सम्पादकीय

NSE Scam: चित्रा के पीछे का असली चित्र चौंकाने वाला, एनएसई जैसे संस्थान भी राम भरोसे

Neha Dani
18 Feb 2022 3:55 AM GMT
NSE Scam: चित्रा के पीछे का असली चित्र चौंकाने वाला, एनएसई जैसे संस्थान भी राम भरोसे
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क्योंकि सरकारी कार्यालयों में जवाबदेही के साथ काम करने की प्रवृत्ति धीरे-धीरे गायब होती जा रही है।

पिछले हफ्ते भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने 190 पन्नों का एक आदेश जारी किया, जिसमें नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) के संचालन में अनियमितताओं का खुलासा हुआ। एनएसई स्वतंत्र इकाई नहीं है और सेबी के दायरे में आता है। एनएसई एक तकनीकी पावरहाउस है और 70 फीसदी ऑपरेटिंग मार्जिन और भारत के पूंजी बाजार पर एकाधिकार के साथ दुनिया का सबसे बड़ा डेरिवेटिव एक्सचेंज है। इस तरह की संस्थाओं का 'राम भरोसे' (बाबा भरोसे) रहना दुखद है।

अब बदनाम हो चुके एनएसई की पूर्व एमडी और सीईओ चित्रा रामकृष्ण जिस तरह से एनएसई को चलाती रहीं, वह मजाक का विषय बन गया है। सेबी द्वारा जारी आदेश में बताया गया है कि कैसे रामकृष्ण एक अज्ञात योगी के साथ ईमेल के माध्यम से एक्सचेंज चलाती थीं। आध्यात्मिक गुरु से नियुक्तियों, भविष्य की योजनाओं और एक्सचेंज के कामकाज के कई अन्य पहलुओं पर सलाह ली गई। सबसे ज्यादा चर्चा सीओओ आनंद सुब्रमण्यम के भारी वेतन को लेकर हो रही है, जो 2012 में एक्सचेंज से जुड़े थे और उससे पहले उनकी एक्सचेंज में महत्वपूर्ण पृष्ठभूमि नहीं थी।
रामकृष्ण ने वर्ष 2016 में संदिग्ध परिस्थितियों में एनएसई से अचानक इस्तीफा दे दिया था। तब सेबी या एनएसई बोर्ड ने उनके इस्तीफे को गंभीरता से नहीं लिया था। रामकृष्ण ने को-लोकेशन घोटाला और एल्गो घोटाले की पृष्ठभूमि में अपना इस्तीफा सौंपा था, जिसमें एनएसई की लिप्तता थी। को-लोकेशन घोटाले में कुछ अनजान लोगों के लिए कुछ सर्वरों का उपयोग शामिल था, जिसके माध्यम से एनएसई डाटा कुछ निश्चित बाजार सहभागियों को कुछ सेकंड पहले उपलब्ध कराया गया था। प्रौद्योगिकी और वित्तीय बाजारों की दुनिया में मात्र कुछ सेकंड पहले उपलब्ध जानकारी भी लाभ या हानि को प्रभावित कर सकती है।
रामकृष्ण के नेतृत्व में लिए गए एनएसई के कई फैसलों और कार्यों को आज संदिग्ध, पक्षपाती, पूर्वाग्रह ग्रस्त और गलत माना जा सकता है, खासकर उन फैसलों को, जो सेबी के नियमों का उल्लंघन करते हैं। वस्तुतः एनएसई के निगरानीकर्ता के रूप में सेबी ने अक्सर अनियमितताओं के साथ एनएसई को आगे बढ़ने की अनुमति दी। उसने एनएसई को इस तरह कार्य करने के लिए न तो कभी फटकारा और न ही उस पर रोक लगाई। कौन गैर-जिम्मेदार है, यह जानने के लिए महाभारत की कथा पर गौर करना ठीक रहेगा।
