सम्पादकीय

हुक्‍मरानों तक अपनी आवाज पहुंचाने के लिए 19वीं सदी से हो रहे हैं नग्‍न विरोध प्रदर्शन, एक नजर उस इतिहास पर

Gulabi
13 July 2021 8:13 AM GMT
हुक्‍मरानों तक अपनी आवाज पहुंचाने के लिए 19वीं सदी से हो रहे हैं नग्‍न विरोध प्रदर्शन, एक नजर उस इतिहास पर
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गत शनिवार को जर्मनी की राजधानी बर्लिन में एक ऐसी घटना हुई, जिसने

मनीषा पांडेय। गत शनिवार को जर्मनी की राजधानी बर्लिन में एक ऐसी घटना हुई, जिसने पूरी दुनिया का ध्‍यान आकर्षित किया. दुनिया भर के अखबारों के मुखपृष्‍ठ उस घटना की तस्‍वीरों से पट गए. दरअसल हुआ यूं कि अचानक सैकड़ों की संख्‍या में स्‍त्री और पुरुष बर्लिन की सड़कों पर उतर आए. वे सरकारी दमन की नीति के खिलाफ और लैंगिक समानता के लिए विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. अगर यह एक सामान्‍य प्रदर्शन होता तो इसमें कोई अचंभे की बात नहीं थी. लेकिन जिस चीज ने इस प्रदर्शन की ओर लोगों का ध्‍यान खींचा वो ये था कि ये प्रदर्शन न्‍यूड होकर किया जा रहा था. बहुत सारे पुरुषों ने महिलाओं के अंतर्वस्‍त्र पहन रखे थे और बहुत सारी महिलाएं बिलकुल टॉपलेस थीं. प्रदर्शनकारी सरकार और समाज दोनों से लैंगिक समानता की मांग कर रहे थे.

यह प्रदर्शन अकारण नहीं हुआ था. इसके पीछे भी एक खास वजह थी.
दरअसल हुआ यूं था कि बीते दिनों बर्लिन वॉटर पार्क में एक फ्रांसीसी महिला गैब्रिएल लेब्रेटन टॉपलेस होकर बैठी धूप सेंक रही थी. तभी वहां पुलिस आ गई और उसने गैब्रिएल को टॉप पहनने के लिए कहा. जब गैब्रिएल ने ऐसा करने से इनकार कर दिया तो पुलिस से बर्बरतापूर्वक गैब्रिएल को वॉटर पार्क से बाहर खदेड़ दिया. पुलिस की इस हरकत पर लोगों और खासतौर पर बर्लिन की महिलाओं में खासी नाराजगी थी.

इसी घटना के खिलाफ शनिवार को सैकड़ों की संख्‍या में लोग बर्लिन की सड़कों पर टॉपलेस होकर उतर आए थे. उन्‍होंने अपने निर्वस्‍त्र शरीर पर तरह-तरह के नारे और स्‍लोगन लिख रखे थे. जैसेकि माय बॉडी इज नॉट योर पोर्न या माय बॉडी माय चॉइस. शनिवार से पूरे सोशल मीडिया पर इस घटना की तस्‍वीरें वायरल हो रही हैं और इसे लेकर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं.

न्‍यूड प्रोटेस्‍ट सही है या गलत, इसे लेकर कई तरह की राय हो सकती है. अलग-अलग बुद्धिजीवी समूहों का इस पर अलग मत है कि अपनी जरूरी बात और गंभीर सवालों को उठाने के लिए यह तरीका कितना कारगर है. लेकिन एक बात तो तय है कि इतिहास में ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि अपने विरोध को जाहिर करने के लिए लोगों को न्‍यूड प्रोटेस्‍ट का सहारा लिया हो. इतिहास में पहले भी कई दफा ये हो चुका है, जब किसी क्रूर घटना, सरकारी फरमान या जेंडर बराबरी के सवाल पर स्‍त्री-पुरुष दोनों ने न्‍यूड होकर विरोध प्रदर्शन किया.
विक्‍टोरिया बैटमेन और नेकेड एंटी ब्रेक्जिट प्रोटेस्‍ट
विक्‍टोरिया बैटमेन ब्रि‍टेन की फेमिनिस्‍ट इकोनॉमिस्‍ट हैं और कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्‍स की फैलाे भी. विक्‍टोरिया बैटमेन ब्रेक्जिट के दौरान लगातार काफी मुखर होकर उसका विरोध कर रही थीं. यहां तक कि उन्‍होंने ब्रेक्जिट के विरोध में नग्‍न होकर अपना प्रोटेस्‍ट दर्ज किया. ब्रेक्जिट की पूरी बहस और रेफरेंडम के दौरान विक्‍टोरिया कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के इकोनॉमिक्‍स डिपार्टमेंट की एक मीटिंग में नेकेड होकर गईं. उनके सीने पर लिखा हुआ था- "Brexit leaves Britain naked." बाद में उन्‍हें BBC4 के एक रेडियो प्रोग्राम में भी बुलाया गया, जहां वह नेकेड होकर गईं. पूरे ब्रेक्जिट प्रोटेस्‍ट के दौरान उन्‍होंने कई मौकों पर निर्वस्‍त्र होकर विरोध प्रदर्शन किया.

