- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- अड़ंगा : बढ़ती महंगाई...
x
अन्यथा महंगाई आर्थिक संकट का रूप ले सकती है।
आर्थिक विकास के मार्ग में महंगाई एक ऐसी फांस बनकर रह गई है, जिसका तत्काल स्थायी हल उपलब्ध ही नहीं है। बढ़ती महंगाई की दर का सदैव नकारात्मक रुख होता है। यह सदैव आर्थिक संकट का अंदेशा पैदा करती है। इससे गरीबों की क्रय क्षमता कम हो जाती है, तो अमीरों के वित्तीय निवेश का मूल्य भी घट जाता है। पिछले काफी समय से गरीबों और अमीरों के बीच की आर्थिक खाई लगातार बढ़ रही है। ऐसे में महंगाई का प्रति वर्ष नए रिकॉर्ड बनाना, गरीबों के जीवन को और दूभर बनाता है।
इसके अलावा, महंगाई सरकार के वित्तीय खर्च भी बढ़ाती है, क्योंकि सरकार को सामाजिक कल्याण योजनाएं चलानी पड़ती हैं। सामान्यतः किसी भी पदार्थ का मूल्य उसके उत्पादन लागत में वृद्धि के कारण होता है। इसमें कच्चा माल, मजदूरी, कुछ अन्य प्रत्यक्ष खर्च भी शामिल होते हैं। हालांकि महंगाई से होने वाला मुनाफा अंततः समाज के विभिन्न वर्गों में ही विभाजित होता है। चाहे सरकार द्वारा एकत्रित कर हो या किसी कंपनी का मुनाफा, उससे उसके अंशधारकों को लाभांश मिलता है या कर्मचारियों की वेतन वृद्धि होती है।
समय-समय पर सरकारों द्वारा महंगाई को नियंत्रण में रखने के प्रयास भी किए जाते हैं। इसमें मुख्यतः ब्याज की दरों में कमी की जाती है। इसका उद्देश्य जहां व्यक्ति को आर्थिक संरक्षण देना होता है, वहीं उसकी क्रय क्षमता में गिरावट को रोकना भी होता है, वरना अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आ सकती है। बढ़ती महंगाई ने कई देशों को आर्थिक संकट में डाला है। इसका ताजा उदाहरण श्रीलंका की आर्थिक बर्बादी है। आजकल अमेरिका में भी इसे लेकर खूब असंतोष है।
अभी अमेरिका में महंगाई दर 8.5 प्रतिशत, इंग्लैंड में सात प्रतिशत, जर्मनी में 7.4 प्रतिशत है। भारत में वर्तमान समय में यह दर छह प्रतिशत से अधिक है, जो बड़ी चिंता का सबब है। अभी भारत में बेरोजगारी की दर बहुत अधिक है। महामारी के बाद जैसे-तैसे जिंदगी पटरी पर आई तो है,परंतु मध्यवर्गीय व्यक्ति अपनी आर्थिक बचत में महंगाई के कारण कमी महसूस कर रहा है। पिछले तीन वर्षों से असंगठित क्षेत्रों के लोगों की आय में बढ़ोतरी नहीं हुई है।
रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध ने जहां कच्चे तेल के मूल्यों में बहुत बढ़ोतरी की है, वहीं इसके चलते घरेलू बाजार में भी मूल्य में करीब 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पेट्रोल व डीजल की बढ़ी कीमतों ने परिवहन लागत बढ़ाया है, जिससे विभिन्न पदार्थों के मूल्यों में वृद्धि हुई है। हालांकि इससे आर्थिक संकट का अंदेशा करना पूर्णतया गलत है, क्योंकि अर्थव्यवस्था धीर-धीरे पटरी पर लौट रही है।
अप्रैल में जीएसटी का संग्रहण मार्च, 2022 से 25 हजार करोड़ रुपये ज्यादा हुआ है, जो ऐतिहासिक सफलता है। अब सरकार को चाहिए कि इसका उपयोग जनकल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से गरीब और निर्धन व्यक्ति तथा बुनियादी संरचनाओं के विकास में करे, ताकि नए रोजगारों का सृजन हो व लोगों की आय में बृद्धि हो। अन्यथा महंगाई आर्थिक संकट का रूप ले सकती है।
सोर्स: अमर उजाला
Next Story