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- ओबीसी वोट बैंक बिल!
ओबीसी आरक्षण संविधान (127वां संशोधन) बिल को संसद में पारित करना विशुद्ध चुनावी राजनीति है, लिहाजा विपक्ष ने मोदी सरकार के साथ एकजुट होकर संसद में चर्चा और बिल को पारित कराने को सहमति दी है। यह विपक्ष की राजनीतिक मज़बूरी भी है, क्योंकि ओबीसी वोट बैंक को नाराज कर राजनीति करना असंभव है। यदि यह बिल पारित होकर कानून बनता है, तो राज्य सरकारों को अतिरिक्त शक्तियां मिल सकेंगी कि वे परिस्थितियों और ओबीसी की संख्या के आधार पर जातियों को आरक्षण की सूची में डाल सकेंगी। ओबीसी सूची में लगातार संशोधन कर सकेंगी। संसद का यह निर्णय सर्वोच्च न्यायालय के समानांतर होगा, क्योंकि मराठा आरक्षण के केस में सुप्रीम अदालत का फैसला था कि राज्य सरकारों को ऐसे आरक्षण और सूची में ओबीसी को शामिल करने का अधिकार ही नहीं है। यह विधेयक राजनीतिक सोच के मद्देनजर इसलिए है, क्योंकि अन्य पिछड़ा वर्ग सबसे बड़ा और व्यापक समुदाय है। सबसे ताकतवर वोट बैंक है, लेकिन उसका सियासी जुड़ाव विभाजित है। ओबीसी वोट बैंक अलग-अलग राजनीतिक दलों के प्रति प्रतिबद्ध है। मसलन-सपा और राजद के पक्ष में अधिकतर यादव समुदाय है। दक्षिण भारत में भी ओबीसी बहुतायत में हैं, लिहाजा वहां कई संदर्भों में आरक्षण 50 फीसदी से अधिक है।