सम्पादकीय

अब सीबीआई का परचा

Rani Sahu
18 May 2022 7:07 PM GMT
अब सीबीआई का परचा
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जांच के आईनों पर शक न हो, चेहरे पे सारा हिसाब ले के चलते हैं

जांच के आईनों पर शक न हो, चेहरे पे सारा हिसाब ले के चलते हैं। राजनीति में विपक्ष द्वारा हिसाब लेना जितना मासूम और सरल है, उतना ही कठिन है सत्ता को निर्दोष साबित होना। एक पुलिस भर्ती ने सरकारी पक्ष की जांच के दायरे को इतना बड़ा तो कर ही दिया कि अब सीबीआई पूरे परिदृश्य में लौट रही है। सीबीआई जांच के पक्ष में सरकार के अपने कारण दिखाई देते हैं और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर स्वयं इसकी निष्पक्षता को रेखांकित करते हैं। पुलिस भर्ती मामला अब राज्य बनाम राज्य होने वाला है, क्योंकि हिमाचल के बाहर भी नौकरी के पर्चे लीक हुए हैं। यहां भी गिरोह में फंसी पुलिस भर्ती के कई ऐसे चेहरे हैं जिनका संबंध प्रदेश के बाहर तक जुड़ता है। इसी तरह लेन-देन के मामले में पुलिस भर्ती का फर्जी आचरण कई कोषाध्यक्ष सामने लाता है। जिस तरह व जिस कीमत में पर्चे बिके, उसका अर्थगणित एक बड़े धंधे की ओर इशारा करता है। आशंका यही है कि कहीं युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ करती पुलिस भर्ती आगे चलकर सीबीआई को राजनीति का चलचित्र ही न बना दे। अमूमन चुनाव से पूर्व या विपक्षी राज्यों के चाल चरित्र पर इतनी प्रतिकूल टिप्पणियां आ चुकी हैं कि राष्ट्रीय जांच के मुखौटे अब शिकार करने लगे हैं। अपराधियों की धरपकड़ में राजनीतिक पार्टियां एक दूसरे की इज्जत उछालती हैं, जबकि जांच के निष्कर्ष धूमिल हो जाते हैं।

पिछले विधानसभा चुनाव से पूर्व स्व. वीरभद्र सिंह के खिलाफ शुरू हुआ जांच अभियान आज तक अपने रहस्य नहीं खोल पाया। कोटखाई प्रकरण ने तत्कालीन सरकार के परखच्चे उड़ा दिए, लेकिन आज तक सीबीआई इस मामले के दाग सामने नहीं ला पाई। ऐसे में एक और सीबीआई जांच पुलिस भर्ती पेपर लीक मामले में कितने पेंच लड़ाएगी, कोई नहीं जानता। जाहिर है अब जांच का दायरा इतना लंबा हो सकता है कि दिन, महीनों में बदल सकते हैं। अभी तक के खुलासे ही इतने वीभत्स हैं कि ऐसा प्रतीत होता है कि रोजगार के मोर्चे पर यह प्रदेश बुरी तरह नीचे गिर चुका है। परीक्षा पत्र लीक होना अगर एक पैटर्न की तरह नजर आ रहा है, तो घपले घोटाले भीतर से बाहर तक हैं। विपक्ष के लिए यह एक ऐसा मुद्दा बन सकता है, जिसके साथ जनता खड़ी होगी और हिमाचली युवाओं की अदालत में निर्दोष साबित होना मुश्किल हो जाएगा। पर्चे लीक होने तक कई कहानियां जन्म ले चुकी हैं और परीक्षा पद्धति का ढर्रा भी दोषपूर्ण माना जा रहा है।
यहां अनेक गलबहियां, षड्यंत्र, भ्रष्ट तंत्र और रोजगार के सरकारी तौर तरीके जरूर रहे होंगे, जिनके तहत अपराध की शाखाएं लगीं। पेपर लीक का मामला केवल हिमाचल को ही अभिशप्त नहीं कर रहा, बल्कि इसी तरह की भर्तियां कई अन्य राज्यों में भी चुराई गई हैं। ऐसे में राजस्थान के भर्ती घोटाले के भूत खड़े करके भाजपा खुद को इसके राजनीतिक श्राप से मुक्त नहीं कर सकती। राजस्थान में कांग्रेस की सत्ता को इसका जवाब देना पड़ेगा, तो हिमाचल में भी सरकार से ही पूछा जाएगा। यह दीगर है कि फिलहाल कांग्रेस ने इस विषय की परतें पूरी तरह नहीं उधेड़ी हैं, लेकिन एसआईटी के गठन व इसके सदस्यों पर अंगुली जरूर उठी है। बेशक मुख्यमंत्री ने साहसिक फैसला लेते हुए भ्रांतियों से उपजे सारे सवालों को दरकिनार करते हुए सीबीआई जांच का मार्ग चुना, लेकिन जांच से परे उन युवाओं को भी उत्तर देना पड़ेगा जिनके भविष्य के आगे पुलिस भर्ती का पर्चा लगातार दूसरी बार लूटा गया। जिन्होंने वर्षों इस उम्मीद में गंवा दिए कि ऐसी भर्ती प्रक्रिया के जरिए उनकी मेहनत रंग लाएगी या ईमानदारी के साथ चयन प्रक्रिया उनके साथ इनसाफ करेगी, वे युवा अब क्या कहेंगे। सीबीआई जांच विपक्ष से मुद्दा छीन भी ले, लेकिन युवा उम्मीदों से हुआ आघात, सिसकता रहेगा। सीबीआई जांच से अगर चयन प्रक्रिया की खामियां सामने लाई जाएं और इसी के परिप्रेक्ष्य में भविष्य के सबक नत्थी हों, तो कम से कम आइंदा के लिए कुछ तो सतर्कता रहेगी, वरना जांच के सफर पर भी युवा अरमानों के कुचले जाने का भय तो बना ही रहेगा।

क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली


Rani Sahu

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