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- अब शिक्षा का...

अपनी सियासी पूंजी बढ़ाने के जोश में भी कई बार नेता अपनी सीमाओं का उल्लंघन कर देते हैं और इस तरह का एक वाकया हिमाचल विधानसभा के उपाध्यक्ष डा. हंस राज के साथ जुड़ रहा है। हम यह नहीं कह सकते कि विधायक ने अपनी पाठशाला क्यों सजाई, लेकिन शिक्षा संस्थानों के आदर्श किसी राजनीतिक प्रवचन से उद्धृत होंगे, यह भी नहीं मान सकते। हंस राज ने 'विधायक विद्यालय के द्वार' कार्यक्रम चला कर कुछ गुणात्मक करने का सोचा होगा, लेकिन वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला रैला में वह अपनी सीमाएं भूल कर ऐसा आचरण कर बैठे, जिसे आधुनिक शिक्षा के मानदंड और सोशल मीडिया के रंग-ढंग स्वीकार नहीं करते। इसलिए विवाद यह है कि छात्रों की क्लास लेते हुए विधायक का पुलिसिया रौब किसी छात्र के गाल पर थप्पड़ जमा सकता है या इससे भी आगे प्रश्न यह भी कि जहां शिक्षा की गति और छात्र समुदाय की मति केवल पाठ्यक्रम की वार्षिक परीक्षा से ही साबित होती हो, वहां ऐसी मंत्रणाएं कहां तक प्रासंगिक हो सकती हैं। जहां अध्यापक भी सरकारी नौकर की तरह राजनीतिक जी हुजूरी की कठपुतली बन जाए या शिक्षा से इतर सरकारी कामकाज की मशीनरी की तरह खुद को ढोना शुरू कर दे, वहां गुणात्मक फर्क लाने के लिए नीतियों और कार्यक्रमों की सदाशयता चाहिए।
सोर्स- divyahimachal
