सम्पादकीय

अब चुनाव की ओर

Subhi
7 May 2022 3:40 AM GMT
अब चुनाव की ओर
x
जम्मू कश्मीर में विधानसभा और लोकसभा चुनाव क्षेत्रों का नए सिरे से निर्धारण करने के लिए गठित परिसीमन आयोग ने गुरुवार को अपनी फाइनल रिपोर्ट दे दी और जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव का रास्ता साफ कर दिया।

नवभारत टाइम्स: जम्मू कश्मीर में विधानसभा और लोकसभा चुनाव क्षेत्रों का नए सिरे से निर्धारण करने के लिए गठित परिसीमन आयोग ने गुरुवार को अपनी फाइनल रिपोर्ट दे दी और जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव का रास्ता साफ कर दिया। वहां 2018 से ही लोग निर्वाचित सरकार से वंचित हैं। नए चुनाव करवाने की राह में सबसे बड़ी बाधा यही बताई जाती रही है कि जब तक परिसीमन आयोग की फाइनल रिपोर्ट नहीं आ जाती, तब तक चुनावों की प्रक्रिया शुरू नहीं की जा सकती। बहरहाल परिसीमन आयोग की इस रिपोर्ट ने बहुत सारे बदलाव किए हैं जिनके संभावित नतीजों का आकलन किया जा रहा है। उदाहरण के लिए जम्मू क्षेत्र की विधानसभा सीटों में भारी इजाफा करते हुए इसे 37 से 43 कर दिया गया है जबकि कश्मीर क्षेत्र के लिए सिर्फ एक सीट बढ़ाई गई है। 90 सदस्यीय नई विधानसभा में अब कश्मीर क्षेत्र की 47 सीटें होंगी। चूंकि परिसीमन का आधार 2011 की जनगणना है, इसलिए उस आधार पर देखा जाए तो इन बदलावों के परिणामस्वरूप जम्मू क्षेत्र की 44 फीसदी आबादी 48 प्रतिशत सीटें चुनेगी जबकि कश्मीर में रहने वाले 56 फीसदी लोग 52 प्रतिशत सीटों के लिए वोट देंगे। अब तक कश्मीर के 56 फीसदी लोग 55.4 प्रतिशत सीटें चुनते थे और जम्मू में रहने वाले करीब 44 फीसदी लोग 44.5 प्रतिशत सीटें।

साफ है सीटों के प्रतिनिधित्व का यह अंतर घटने के बजाय काफी बढ़ गया है जिसे जम्मू कश्मीर के कई दल मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन ध्यान में रखने वाली बात यह है कि परिसीमन आयोग ने जम्मू और कश्मीर दोनों को एक यूनिट के रूप में देखा है। दूसरी बात यह कि आयोग ने सिर्फ जनसंख्या को परिसीमन का आधार नहीं बनाया है। अलग-अलग इलाकों की भू सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, भौगोलिक जुड़ाव, कनेक्टिविटी और पाकिस्तान सीमा से दूरी जैसे तमाम कारकों को ध्यान में रखा गया है जो इस क्षेत्र की संवेदनशीलता के मद्देनजर जरूरी भी था। आयोग ने एसटी बिरादरी के लिए 9 सीटें रिजर्व करने और कश्मीरी पंडित समुदाय से दो लोगों को विधानसभा में मनोनीत करने जैसी सिफारिशें भी की हैं। इन सब पर अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं जो स्वाभाविक है। ऐसे मामलों में कोई भी आयोग ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं दे सकता जो समाज के सभी तबकों को पसंद ही आए। बड़ी बात यह है कि परिसीमन आयोग ने अपना काम तर्कसंगत ढंग से पूरा कर दिया है और अब सभी संबद्ध पक्षों को अगले विधानसभा चुनावों पर ध्यान देना चाहिए। बदले हालात में उम्मीद की जा सकती है कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश में साल के अंत में होने वाले चुनावों के साथ ही जम्मू कश्मीर में भी चुनाव हो जाएं ताकि वहां सामान्य लोकतांत्रिक हालात बहाल हों और उसे राज्य का दर्जा वापस मिलने की स्थितियां बनें।


Next Story