सम्पादकीय

पुराना युग, नए सुल्तान

Rani Sahu
9 March 2022 6:51 PM GMT
पुराना युग, नए सुल्तान
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रिश्वत लेना और देना अपराध है

रिश्वत लेना और देना अपराध है। जब से इस देश ने होश संभाली, आज़ादी के खुलेपन में सांस ली, तब से यहां हर सरकारी कार्यालय में ऐसे सूचनापट्ट देख कर लोग चौंक उठते थे। एक स्वस्थ और मुक्त समाज के सजग प्रहरी बनने की लालसा उनके मन में जाग उठती। एक ऐसा साफ-सुथरा नैतिक मूल्यों को समर्पित समाज लोगों के दृष्टि बिम्ब में उभरता जिसमें राम राज लौट आया है। लोग आदर्श जीवन जीते हुए देश के नव-निर्माण में जुटे हैं। लेकिन धीरे-धीरे समय की धूल आदर्शो के इस धुले पुंछे चेहरे पर पड़ती रही। आजकल तलाश भी करो तो रिश्वत की मनाही करने वाले ये सूचनापट्ट कहीं अपना प्रभाव दिखाते नज़र नहीं आते। बल्कि अभी एशिया के सत्तरह देशों का सर्वेक्षण 'ट्रांसपेरेंसी इंटर नैशनल' जैसे एक खोजी संस्थान ने किया है। उनका सबसे प्रमुख निष्कर्ष इस शोध में यह रहा कि इन सत्तरह देशों में रिश्वतखोरी में कोई देश अव्वल नंबर पर है तो वह है भारत। एक ऐसा देश जिसे हर प्रतियोगिता में पिछड़ने की आदत हो गई है।

जिस देश के नागरिकों को हर विकास और सुधार प्रतियोगिताओं की कतार में अंतिम व्यक्ति के रूप में खड़े होने का दर्जा मिला हो, वहां एक स्थापित खोज यह कह रही है कि एशिया के इन देशों में भारत यहां अव्वल नंबर पर आ गया है। यह उन लोगों के लिए कितने गर्व की बात हो सकती है जो कल एक फटीचर झोंपड़ी भी न पा सके थे, आज अट्टालिका हो गए। कल उधार की साइकिल ले उड़ने की फिराक में रहते थे, आज बीएमडब्ल्यू को भी बीते युग की बात कह उससे आलीशान गाड़ी की तलाश में लगे हैं। जो अप्रमाणित था उसे प्रमाणित करने में लगे हैं कि हथेलियों पर भी सरसों उगाई जा सकती है। जि़ंदगी तेज़ी से बदल रही है। कितनी नई बातें हमारी जि़ंदगी का सामान्य हिस्सा बन गई हैं। उसमें एक बात यह भी है कि इस देश के अधिकांश नागरिक उन सब आज़ाद बरसों में एक नया सत्य पा गए कि यहां कोई भी काम सीधे और सच्चे रास्ते से नहीं हो सकता। ऐसे रास्तों की तलाश उन फुटपाथी लोगों के लिए बच गई है, जो हर मंजि़ल को पाने के लिए शार्टकट की तलाश करते हैं और सफल होते हैं। कभी कहा जाता था 'प्यादे से फर्जी भयो टेढ़ो-टेढ़ो जाए।' अब बात बदल गई, कहते हैं कि प्यादे से सुल्तान भयो, हर टेढ़े और गलत को सीधा और सही बता कर।
चले थे राम युग की स्थापना के प्रयास में देश की आज़ादी के बाद। राम युग तो कहीं आदर्शवाद के चुकते धुंधलके में खो गया। पल्ले आया रावण राज जिसमें भ्रष्ट नेताओं, ठोंसू अफसरों और धाकड़ माफिया की तिकड़ी हर इलाके में धड़ल्ले से अपना कीला ठोंकती है और इसे नव समाज का नाम देती है। तरक्की का मार्ग प्रशस्त होता जा रहा है। अब तो इस रावण राज का सहयोगी विभीषण राज भी हो गया, जिसमें चुनाव जीते आया रामों पर गया रामों का ठप्पा लग जाता है। उसे कानूनी और सामाजिक स्वीकृति भी मिल जाती है। किसी ने हमें पूछा, अरे यहां तो राष्ट्रीय एकता का सप्ताह मनाने के लिए वंदनवार अभी सूखे भी नहीं। अभी तो 'एक देश एक कर, एक देश एक बाज़ार', 'एक देश एक ड्राइविंग लाइसैंस' का नारा लगाने वालों ने 'एक देश एक चुनाव' का नारा उठाया ही है कि यह अपने नाती-पोतों तक अपनी गद्दी की विरासत सुरक्षित रख देने का सपना देखने के नीचे से उनकी बैसाखियां किसने खींच दी? अभी तक नहीं जानते कि आजकल नए दावों, नई घोषणाओं और नए वचनों का कोई मोल नहीं रह गया। ज़माना इतनी तेज़ी से बदल रहा है कि कल की घोषणा आज एक ऊल-जलूल प्रहसन बन कर रह जाती है।
सुरेश सेठ


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