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आदित्य नारायण चोपड़ा: चुनाव आयोग ने लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में अधिकाधिक मतदाताओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए भारत के विभिन्न भागों में रहने वाले प्रवासी नागरिकों के लिए अपने चुनाव क्षेत्र के मतदान में भाग लेने के लिए जिस 'रिमोट वोटिंग इलैक्ट्रानिक मशीन' का निर्माण किया है उससे ऐसे मतदाताओं को वोट देने में सुविधा होगी जो रोजी-रोटी की तलाश में भारत के ही दूसरे राज्यों या दूसरे जिलों में जाने के लिए मजबूर होते हैं और अपने चुनाव क्षेत्र के मतदान में हिस्सा नहीं ले पाते। इसके साथ ही विवाह या अन्य कारणों से भी मतदाता दूसरे स्थानों में प्रवास कर जाते हैं और किन्ही कारणों से अपना नाम मतदाता सूची में स्थानान्तरित नहीं करा पाते अथवा ऐसा करने में संकोच करते हैं। इसके कुछ व्यावहारिक कारण भी हो सकते हैं परन्तु 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में कुल 45 करोड़ 36 लाख मतदाता ऐसे हैं जो प्रवासी मतदाताओं की श्रेणी में आते हैं । यह आंकड़ा कुल मतादाताओं का 37 प्रतिशत बैठता है। इनमें से 75 प्रतिशत मतदाता शादी या अन्य घरेलू मामलों की वजह से प्रवासी बन जाते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि इनका नाम तो अपने चुनाव क्षेत्र की मतदाता सूची में है मगर ये निवास कहीं और करते हैं। चुनाव आयोग का मानना है कि टैक्नोलोजी उन्नयन के इस दौर में यदि कोई मतदाता केवल इस वजह से वोट नहीं दे पाता है कि अपने चुनाव क्षेत्र से वह कहीं दूसरी जगह प्रवास कर गया है, तो यह स्थिति समयानुरूप नहीं कही जा सकती। अतः एेसी मशीन को बनाने में सफलता प्राप्त कर ली गई है जिससे किसी भी चुनाव क्षेत्र का मतदाता दूसरी जगह प्रवास करने पर अपना वोट अपने चुनाव क्षेत्र में डाल सके। मतदान के प्रति उदासीनता का एक कारण यह भी माना जाता है कि बहुत से मतदाता अपने चुनाव क्षेत्र में न रह कर दूसरे स्थानों पर रह रहे होते हैं। चुनाव आयोग मतदान के आंकड़ों के सन्दर्भ में पिछले काफी समय से यह विचार कर रहा था कि प्रवासी मतदाताओं को मतदान में हिस्सा लेने के लिए किस तरह प्रेरित किया जाये। एक आंकलन के अनुसार बहुत से युवा मतदाता मतदान के प्रति इसी वजह से उदासीनता दिखाते हैं कि उनके नाम उनके स्थायी निवास की मतदाता सूची में ही होते हैं और वे केवल मतदान के लिए अपने स्थायी निवास का सफर नहीं करना चाहते। इसके अलावा ऐसे भी मतदाता हैं जो जानबूझ कर अपना नाम अपने स्थायी निवास की मतदाता सूची में रखना चाहते हैं। इसका कारण उनका अपनी धरती से जुड़ाव भी रहता है। मगर केवल प्रवास या निवास बदल जाने के कारण कोई वैध मतदाता मतदान में ही हिस्सा न ले सके, यह स्थिति वर्तमान दौर में गले उतरने वाली नहीं है क्योंकि जब विदेशों में रहने वाले अनिवासी भारतीयों को मतदान में हिस्सा लेने के उपाय खोजे जा रहे हैं तो भारत में ही रहने वाले करोड़ों वैध मतदाताओं को अपने संवैधानिक अधिकार का प्रयोग करने से क्यों वंचित रहना पड़े? 