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मंगलवार 31 अगस्त को रात एक बजे अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका की औपचारिक मौजूदगी ख़त्म हो गयी
विष्णु शंकर। मंगलवार 31 अगस्त को रात एक बजे अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका की औपचारिक मौजूदगी ख़त्म हो गयी. हालांकि अभी भी अफ़ग़ानिस्तान में क़रीब 100 से ज़्यादा अमेरिकी हो सकते हैं लेकिन, सुपरपावर की फ़ौज अब दक्षिण एशिया के इस देश से रुखसत हो चुकी है. अब बीस साल बाद फिर से अफ़ग़ानिस्तान में अब तालिबान का राज है. जाने से पहले अमेरिकी फ़ौज अपने पीछे बहुत सारा 'स्टेट ऑफ द आर्ट' सैनिक साज़ोसामान छोड़ गई है जिसकी क़ीमत 85 अरब डॉलर से ज़्यादा है. जाते-जाते वो भरसक इन हथियारों, जंगी जहाज़ों और हेलिकॉप्टर्स को बेकार कर जाने का दावा कर रही है, यानि उनके अलावा कोई और ताक़त इन सबका इस्तेमाल न कर सके.
लेकिन अमेरिकी फ़ौज के जाने के कुछ घंटों के भीतर कंधार में एक ब्लैकहॉक हेलीकाप्टर उड़ता हुआ दिखा जिससे एक आदमी लटका हुआ था. अब कोई अमेरिकी तो इस हेलीकाप्टर को नहीं उड़ा रहा होगा, तो फिर क्या ये कोई तालिबानी था, या उनकी मदद करने वाला किसी और मुल्क का कोई पायलट? अमेरिकी कांग्रेस के निचले सदन House Of Representatives के एक Republican सांसद का कहना था कि इस समय तालिबान के पास इतने ब्लैकहॉक हेलीकाप्टर हैं, जितने दुनिया के 85 फ़ीसद देशों के पास नहीं होंगे. ब्लैकहॉक अमेरिका का सबसे मॉडर्न जंगी हेलीकाप्टर है, जिसे ओसामा बिन लादेन को ख़त्म करने के ऑपरेशन में भी इस्तेमाल किया गया था.
अमेरिकी फौज की मदद करने वाले अफ़ग़ान नागरिकों की जान खतरे में
इस सांसद का यह भी कहना था कि तालिबान के पास अब वो अमेरिकी Biometric उपकरण भी हैं, जिनमें उन अफ़ग़ान नागरिकों के फिंगरप्रिंट, आंखों का स्कैन और बायोडेटा सेव्ड है जिन्होंने पिछले 20 साल अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी फ़ौज की मदद की थी. अगर ये सब अभी भी अफ़ग़ानिस्तान में हैं तो तालिबान इन्हें खोज कर बदला लेने का काम कर सकते हैं.
ख़ैर, आज सुबह के उजाले में तालिबान के बहुत से नेता काबुल हवाई अड्डे पहुंचे और तस्वीरें खींची और खिंचवाई और मीडिया के सवालों के जवाब दिए. तालिबान के प्रवक्ता ज़बीहुल्ला मुजाहिद का कहना था कि अमेरिका के ऊपर जीत 'हम सब' की है. अब 'हम सब' से उनका क्या मतलब था यह उन्होंने नहीं बताया. मुजाहिद ने कहा कि तालिबान दुनिया के सभी मुल्कों से अच्छे रिश्ते चाहते हैं.
इस्लामी अमीरात की स्थापना करना चाहता है तालिबान
उधर अमेरिकी विदेश मंत्री एंथनी ब्लिंकन का कहना है कि उनका देश तालिबान की कहनी नहीं बल्कि करनी देख कर फैसला करेगा कि उसकी बातों में कितनी सच्चाई है. इसकी कसौटी लोगों के लिए आवाजाही की आज़ादी, आतंकवाद पर तालिबान का रवैया और अफ़ग़ानिस्तान में आम शहरी ख़ासकर महिलाओं और माइनोरिटीज़ के हक़ पर उसके रवैये से ज़ाहिर होगा.
