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पांच साल की उम्र तक के बच्चों में मोटापा
डा. मोनिका शर्मा। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-पांच के ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश में पांच साल की उम्र तक के बच्चों में मोटापा बढ़ा है। सर्वेक्षण बताता है कि 33 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में मोटे बच्चों की संख्या में इजाफा हुआ है। वर्ष 2015-2016 के बीच किए गए पिछले सर्वे में मोटापे से ग्रस्त बच्चों की संख्या 2.1 प्रतिशत थी, जो अब बढ़कर 3.4 प्रतिशत हो गई है। सर्वे के मुताबिक शहरी इलाकों में पांच साल से कम उम्र के चार प्रतिशत और ग्रामीण इलाकों में 4.5 प्रतिशत बच्चे मोटापे के शिकार हैं।
बच्चों के बढ़ते वजन के आंकड़े वाकई चिंतनीय हैं, क्योंकि मोटापा कई मानसिक और शारीरिक समस्याओं की भी जड़ है।दरअसल बच्चों में खान-पान की अस्वस्थ आदतें और शारीरिक सक्रियता से दूरी, दोनों ही वर्तमान जीवनशैली में आम हैं। विशेषज्ञों ने भी मोटापे के लिए शारीरिक निष्क्रियता और अस्वास्थ्यकर भोजन को ही जिम्मेदार बताया है। गौरतलब है कि बच्चों में बढ़ते वजन की समस्या की यही रफ्तार रही तो वर्ष 2025 तक भारत बच्चों के मोटापे के मामले में दुनिया में दूसरे स्थान पर होगा। चिंतनीय है कि बच्चों में बढ़ता जंक फूड का सेवन उन्हें मोटा और आलसी बनाने के साथ ही उनकी कार्यक्षमता भी कम कर रहा है।
ऊर्जा और उत्साह से भरे होने के बजाय बच्चे थके और उत्साह हीन लगते हैं। व्यक्तित्व और विचार, दोनों पर इस जीवनशैली का असर पड़ रहा है। मोटापे से जूझ रहे बच्चों के मनोवैज्ञानिक उलझनों का शिकार होने की भी काफी आशंका होती है। इतना ही नहीं कम उम्र में ही कई सारी जीवनशैली जनित बीमारियां बच्चों को घेर रही हैं। 2019 की एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार देश में 10 में से एक बच्चा प्री-डायबिटिक है।हमारे देसी खान-पान और सक्रिय जीवनशैली वाले परिवेश में कुपोषण का ही एक रूप बन चुके मोटापे की यह दस्तक चिंतनीय है। बच्चों में जंक फूड खाने का बढ़ता चाव और बहुत हद तक अभिभावकों की अनदेखी इसका कारण है।
कभी बच्चों का मन रखने के लिए तो कभी अपनी व्यस्तता के चलते अभिभावक बच्चों की भोजन संबंधी आदतों के बदलाव को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। साथ ही बाजार की आक्रामक रणनीति भी बच्चों के सामने खान-पान के ललचाऊ विकल्प परोसने से नहीं चूक रही। स्वाद के जाल में फंसकर सेहत बिगाड़ रहे बच्चों को भोजन की सही आदतों से जोड़ने में परिवार की भूमिका सबसे अहम है। मोटे अनाज का सेवन, घर में पका ताजा पौष्टिक भोजन करना, योग, ध्यान और घरेलू मोर्चे पर भी शारीरिक रूप से सक्रिय रखने वाली भारतीय जीवनशैली का आज दुनिया भर में अनुसरण किया जा रहा है। दुखद है कि हमारे परिवारों से गायब हो रहा रहन-सहन का यह जमीनी अंदाज भावी पीढ़ी की सेहत के लिए एक बड़ा खतरा बन रहा है।
(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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