सम्पादकीय

मरहम का वक्त

Subhi
24 April 2021 1:57 AM GMT
मरहम का वक्त
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ऑक्सीजन का अभाव न केवल दुखद, बल्कि पूरे देश के लिए एक अवसर भी है।

ऑक्सीजन का अभाव न केवल दुखद, बल्कि पूरे देश के लिए एक अवसर भी है। यह सबक है कि हम अपनी स्वास्थ्य व्यवस्था को इस तरह दुरुस्त करने में लग जाएं कि फिर कभी ऐसी महामारी आए भी, तो हमें परेशान न करे। अकेले दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में अगर 24 घंटे में 25 मरीजों की मौत हुई है, तो देश के दूसरे अस्पतालों में क्या हो रहा होगा, इसका अंदाजा हम सहज ही लगा सकते हैं। यदि बहुत बीमार मरीजों की मौत हुई है, तो भी यह हमारे लिए बड़े दुख की बात है, लेकिन अगर ये मौतें ऑक्सीजन से जुड़ी किसी कमी के कारण हुई हैं, तो हमारी व्यवस्था के लिए शर्मनाक है। निजी अस्पतालों को सुविधाओं और संसाधनों के लिए जाना जाता है, ऐसे ही अस्पतालों में गंगाराम अस्पताल भी शामिल है। ऐसे अस्पतालों से यह भी उम्मीद की जाती है कि वे सार्वजनिक अस्पतालों के सामने एक आदर्श पेश करेंगे। सार्वजनिक अस्पतालों पर जो दबाव बना हुआ है, वह कोई नया नहीं है, लेकिन जब निजी अस्पताल भी हांफने लगे हैं, तब यह पूरे देश के लिए चिंता की बात है। विगत दशकों में जिस तरह से निजी अस्पतालों को फलने-फूलने दिया गया है और जिस तरह से निजी अस्पतालों का आकार-प्रकार व संख्या बढ़ी है, उसी हिसाब से उनसे उम्मीदें भी हैं।

दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी से आपात स्थिति है, तो प्रधानमंत्री के साथ बैठक में भी इस पर तकरार आश्चर्य की बात नहीं है। नेताओं के बीच तकरार बढ़ना तय है, क्योंकि दोषारोपण की प्रवृत्ति पुरानी है, लेकिन अब जब नेताओं के बीच संघर्ष हो, तो आम लोगों को सचेत रहना चाहिए और याद रखना चाहिए कि जब जरूरत थी, तब राजनीतिक दल कैसा व्यवहार कर रहे थे? यह समय पार्टियों के झंडे लहराने का नहीं है, अब बात देश के झंडे पर आ गई है। भारत कोरोना ही नहीं, अभावों का भी एक बड़ा केंद्र नजर आ रहा है। अभी महीने भर पहले ही हम दवाओं और टीके का अंतरराष्ट्रीय वितरण कर वाहवाही बटोर रहे थे। अब समय आ गया है कि हम अपनी मांग पहले पूरी करें। दुनिया इस बात को समझती है कि भारत एक बड़ी आबादी वाला देश है और यहां चिकित्सा व्यवस्था को चाक-चौबंद रखना उतना आसान नहीं है। हमने देखा है, जब अमेरिका या यूरोपीय देशों में कोरोना की लहर चरम पर थी, तब वहां भी चिकित्सा सेवाओं का ऐसा ही हाल था। पर उन देशों ने युद्ध स्तर पर इंतजाम किए। एक दवा कम पड़ी थी, तो डोनाल्ड ट्रंप भारत पर लगभग भड़क उठे थे। आज ट्रंप की उस नाराजगी को समझा जा सकता है। सोचिए, राष्ट्रीय राजधानी जब ऑक्सीजन मांग रही है, तब देश के बाकी इलाकों में क्या स्थिति होगी? राज्य सरकारों को भी स्वास्थ्य क्षेत्र में अपनी भूमिका को अच्छे से समझने की जरूरत है। राज्यों में विशेष रूप से बुनियादी सुविधाओं के लिए केंद्र सरकार से जरूरी संसाधन व धन मांगने की प्रवृत्ति होनी चाहिए। कोरोना हमें रुला-रुलाकर जो सिखा रहा है, वह हमें भूलना नहीं चाहिए। विफलता को मानने और गलतियां सुधारने की योग्यता-क्षमता होनी चाहिए। ऐसे मुश्किल समय में किसे राजनीति सूझ रही है, जरूर दर्ज होना चाहिए। गंगाराम या नासिक के हादसे तो चंद उदाहरण हैं कि सरकारें संभाल नहीं पा रही हैं। यह लोगों के दुख-दर्द पर मरहम लगाने का वक्त है, जो सरकारें इस काम को अंजाम देंगी, देश उन्हें हमेशा याद रखेगा।


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