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- अफसरों का अहंकार व...

रिटायरमेंट एक परिर्वतन है। जिस तरह मौसम बदलता है उसी तरह मनुष्य के जीवन में अच्छे व बुरे दिन आते रहते हैं। वक्त तो किसी का कभी भी पलटी मार सकता है। वक्त बड़े बड़ों को अपना आईना दिखा देता है। जब तक इनसान के पास अधिकार होता है तब तक वह इतने घमंड में रहता है कि उसको छोटे-मोटे व्यक्ति की कोई परवाह नहीं होती। अधिकार के लालच में वह सामान्यतः अपने जमीर को भी बेच देता है। अधिकारियों की तो बात और भी निराली होती है। वे अपने आप को जागीरदार समझने लगते हैं तथा कनिष्ठ अधिकारियों व आम जनता की ज्यादा परवाह नहीं करते। अधिकार की हेकड़ी से अपने निजी कार्यों को बड़ी आसानी से करवा लेते हैं। अधिकारी बनते ही उनके सिर पर न जाने कौन सा दम्भरूपी भूत सवार हो जाता है कि वे अपने मूलभूत मानवीय मूल्यों को ताक पर रख कर अपनी अलग सी संस्कृति बना लेते हैं। सफेदपोश व असामाजिक तत्व जैसे तैसे अधिकारियों के साथ अपने संपर्क बनाने में कामयाब हो जाते हैं। कुछ भ्रष्ट, अनाचारी व अहंकारी अधिकारी तो सहज मान लेते हैं कि उनके अधिकार, कार्यक्षेत्र बहुत असीमित हैं। ऐसा भी देखा गया है कि जब कोई अधिकारी किसी सार्वजनिक महत्व के पद पर आसीन हो जाता है तब वह अपने को दूसरे समकालीन अधिकारियों से ज्यादा गुणवान, चतुर व कर्त्तव्यनिष्ठ समझने लग जाता है। उनके अवांछनीय अभिमान की झलक तो उनके परिजनों विशेषतः उनकी बीवियों में भी देखने को मिलती है जब वो भी कनिष्ठ अधिकारियों पर अपना रौब झाड़ने लग जाती हैं।