क्या यह कौरवों की गलती थी कि पांडव जुए में हार गए? या यह उनके बुजुर्गों की गलती थी, जिन्होंने अपनी नजरों के सामने जीवन, महिलाओं और राज्यों को दांव पर लगाने की अनुमति दी? एनएसई का मामला भी कुछ इसी तरह है-इसमें जिम्मेदारी लेने वाला कोई नहीं है। किसी भी अन्य कंपनी की तरह, एनएसई का बोर्ड सेबी द्वारा नियुक्त प्रतिनिधियों और कुछ अन्य वित्तीय संस्थानों द्वारा नामित प्रतिनिधियों से बना था। एलआईसी के पूर्व चेयरमैन एस.बी. माथुर एनएसई के चेयरमैन थे, बोर्ड के अन्य प्रतिष्ठित सदस्यों में सेवानिवृत्त जज बी.एन. श्रीकृष्ण तथा जाने-माने चार्टर्ड अकाउंटेंट वाई. एच. मालेगम थे, जो सेबी की कई कमेटियों में थे।
बोर्ड में अन्य लोगों के साथ एस. बी. माणिक भी शामिल थे, जो एलआईसी के निदेशक थे और जिन्हें 2020 में केयर रेटिंग एजेंसी के अध्यक्ष पद से अचानक बर्खास्त कर दिया गया था। वर्ष 2011 से 2017 के बीच सेबी प्रमुख यू. के. सिन्हा थे और उनके बाद अजय त्यागी ने इस नियामक संस्था का नेतृत्व किया। इन सभी ने भारत सरकार या नियामक निकायों के साथ ऐसे उच्च पदों को धारण करने योग्य काम किया है। लेकिन जब भी किसी घोटाले के खुलासे के बाद जवाबदेही की बात आती है, तो वे तस्वीर में कहीं भी नहीं होते हैं या उनसे पूछताछ भी नहीं की जाती।
डॉ. वी.आर. नरसिम्हन अभी डीन और प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस-स्कूल फॉर रेगुलेटरी स्टडीज ऐंड सुपरविजन (एसआरएसएस) और स्कूल फॉर कॉरपोरेट गवर्नेंस (एससीजी)- नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सिक्योरिटीज मार्केट (एनआईएसएम) हैं। लेकिन जब यह घोटाला हुआ था, तब वह एनएसई में ही थे। एनआईएसएम सेबी द्वारा 2006 में स्थापित एक सार्वजनिक ट्रस्ट है और प्रतिभूति बाजारों में गुणवत्ता मानकों को बढ़ाने के उद्देश्य से विभिन्न स्तरों पर क्षमता निर्माण गतिविधियों की विस्तृत शृंखला चलाता है।
यह सब कुछ चुनिंदा लोगों के एक क्लब की तरह दिखता है, जो ऐसे संस्थानों को चला रहे थे, जो परस्पर जुड़े हुए थे, जो उनमें से किसी के भी स्वतंत्र कामकाज का पूरी तरह से उल्लंघन करते थे। इसके अलावा, सेबी वित्त मंत्रालय के अंतर्गत आता है और कई पूर्व और वर्तमान वित्त मंत्रालय के अधिकारियों से बना है। क्या यह सेबी से जुड़े किसी भी घोटाले में उनकी संलिप्तता का संकेत नहीं देता है? इसका कोई सीधा जवाब नहीं है, लेकिन स्पष्ट है कि शक्तिशाली पदों पर बैठे लोगों ने जनहित में काम नहीं किया।
चिंताजनक बात यह है कि पूर्व सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारियों और नियामकों को एक नियामक से दूसरे नियामक या अर्ध-नियामक निकाय में नियुक्त करने की संस्कृति अब भी कायम है। पारदर्शिता, जवाबदेही और नैतिक मानदंड बस कहने की बातें हैं। कॉरपोरेट क्षेत्र में व्हिसल ब्लोअर नीति मौजूद है, लेकिन बहुत कम लोग इसके पक्ष में खड़े होते हैं। कारण-सीईओ के खिलाफ बहस करना या शिकायत करना किसी की पेशेवर मौत है।
लगता है, यही बात नियामकों के साथ भी लागू होती है। जब तक लोगों को जवाबदेह नहीं बनाया जाता, तब तक यस बैंक (राणा कपूर), आईसीआईसीआई बैंक (चंदा कोचर), एनएसई (चित्रा रामकृष्ण) जैसे उच्च कार्यालयों में घोटाले होते रहेंगे, क्योंकि सरकारी कार्यालयों में जवाबदेही के साथ काम करने की प्रवृत्ति धीरे-धीरे गायब होती जा रही है।

सोर्स: अमर उजाला

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