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- तेल की धार
Written by जनसत्ता: वैश्विक बाजार में कच्चे तेल के लगातार बढ़ते दाम नए संकट का संकेत दे रहे हैं। सबसे बड़ा संकट तो यही कि कच्चा तेल महंगा होने से घरेलू बाजार में भी पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ेंगे। इससे महंगाई और बढ़ेगी और इसकी सीधी मार आम आदमी पर ही पड़ेगी। यों कच्चे तेल में तेजी पिछले कई महीनों से बनी हुई है, पर अब रूस-यूक्रेन विवाद ने मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। इस वक्त कच्चा तेल अट्ठानबे डालर प्रति बैरल तक आ गया है।
यह पिछले आठ साल में सबसे ज्यादा है। इस बात की भी आशंका है कि अगले कुछ महीनों में यह एक सौ बीस डालर तक भी जा सकता है। ऐसे में अभी यह पाना कठिन है कि आगे क्या होगा। और फिर सवाल कीमत तक ही सीमित नहीं है, कच्चे तेल की आपूर्ति की समस्या गहराने का भी डर बना हुआ है। ऐसे में घरेलू तेल कंपनियां क्या कदम उठाती हैं, यह देखने की बात है। पर जैसे अनिश्चितता भरे हालात बन गए हैं, उससे सरकार और तेल कंपनियों के लिए चुनौतियां बढ़ गई हैं।
गौरतलब है कि तीन-चार महीने पहले तक कच्चा तेल अस्सी-पिच्यासी डालर प्रति बैरल के बीच बना हुआ था। हालांकि तब भी यह कम नहीं था। दाम तो काफी समय से बढ़ ही रहे थे। लेकिन भारत में तेल कंपनियों ने पिछले साल दो नवंबर के बाद से पेट्रोल और डीजल के दाम अभी तक नहीं बढ़ाए हैं। जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल बयासी डालर से बढ़ कर सौ डालर प्रति बैरल तक पहुंच गया है। हालांकि दाम नहीं बढ़ाने के पीछे तेल कंपनियों का मकसद लोगों को राहत देना नहीं रहा होगा, बल्कि विधानसभा चुनावों के मद्देनजर रणनीति के तहत ही ऐसा किया होगा।
वरना पहले तो तेल कंपनियां लगातार दाम बढ़ाए ही जा रही थीं। पिछले साल कई महीनों तक पेट्रोल और डीजल सौ रुपए लीटर से ऊपर ही बिके। इसलिए अब तेल कंपनियों के सामने मुश्किल यह होगी कि वे घरेलू बाजार में दाम और आपूर्ति के संकट से कैसे निपटें। सरकार के सामने संकट महंगाई थामने का होगा। कच्चे तेल का असर खुदरा महंगाई पर तेजी से पड़ता है। पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ते ही आम आदमी के रोजमर्रा के इस्तेमाल वाली चीजें तुरंत महंगी हो जाती हैं। भारत में लोग लंबे समय से इसे भुगत ही रहे हैं।
आने वाले संकट से सरकार अनजान नहीं है। इसीलिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कच्चे तेल के बढ़ते दाम को बड़ी चुनौती बताया है। कच्चा तेल महंगा होने से सरकार का आयात बिल बढ़ जाता है। इससे विदेशी मुद्रा भंडार पर असर पड़ता है। हालांकि जैसा सरकार का दावा है, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत स्थिति में है। पिछले दो सालों में सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर कर लगा कर अपना खजाना भरा ही है। लेकिन तेल कंपनियों ने अगर फिर से पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाने शुरू कर दिए, जिसकी प्रबल संभावना है, तो महंगाई थामना सरकार के बूते के बाहर हो जाएगा।
खुदरा महंगाई वैसे ही रिजर्व बैंक के निर्धारित दो से छह फीसद के दायरे के बाहर बनी हुई है। अगर रूस-यूक्रेन में जंग छिड़ गई तो आपूर्ति गड़बड़ा सकती है। फिर तेल उत्पादक देशों का संगठन भी उत्पादन नहीं बढ़ा रहा है। भारत साठ फीसद से ज्यादा तेल इराक और सऊदी अरब जैसे देशों से खरीदता है। ऐसे में घरेलू बाजार में पेट्रोलियम उत्पादों के दामों को तार्किक स्तर पर रखते हुए लोगों को महंगाई की मार से कैसे बचाया जाए, सरकार को यह सोचना होगा।