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- ओडिशा : खतरे में...
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ऐसे में यहां के नैसर्गिक तंत्र से छोटी-सी छेड़छाड़ प्रकृति को स्थायी नुकसान पहुंचा सकती है।
खारास्रोता नदी में मीठे पानी की घटती क्षमता भीतरकनिका राष्ट्रीय उद्यान के लिए बड़ा खतरा बनती जा रही है। आईआईटी, हैदराबाद की जिस रिपोर्ट के आधार पर जिला प्रशासन इस नदी के माध्यम से पेयजल परियोजना तैयार कर रहा है, असल में वह रिपोर्ट ही निरापद नहीं हैं-इस रिपोर्ट के कुल 173 पृष्ठों में से 15 पेज इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री की नकल हैं।
यदि इस रिपोर्ट का पालन किया गया, तो संभव है कि 2050 तक भीतरकनिका की जैव विविधता और पर्यावरण तंत्र तहस-नहस हो जाए। ओडिशा के केंद्रपाड़ा जिले में राजकनिका विकास खंड में बरुनादिहा में प्रस्तावित विशाल पेयजल परियोजना न केवल इस छोटी सी नदी, बल्कि भीतरकनिका मैंग्रोव के अस्तित्व पर खतरा होगी। यह मैंग्रोव या आर्द्र भूमि ब्राह्मणी नदी और बैतरनी नदी डेल्टा में 650 किलोमीटर क्षेत्र में विस्तारित है। भीतरकनिका के पर्यावरण तंत्र में राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य और गरियामाथा समुद्री अभयारण्य शामिल हैं।
दिसंबर, 2020 में 'इंटिग्रेटेड मैनेजमेंट ऑफ वाटर ऐंड एनवायर्नमेंट' पर एक कार्यशाला का आयोजन भीतरकनिका में किया गया था। तब वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने बताया था कि भीतरकनिका मैंग्रोव में मीठे पानी का प्रवाह 2001 में जहां 74.64 प्रतिशत था, आज वह घटकर 46 फीसदी रह गया है। यदि इसके पानी को रोका-टोका गया, तो भीतरकनिका मैंग्रोव में खारा पानी बढ़ेगा, जो इसके पूरे तंत्र के लिए विनाशकारी होगा।
भीतरकनिका राष्ट्रीय उद्यान भारत का दूसरा सबसे बड़ा मैंग्रोव वन है। अभयारण्य में 55 विभिन्न प्रकार के मैंग्रोव हैं, जहां मध्य एशिया और यूरोप से आने वाले प्रवासी अपना डेरा जमाते हैं। यह ओडिशा में बेहतरीन जैव विविधता वाला दुर्लभ स्थान है और देश के खारे पानी के मगरमच्छों की सत्तर फीसदी आबादी यहीं रहती है।
यूनेस्को द्वारा संरक्षित इस मैंग्रोव को बढ़ते औद्योगिकीकरण और खनन से पहले से ही खतरा रहा है। तालचेर-अंगुल कोयला खदानों, स्टील और बिजली संयंत्र के साथ-साथ कलिंग नगर स्टील और पावर हब के लिए ब्राह्मणी नदी से भारी मात्रा में मीठा पानी पहले से ही खींचा जा रहा है। रेंगाली सिंचाई नहरों के पूरा हो जाने के बाद उसके लिए भी पानी की आपूर्ति इन्हीं नदियों से होगी।
मैंग्रोव में यदि समुद्र मुख से आ रहे खारे पानी और नदी के मीठे पानी का संतुलन नहीं रहा, तो यह तंत्र ही ध्वस्त हो जाएगा। मैंग्रोव में खारा पानी बढ़ने से मगरमच्छों के नदी की तरफ रुख करने से इंसान से उनका टकराव बढ़ सकता है। इस इलाके में हजारों लोग मछली पालन से आजीविका चलाते हैं। जाहिर है, उनकी रोजी-रोटी पर भी संकट है।
ध्यान रहे, ओडिशा के तट पर बढ़ रहे चक्रवातों के खतरे से जूझने में मेंग्रोव की भूमिका महत्वपूर्ण है। केंद्रपाड़ा का समुद्री तट गरियामाथा दुनिया में अचंभा कहे जाने वाले ओलिव रिडले कछुओं का प्रजनन स्थल भी है। ऐसे में यहां के नैसर्गिक तंत्र से छोटी-सी छेड़छाड़ प्रकृति को स्थायी नुकसान पहुंचा सकती है।
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