाती है। इसी गणतंत्र दिवस पर सवा सौ वर्षीय स्वस्थ-सानंद योग गुरु स्वामी शिवानंद को पद्म श्री से अलंकृत किया गया। बहुतों लिए यह कल्पनातीत था कि कोई व्यक्ति सवा सौ साल की उम्र तक आनंदमय जीवन जी सकता है।
पिछले दिनों एक शोक संदेश पढ़ कर बुजुर्गों के प्रति करुणा से भर गया। उसमें दिवंगत के नाम के बाद कोष्ठक में उनकी उम्र अस्सी वर्ष को रेखांकित किया गया था। क्या इसका अर्थ यह है कि परिजन कब से उनके जाने की बाट जोह रहे थे, पर दिवंगत ने जबर्दस्ती अपने जीवन की पारी बहुत लंबी खींच ली थी। मुझे उम्रदराज अस्सी पार उन लोगों के बारे में सोच कर सिहरन होने लगी, जिन्होंने इस शोक संदेश को पढ़ा होगा। वे निश्चित ही परिजनों पर स्वयं को बोझ समझने लगे होंगे। स्वस्थ होते हुए भी वे अपने को बीमार महसूस करने लगे होंगे।
मैं सुबह टहलने के लिए पार्क जाता हूं। वहां उम्रदराज लोग थोड़ा-बहुत घूमने के बाद मंडली बना कर बतियाने बैठ जाते हैं। आपसी हंसी-मजाक में बुजुर्गों का दुख-दर्द ताका-झांकी करने आता रहता है, पर वे उसे भगाने की असफल चेष्टा करते रहते हैं। घर-परिवार की इज्जत बनाए-बचाए रखने के लिए अपने दुखों की गठरी साथियों से छिपाए रखते हैं। एक दिन का वाकया है। टहलने के बाद बुजुर्ग मंडली गप गोष्ठी में लगी थी। बात-बेबात पर ठहाका लगा कर सबका ध्यान खींचने वाले एक बुजुर्ग साथी को सुस्त देख कर एक साथी ने पूछा- चुप-चुप कैसे हैं आज भाई साहब? उन्होंने जवाब दिया- अरे भाई, आज सुबह की चाय नहीं मिल पाने से थोड़ी सुस्ती है, और कोई बात नहीं।
दूसरे साथी ने तत्काल मशविरा दिया- इस उम्र में हमें अपनी जरूरतें कम से कम कर देनी चाहिए। हम पेंशनभोगियों को सुबह-शाम का खाना मिल जाता है, वह कम है क्या? पेंशन के बदले घरवालों से ज्यादा की उम्मीद ही परेशानी का कारण है। अपनी बात पर वे हंसे और दूसरे साथी भी मुंह फाड़ कर ऐसे हंसे जैसे कोई चुटकुला सुना हो। जबकि हकीकत में उस दिखावटी हंसी के आवरण में सबका अपना-अपना दर्द छिपा हुआ था। कमोबेश सबके साथ ऐसा होता रहा है। स्थितियों से समझौता करते हुए सबने अपनी जरूरतें कम से कम कर रखी हैं, फिर भी लोकलाज से यह भ्रम बनाए रखने की कोशिश में रहते हैं कि हमारे ठाठ-बाट पहले जैसे ही हैं।
पूरी दुनिया में उम्रदराज लोगों की प्राय: उपेक्षा होती है। आर्थिक रूप से कमजोर को घोर उपेक्षा का सामना करना पड़ता है, वहीं आर्थिक रूप से संपन्न को मानसिक क्लेश झेलने पड़ते हैं। परिजन यह मान कर चलते हैं कि अब उनका जो जीवन है, वह बोनस का है। पता नहीं, कब वे यहां से रुखसत हो जाएं। इसलिए वे बुजुर्गों पर धन-संपति का बंटवारा करने का दवाब बनाने लगते हैं। वे किसी नेक काम में खर्च करना चाहते हैं तो उसे फिजूलखर्ची बता कर उन्हें रोका जाता है। अपने मन मुताबिक काम करने की छूट कम ही बुजुर्गों को है, अधिकांश को मानसिक दवाब झेलना पड़ता है।
उम्रदराज लोगों को सुविधाएं मुहैया कराने के लिए केंद्र सरकार ने मुहिम शुरू की है। सभी राज्यों से बुजुर्गों से जुड़ी सुविधाएं जुटाने के लिए सुझाव मांगा गया है। कल्याणकारी सरकारी योजनाएं बनती रहती हैं, पर आम जन को उनके बारे में जानकारी ही नहीं मिल पाती। वे सफल तभी हो पाती हैं जब जनता अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहे। बुजुर्गों के मान-सम्मान के लिए सबसे पहले हम सबको जागरूक होना होगा। बुजुर्गों की जरूरतों को पूरा ध्यान रखना होगा। उनकी अवहेलना नहीं, आदर करना सीखना होगा। तभी हम उनके अनुभवों के खजाने का आनंदभाव से उपभोग कर सकेंगे।
बुजुर्गों को भी यह सोच कर हताश-निराश नहीं रहना चाहिए कि अब बस बचे हुए दिन काटने हैं। उम्र तो सिर्फ आंकड़ा है। उन्हें अपनी जिजीविषा-जीवटता बनाए रखनी है। जार्ज बर्नाड शा का यह कथन याद रखते हुए स्वयं को जवान समझते रहना है- चालीस जवानी का बुढ़ापा है, पचास बुढ़ापे की जवानी है।