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- न्याय में बाधा
Written by जनसत्ता: सामान्यतया सत्ता के दबाव में पुलिस विपक्ष को कमजोर करने हेतु निरपराध के खिलाफ भी सीमा तोड़ कर कार्रवाई करती है। इसलिए हर बार सत्ता बदलने पर पूर्व में हुई ज्यादती का खमियाजा पुलिस को ही भुगतना पड़ता है और सत्ताच्युत लोग बाहर होते ही मुंह फेर लेते हैं। इसलिए सत्ताधारी और पुलिस दोनों को ही किसी के साथ ज्यादती में अति न करें, क्योंकि इसे कोर्ट सहन नहीं करती।
न्यायिक कदम उठते देख सत्तारुढ़ लोग मामलों को वापस ले लेते या कमजोर करने हेतु पुन: पुलिस का ही सहारा लेते हैं। अंततोगत्वा खिंचाई पुलिस की होने तथा मामलों की संख्या बढ़ने से न्यायालयों के कई महत्त्वपूर्ण मामले बाधित और लंबित हो जाते हैं। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का भी ऐसे मामलों को सुनने में समय जाया होता है और कोर्ट भी निर्णय देने के बजाय फटकार लगाकर इतिश्री कर लेती है।
आज देश के आधे हिस्से में बाढ़ है, तो आधे हिस्से में सुखाड़। बाढ़ और सुखाड़ दोनों की स्थिति देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। बाढ़ एक प्राकृतिक आपदा है, लेकिन विगत कुछ दशकों से मानव की गतिविधियां बाढ़ के लिए अधिक जिम्मेदार हैं। असम, गुजरात और महाराष्ट्र में बाढ़ से भारी तबाही देखी जा रही है।
विकास के नाम पर नदियों में अनगिनत बांध बनाए गए हैं। बांध के सहारे पानी को एकत्रित कर दूसरे क्षेत्रों में प्रवाहित किया जाता और नदियों की धारा को मोड़ दिया जाता है। नदियों की अपनी एक दिशा होती है। अगर हम उनके मार्ग बदलने का प्रयास करेंगे, तो बाढ़ के लिए हमें तैयार रहना चाहिए। बांध की वजह से नदियों में गाद की समस्या बढ़ रही है, और भ्रष्टाचार की वजह से गाद की सफाई सिर्फ कागजों पर हो रही है। नदियों के मूल स्वरूप के साथ छेड़छाड़ करना मानव को महंगा साबित हो रहा है। मानसून के दिनों में बारिश की हर बूंद को धरती के गर्भ तक पहुंचाने का प्रयास करना चाहिए, तभी हम जल संकट की समस्या का निदान कर पाएंगे।