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- नंगई के मजे!
गांव में थे तो कुएं पर नहाना होता था। चूंकि खुले में नहाते थे तो स्वाभाविक तौर पर अण्डर गारमेंट्स पहन कर नहाना होता था। इससे एक हया, शर्म और संकोच का पर्दा दिमाग पर पड़ा रहता था। जीवन भी थोड़ा-बहुत अनुशासन में था। फिर शहर में आना हो गया तो मैं हम्माम में भी अण्डर गारमेंट्स पहन कर ही काफी दिनों तक नहाता रहा। एक दिन मेरे प्रिय मित्र अमोलक जी आए और मुझे अकेला पाकर बोले- 'शर्मा, हमने सुना है तुम हम्माम में भी कपड़े पहन कर नहा रहे हो?' मैंने कहा-'हाँ, तो क्या हो गया?' वे बोले-'हो कैसे नहीं गया। शहर में रह रहे हो तो शहर का सलीका सीखो। हम्माम में तो सब नंगे हैं और निर्वसन होकर ही नहाते हैं। भाई मेरे तक तो बात आ गई, कोई बात नहीं, लेकिन पास-पड़ोस में बात फैलेगी तो लोग तुम्हारी मजाक बनाएंगे। भाई हम्माम में अंदर हो, दरवाजा बंद है और तुमने कपड़े पहन रखे हैं। है न हास्यास्पद बात। मैं आज तुमसे कहे जा रहा हूँ, कल से कपड़े उतार कर नहाना। फिर देखना तुम में कितने परिवर्तन होते हैं।'
By: divyahimachal