2019 के लोकसभा चुनावों में मतदान प्रतिशत 67.4 रहा था और लगभग 30 करोड़ मतदाताओं ने वोट नहीं डाला था। जबकि दूसरी ओर हर वर्ष मतदाताओं के पंजीकरण की संख्या में इजाफा हो रहा है। इसका सीधा मतलब है कि नये मतदाता तो सूची में बढ़ रहे हैं मगर मतदान में अपेक्षानुरूप वृद्धि नहीं हो रही है। इसका गंभीर पहलू यह भी है कि प्रवासी मतदाताओं में से 85 प्रतिशत अपने ही राज्य में रहते हैं मगर वे दूसरे जिलों या क्षेत्रों में प्रवास करते हैं। मतदान प्रतिशत व मतदाताओं की संख्या वृद्धि में समानुपाती वृद्धि तो हो रही है मगर इसके बावजूद मतदान में हिस्सा न लेने वाले मतदाताओं की संख्या भी बढ़ रही है। 2009 से 2019 के दशक के बीच 20 करोड़ नये मतदाताओं ने पंजीकरण कराया और मतदान प्रतिशत भी 58.21 से बढ़कर 67.4 हुआ मगर वोट न देने वाले मतदाताओं की संख्या भी 30 करोड़ से ज्यादा रही। चुनाव आयोग के आंकलन के अनुसार वोट न करने वाले मतदाताओं की संख्या बड़ी होने की कई वजह हैं जिनमें घरेलू से लेकर व्यावाहरिक हैं। इन्ही सब कारणों को देखते हुए आयोग ने एेसी मशीन तैयार की है जिसकी मार्फत मतदाता के वोट की गोपनीयता बरकरार रखते हुए उसका वोट अपने चुनाव क्षेत्र में पड़ सके। चुनाव आयोग आगामी 16 जनवरी को इस रिमोट ईवीएम मशीन का प्रदर्शन देश की आठ राष्ट्रीय पार्टियों व 57 राज्य पार्टियों के समक्ष करेगा और उस पर उनकी लिखित राय मागेगा। हालांकि इस प्रणाली को लागू करने में अभी बहुत किन्तु-परन्तु लग सकते हैं मगर चुनाव आयोग का यह प्रयास प्रशंसनीय माना जायेगा। संपादकीय :साक्षात ईश्वर का रूप होती है मां...फिर कफ सिरप पर संशयकोरोना को मुंहतोड़ जवाब!रूसी नेता की रहस्यमय मौतअखिलेश और जयन्त के तेवरआज से छुट्टियां....भारत में बड़े पैमाने पर रोजी-रोटी व रोजगार के लिए हर वर्ष बड़ी संख्या में लोग एक राज्य से दूसरे राज्य या एक जिले से दूसरे जिले में प्रवास करते हैं। 2017 के भारत सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया था कि 2001 से 2011 के दशक के बीच प्रतिवर्ष कम से 50 से 60 लाख लोगों ने एक से दूसरी जगह प्रवास किया। इस प्रकार छह करोड़ संख्या अर्न्ताज्यीय प्रवास की हुई जबकि इन दस सालों में 8 करोड़ के लगभग लोग अपना जिला छोड़ कर अपने राज्य में ही दूसरे जिलों में गये। हर दशक में यह संख्या दुगनी होने के आसार है और इनमें भी 20 से 29 वर्ष के युवाओं का प्रवास बहुत अधिक है। मगर रिमोट ईवीएम मशीन को शुरू करने के लिए भारत के चुनाव अधिनियम में संशोधन करने की जरूरत होगी क्योंकि इस नियम के अनुसार किसी चुनाव क्षेत्र का मतदाता अपने चुनाव क्षेत्र में ही मतदान कर सकता है। चुनाव अधिनियम में 1986 में भी तब संसद में संशोधन करना पड़ा था जब बैलेट पेपर के स्थान पर ईवीएम मशीनों के प्रयोग की अनुमति दी गई थी।