ज़बीहुल्ला मुजाहिद का कहना था कि तालिबान सरकार बनाने के कई ऑप्शन्स पर ग़ौर कर रहा है, जिनमें एक इस्लामी अमीरात की स्थापना शामिल है. जब मुजाहिद से पूछा गया कि चीन, पाकिस्तान, रूस और अमेरिका ने इस्लामी अमीरात की स्थापना का विरोध किया है, तो तालिबान प्रवक्ता का जवाब था कि देश के अंदरूनी मामलों पर फैसले का हक़ सिर्फ अफ़ग़ानिस्तान के नागरिकों को है और बाक़ी दुनिया को इसकी चिंता करने की ज़रुरत नहीं है.
तालिबान के साथ अलकायदा
साफ़ है, तालिबान अफ़ग़ानिस्तान पर अपने हिसाब से सरकार चलाएंगे. ऐसे में दुनिया को उनसे क्या उम्मीद करनी चाहिए? फरवरी 2020 में अमेरिका और अफ़ग़ानिस्तान के बीच दोहा क़तर में बनी सहमति में तालिबान ने वायदा किया था कि वो अलक़ायदा से अपने रिश्ते ख़त्म करेगा और आतंकवाद को बढ़ावा नहीं देगा. लेकिन ऐसा होता नहीं दिखता. तालिबान और अलक़ायदा विचारधारा की जमीन पर एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. उनके रिश्ते बहुत पुराने हैं और इनमें कोई बदलाव होगा ऐसा नहीं लगता.
कल यानि सोमवार को डॉक्टर अमीनुल हक़ का एक वीडिओ वायरल हुआ. डॉक्टर हक़ ओसामा बिन लादेन का सेक्युरिटी चीफ रहा था. दस साल के बाद वो अफ़ग़ानिस्तान में अपने घर नंगरहार में फिर दिखाई दिया. उसके साथ तालिबान लड़ाकों की बड़ी तादाद भी थी, जो हथियारों से लैस थे. अमीनुल हक़ ने साल 2001 में तोरा बोरा की पहाड़ियों में छिपे ओसामा को तब बचाया था, जब अमेरिका ने भारी बमबारी की थी. बाद में इसने खुद भाग कर पाकिस्तान में शरण ली थी, और अब तालिबान की वापसी के बाद इसकी भी वापसी हुई है. इसके जैसे ही कई और आतंकवादी हैं, जिनमें हक़्क़ानी नेटवर्क के मेंबर शामिल हैं, जो अब अफ़ग़ानिस्तान में 2001 से पहले की तरह खुले आम घूम रहे हैं.
पाकिस्तान के साथ तालिबान के रिश्ते पर भी सबकी नज़र रहेगी
क्या यही सिलसिला ISIS खुरसान के मेंबर्स या चीन के वीघर मूल के लोगों के ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट, ETIM, के लड़ाकों के साथ अब अफ़ग़ानिस्तान में दिखाई देगा? ISIS खुरासान वो आतंकवादी संगठन है जो इस्लामी रूढ़िवादी क़ानून लागू करने में तालिबान से भी दस हाथ आगे है. इसका हमेशा तो नहीं, लेकिन कई बार तालिबान के साथ 36 का आंकड़ा रहा है. ETIM से चीन खार खाता है. फिर पाकिस्तान में जन्मे और उससे शह पाने वाले लश्कर ए तैयबा, जैशे मोहम्मद और हक़्क़ानी नेटवर्क के आतंकवादियों को लेकर तालिबान का रुख क्या रहेगा, दुनिया इस सब बातों पर तालिबान को आंकेगी.
इसके साथ साथ पाकिस्तान के साथ तालिबान के सम्बन्ध कितने अच्छे या तल्ख़ होंगे यह भी एक बड़ा सवाल है. यहां आपको बताते चलें कि तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान को विभाजित करने वाली बॉर्डर लाइन, जिसे डूरंड लाइन कहते हैं, उसे मानने से इंकार कर दिया है, बावजूद इसके कि पाकिस्तान ने इसके लिए बड़ी कोशिशें की. वो मीर तक़ी मीर का शेर है ना,
'इब्तेदा ए इश्क़ है रोता है क्या
आगे आगे देखिये होता है क्या'
तो पाकिस्तान के साथ तालिबान के रिश्ते आगे भविष्य में कैसे रहेंगे ये देखना भी दिलचस्प रहेगा.
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