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उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत
उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने एक टिप्पणी की और सारा सेक्यूलर समाज (कुछ दूसरे लोग भी) उसको लेकर सोशल मीडिया पर टूट पड़ा। इसमें कई दिन निकल गए। लेकिन इससे हासिल क्या हुआ? यही समस्या है। देश में कोई टुकड़े-टुकड़े गैंग हो या नहीं, लेकिन एक बड़ा समूह ऐसा जरूर है, जो टुकड़े-टुकड़े में विरोध जताने से आगे नहीं बढ़ पाता।
समस्या यह है कि वह सोशल मीडिया का एडिक्ट है और उसे इस पर कोई विवाद या बहस करने का मुद्दा चाहिए। इस लिहाज से तीरथ सिंह रावत का बयान जरूर माफिक था। लेकिन समझने की बात यह है कि रावत ने जो कहा, वह उस विचारधारा की सोच है, जिससे वे संबंध रखते हैं। ऐसा पहली बार नहीं है कि किसी ने ऐसी बात कही हो।
गौरतलब यह है कि वो विचारधारा आज देश की सर्व-प्रमुख विचारधारा है, जिसे लगातार जनादेश मिल रहा है। जिन लोगों को रावत के रिप्ड जींस वाले बयान पर एतराज है, उनके पास क्या कोई ऐसी रणनीति है, जो समग्र रूप से इस विचारधारा को चुनौती दे सके और जनता के बीच अपनी उस राय पर बहुमत तैयार कर सके? अगर ऐसा नहीं है, तो बाकी बातें बेकार हैं। ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स पर मखौल उड़ाने या रिप्ड जीन्स पहने हुए फोटो डालने से रावत या उन जैसा सोचने वाले लोगों पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
रावत ने देहरादून में बाल संरक्षण आयोग की ओर से नशा मुक्ति को लेकर कार्यशाला में कहा था कि युवा पीढ़ी गलत दिशा में जा रही है। इसी सिलसिले में रावत ने अपनी एक विमान यात्रा का जिक्र किया। कहा- 'मेरे बगल में एक बहनजी बैठी थी। मैंने उनकी तरफ देखा नीचे गम बूट थे। जब और ऊपर देखा तो जींस घुटने से फटी हुई थी। उनके साथ दो बच्चे थे। महिला खुद भी एनजीओ चलाती थी।' रावत ने पूछा कि फटी जींस में महिला समाज के बीच जाती है, तो वहा क्या संस्कार देगी? इससे समाज में क्या संदेश जाएगा?रावत का यह बयान तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। फिर उस पर चर्चा शुरू हो गई। लड़कियों ने कहा- "हमारे कपड़े बदलने से पहले अपनी मानसिकता बदलिए।" लेकिन महज सोशल मीडिया पर ये कहना दीवार पर सिर मारने से ज्यादा कुछ नहीं है।
Gulabi
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