नेकेड बाइक राइड
ये एक विश्‍वव्‍यापी आंदोलन है, कपड़े पहनने और न पहनने का भी विकल्‍प है. बड़ी संख्‍या में इस आंदोलन में लोग नग्‍न होकर भी साइकिल चलाते हैं. 2003 में कनाडा के सोशल एक्टिविस्‍ट और फिल्‍ममेकर कोनार्ड श्मिद ने पहले वर्ल्‍ड नेकेड बाइक राइड डे का आयोजन किया. यह दुनिया का पहला इस तरह का आयोजन था. यह आयोजन एक साथ चार महाद्वीपों के 10 देशों और 28 शहरों में किया गया, जिसमें सैकड़ों की संख्‍या में कलाकारों और एक्टिविस्‍टों ने हिस्‍सा लिया. लोगों से निर्वस्‍त्र होकर साइकिल चलाई. वे युद्ध के विरोध में और मानवता और शांति के संदेश को फैलाने के लिए ये प्रदर्शन कर रहे थे. साथ ही इसका मकसद बॉडी पॉजिटिविटी को बढ़ावा देना, पर्यावरण की रक्षा के लिए पेट्रोल और ऑइल पर हमारी निर्भरता का विरोध करना और मानव स्‍वतंत्रता का संदेश फैलाना था. 2003 में शुरू हुआ यह नेकेड बाइक राइड मूवमेंट दुनिया के 17 देशों और 74 शहरों में फैल चुका था. अमेरिका से लेकर लंदन तक और हंगरी से लेकर पैराग्‍वे तक.

ब्‍यूनस आयर्स में महिलाओं का नग्‍न प्रदर्शन
पूरे लैटिन अमेरिका में समय-समय पर महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन होते रहते हैं, लेकिन 2017 में महिलाओं ने अर्जेंटीना की राजधानी ब्‍यूनस आयर्स में एक अनोखा प्रदर्शन किया. महिलाओं के साथ बढ़ती हिंसा और उस पर सरकार की उपेक्षा से तंग आकर वहां महिलाओं ने यह कदम उठाया था. जून, 2017 में 100 से ज्‍यादा महिलाएं ब्‍यूनस आयर्स में कासा रोसादा के सामने इकट्ठी हो गईं. कासा रोसादा एक महल जैसी विशालकाय इमारत है, जो अर्जेंटीना के राष्‍ट्रपति का निवास और दफ्तर दोनों है. ये महिलाएं राष्‍ट्रपति भवन के सामने बिलकुल निर्वस्‍त्र खड़ी होकर प्रदर्शन कर रही थीं क्‍योंकि उनके देश में आए दिन महिलाओं के साथ हिंसा और बलात्‍कार की घटनाएं हो रही थीं और सरकारी आंखें मूंदकर सो रही थी.

