सम्पादकीय

तेल का खेल है

Gulabi Jagat
24 Jun 2022 10:38 AM GMT
तेल का खेल है
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सम्पादकीय न्यूज
By NI Editorial
अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों ने उम्मीद की थी कि रूस पर उनके प्रतिबंध लगाने के बाद रूस के लिए तेल बेचना मुश्किल हो जाएगा। इससे उसकी अर्थव्यवस्था ढह जाएगी। लेकिन कई देशों ने इसे अपने लिए सस्ता तेल पाने का एक मौका बना लिया।
यूक्रेन युद्ध को लेकर पश्चिमी देशों की रणनीति अगर कारगर नहीं हुई है, तो उसका बड़ा कारण रूस के पास मौजूद तेल की ताकत है। अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों ने उम्मीद की थी कि रूस पर उनके प्रतिबंध लगाने के बाद रूस के लिए तेल बेचना मुश्किल हो जाएगा। इससे उसकी अर्थव्यवस्था ढह जाएगी। लेकिन कई देशों ने इसे अपने लिए सस्ता तेल पाने का एक मौका बना लिया। उनमें प्रमुख चीन और भारत हैं। नतीजा यह हुआ कि जहां तेल और प्राकृतिक गैस की महंगाई से अमेरिका और यूरोप में हाहाकार मचा हुआ है, वहीं भारत और चीन अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में हैं। इससे रूस को सहारा मिला। रूसी अर्थव्यवस्था उस तरह नहीं ढही, जिसकी उम्मीद पश्चिमी देशों ने की थी। उलटे डॉलर की तुलना में रूस की मुद्रा की कीमत रुबल आज सात साल के सबसे ऊंचे स्तर पर है।
ताजा आंकड़ों के मुताबिक मई में चीन ने रूस से अपना तेल आयात और बढ़ा दिया। अब वह रूस का सबसे बड़ा तेल आयातक बन गया है। उधर सऊदी अरब को पीछे छोड़ते हुए रूस चीन का सबसे बड़ा तेल निर्यातक बन गया है। चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। पिछले महीने उसने रूस से 84.2 लाख टन तेल आयात किया। फरवरी 2021 की तुलना में यह 55 प्रतिशत ज्यादा है। मई में चीन ने सऊदी अरब से 78.2 लाख टन तेल खरीदा था। 24 फरवरी को रूस ने यूक्रेन में सैन्य कार्रवाई शुरू की थी। जिन देशों ने इस कार्रवाई के लिए रूस की आलोचना नहीं की है, उनमें भारत के अलावा चीन का भी नाम है। चीन ने संयुक्त राष्ट्र में कई प्रस्तावों पर रूस का साथ भी दिया है। साथ ही अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों की स्थिति में उसके उत्पाद खरीद कर चीन ने रूस की आर्थिक मदद भी की है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की तेल के बारे में ताजा अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दो महीनों में भारत ने रूस से कच्चा तेल खरीदने के मामले में जर्मनी को पीछे छोड़ दिया है और वह उसका दूसरा सबसे बड़ा आयातक बन गया है।
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