- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- अब नवाचारों को परखने...
हाल-फिलहाल के वर्षों में किसी भी अन्य घटना से कहीं ज्यादा इस महामारी ने जीवन, आजीविका, शिक्षा और स्वास्थ्य को प्रभावित किया है। इस दौर की चुनौतियों से पार पाने के लिए दुनिया भर में नवाचार, यानी इनोवेशन हुए हैं और उनके मुताबिक कुछ तौर-तरीके भी बदले गए हैं, लेकिन इनका लाभ चंद लोगों को ही मिल सका, सभी को नहीं। स्वास्थ्य सेवाओं की बात करें, तो बेहतर स्वास्थ्य-व्यवहार अपनाने के उपाय, स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढांचों की सीमाएं, मानव संसाधनों की उपलब्धता में कमी और आपूर्ति शृंखला में रुकावट जैसी समस्याएं व्यापक तौर पर देखी गई हैं। बेशक ये सभी महामारी की देन नहीं थीं, बल्कि कई तो पहले से हमारे समाज में मौजूद थीं, लेकिन महामारी के दौरान ये सभी समस्याएं कहीं ज्यादा गहरी नजर आईं। हमने देखा कि किस तरह से संक्रमण से बचाव और उससे निपटने जैसे कामों में स्वास्थ्यकर्मियों को लगाया गया। उन्हें अपनी नियमित जिम्मेदारियों से अलग कर दिया गया, जिस कारण उन सेवाओं में स्वास्थ्यकर्मियों की कमी हो गई। इसी तरह, कोरोना मरीजों की जांच और इलाज के लिए स्वास्थ्य सेवा से जुड़ी सुविधाएं इस्तेमाल की जाने लगीं, जिससे नियमित सेवाएं उन सुविधाओं से महरूम हो गईं।
आपूर्ति शृंखला लॉकडाउन की वजह से बाधित हो ही गई थी। इन सभी से नियमित स्वास्थ्य सेवाएं, जैसे नियमित टीकाकरण, टीबी के मरीजों की जांच व इलाज, मातृ एवं बाल स्वास्थ्य देखभाल और पोषण संबंधी कार्यक्रमों में खासा रुकावट पैदा हुई। पर भारत के लिए नवाचार कोई नई घटना नहीं है। महामारी के कुछ महीनों में ही ऐसे कई प्रयोग हुए, जो स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोगों की कुछ समस्याओं को हल करते दिखे। कम से कम चार मामलों में खासा नवाचार हुए। पहला मामला है, प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना। दूसरा, सामुदायिक (सोशल) मंचों का फायदा लेना। तीसरा, अग्रिम पंक्ति के कर्मियों को सशक्त बनाना और चौथा, आपूर्ति शृंखलाओं में बढ़ोतरी करना।