इस्राइल में महिलाओं का नग्‍न प्रदर्शन
21वीं सदी की शुरुआती दशक अरब दुनिया में तरह-तरह के सामाजिक आंदोलनों का समय था. इस दशक को इतिहास में अरब स्प्रिंग के नाम से जाना जाता है. इस दौरान इस्‍लामिक देशों की महिलाओं ने अपनी आजादी की मांग को लेकर इंटरनेट पर अपनी न्‍यूड तस्‍वीरें पोस्‍ट करनी शुरू कीं. मिस्र की महिला अधिकार कार्यकर्ता और इंटरनेट फ्रीडम एक्टिविस्‍ट आलिया माग्‍दा एलमहदी को अपना देश छोड़कर भागना पड़ा और यूरोप में शरण लेनी पड़ी. इसी तरह ट्यूनीशिया की विमेन राइट्स एक्टिविस्‍ट आमिना टायलर को भी यूरोप में शरण लेनी पड़ी. अपने देश में इन दोनों ही महिलाओं की जान को खतरा था. आलिया एलमहदी के समर्थन में 19 नवंबर, 2011 को इस्राइल की महिलाओं ने तेल अविव में एकत्रित होकर अपना एक नेकेड फोटो शूट कराया और वो फोटो इंटरनेट पर डाल दी. यह उनका तरीका था आलिया एलमहदी के प्रति अपनी एकजुटता प्रदर्शित करने और इस्‍लामिक स्‍त्री विरोधी अतिवाद के खिलाफ अपना विरोध प्रदर्शित करने का.
वैंकूवर लॉ कोर्ट के सामने नग्‍न प्रदर्शन
कनाडा के मूर्तिकार और कलाकार रिक गिब्‍सन ने 8 फरवरी, 2017 को कड़कड़ाती ठंड के मौसम में वैंकूवर लॉ कोर्ट के सामने नग्‍न होकर प्रदर्शन किया. उसी समय कनाडा ने ह्यूमन जीनोम की जेनेटिक इंजीनियरिंग पर प्रतिबंध लगाया था और रिक गिब्‍सन उस प्रतिबंध का विरोध कर रहे थे. उस समय तापमान माइनस 7 डिग्री था और उस बर्फीले मौसम में रिक 11 मिनट तक बिना कपड़ों के वॉक किया.
यूक्रेन में फेमेन का न्‍यूड प्रोटेस्‍ट
2008 में यूक्रेन में महिलाओं ने मिलकर एक रेडिकल फेमिनिस्‍ट ग्रुप बनाया, जिसका नाम था फेमेन (FEMEN). तब से लेकर अब तक यह समूह कई बार विभिन्‍न मुद्दों पर अपना विरोध दर्ज करने के लिए सार्वजनिक तौर पर न्‍यूड प्रोटेस्‍ट करता रहता है. 2009 में जब उन्‍होंने पहली बार सेक्‍स टूरिज्‍म और जेंडर वॉयलेंस के खिलाफ नेकेड प्रोटेस्‍ट किया तो पूरी दुनिया के मीडिया का ध्‍यान उनकी तरफ गया. 2011 के बाद से फेमेन की गतिविधियां सिर्फ यूक्रेन तक ही सीमित नहीं रह गईं. उन्‍होंने दुनिया के बाकी हिस्‍सों में भी विरोध प्रदर्शन करना शुरू किया.
2012 में जब स्विटजरलैंड के दावोस में वर्ल्‍ड इकोनॉमिक फोरम का प्रोग्राम चल रहा था तो वहां फेमेन की तीन महिला एक्टिविस्‍टों ने टॉपलेस होकर उसका विरोध किया. उनका कहना था कि विरोध के लिए उन्‍होंने इतना रेडिकल और प्रवोकेटिव तरीका इसलिए अख्तियार किया क्‍योंकि सामान्‍य तरीके से वो अपनी बात दुनिया तक पहुंचा ही नहीं सकती थीं. जब वो इस तरह से अपनी बात कहती हैं तो भले ऊपरी तौर पर लोगों को लगे कि ये तरीका रेडिकल है, लेकिन कम से कम उन तक हमारा संदेश पहुंचता तो है. एक बार के लिए वो सुनते तो हैं.
मणिपुर में महिलाओं का निर्वस्‍त्र विरोध प्रदर्शन
11 जुलाई, 2004 को मणिुपर में थंगजाम मनोरमा नाम की एक 32 साल की महिला को भारतीय अर्द्धसैनिक बल की असम राइफल्‍स के सिपाहियों ने उसके घर से आधी रात में उठा लिया. अगले दिन सुबह गोलियों से छलनी उसकी लाश खेतों में मिली. पोस्‍टमार्टम में पता चला कि उसके साथ नृशंस बलात्‍कार हुआ था. उसके निजी अंगों में गहरे घाव थे. मणिपुर में स्‍पेशल आर्म्‍ड फोर्सेस एक्‍ट काफी समय से लागू था और पुलिस का अत्‍याचार बेलगाम होता जा रहा था. लेकिन मनोरमा की हत्‍या ने पूरे राज्‍य को हिलाकर रख दिया.
इस घटना के पांच दिन बाद 30 महिलाओं ने इम्‍फाल स्थित असम राइफल्‍स के दफ्तर के बाहर नग्‍न होकर प्रदर्शन किया. वो नारे लगा रही थीं- "भारतीय सेना, हमारा भी बलात्‍कार करो. हम सब मनोरमा की मांएं हैं." आजाद भारत के इतिहास में यह अपनी तरह का पहला विरोध प्रदर्शन था, जिसने दिल्‍ली तक की सत्‍ता को हिलाकर रख दिया. इसका असर इतना गहरा और मारक था कि इसके बाद सरकार, पुलिस और सुरक्षा बलों पर लगाम कसने की शुरुआत हुई.
इस घटना के बाद दिल्‍ली सरकार की नींद खुली. साथ ही पुलिस नृशसंताओं को आइडेंटीफाई करने और उस पर सवाल उठाने की शुरुआत हुई.


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