सम्पादकीय

अब तो लौट चलें

Subhi
1 July 2022 5:48 AM GMT
अब तो लौट चलें
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आज ऐसा लगता है जैसे कहीं से अंकुरित एक विषबेल इस देश की पवित्र मिट्टी का उपहास करती हुई बढ़ती चली जा रही है, हर कहीं फैलती जा रही है। कहीं-कहीं तो इसने हमारी विविध रंगों-खुशबुओं वाली स्नेहसिक्त सुकोमल वनस्पतियों को अपनी बेढंगी सख्त शाखाओं-प्रशाखाओं के बोझ तले दबाकर बेदम कर डाला है।

Written by जनसत्ता: आज ऐसा लगता है जैसे कहीं से अंकुरित एक विषबेल इस देश की पवित्र मिट्टी का उपहास करती हुई बढ़ती चली जा रही है, हर कहीं फैलती जा रही है। कहीं-कहीं तो इसने हमारी विविध रंगों-खुशबुओं वाली स्नेहसिक्त सुकोमल वनस्पतियों को अपनी बेढंगी सख्त शाखाओं-प्रशाखाओं के बोझ तले दबाकर बेदम कर डाला है। यह विषबेल हमारे 'न्यू इंडिया' के समाज में बढ़ रहे वैमनस्य की है, जो आज बेकाबू होने लगी है। घृणा और हिंसा के स्याह, बदरंग फूलों-फलों से इसकी टहनियां लद रही हैं, जिससे हमारे समाज का चेहरा कुरूप और कलुषित होता जा रहा है। सवाल यह है कि देखते ही देखते इस विषबेल ने इतना प्रचंड रूप कैसे धारण कर लिया? इस सवाल का सरल-सा उत्तर भी हमारे पास है और हमारे जेहन में कुछ खास लोगों के चेहरे भी घूमने लगते हैं।

मगर हमें अपनी, यानी आम लोगों की बात करनी होगी। जरा खुद से पूछें कि देश की संरचना में अपनी महत्त्वपूर्ण भागीदारी निभाने वाले हम आम लोग क्या समय रहते इस जहरीली बेल को बढ़ने, पनपने और फैलने से रोक नहीं सकते थे? समाज के सभी वर्गों में सद्भावना और सौहार्द की बात कभी अपने परिवार के सदस्यों के साथ की हो या स्कूलों में विद्यार्थियों के साथ समय-समय पर सांप्रदायिकता के विषय पर कोई सार्थक संवाद स्थापित किया हो, ऐसा कुछ याद आता है हमें?

शायद ऐसा नहीं हुआ। हमारे बीच ही रहे होंगे कुछ लोग, जो किसी नासमझी में या फिर किसी स्वार्थवश इस विषबेल को खाद-पानी देकर पोषित करने में जुट गए। आज स्थिति यह है कि हर दिन दंगा-फसाद के रोंगटे खड़े कर देने वाले समाचार पढ़-सुन कर हम निरीह से इधर-उधर झांकने लगते हैं। अब एक सभ्य, विनम्र और उदार समाज की चौहद्दी के बाहर शायद बहुत दूर निकल आए हैं हम। निश्चय ही कहीं बड़ी चूक हुई है। लेकिन विषबेल को समूल उखाड़ फेंकने के लिए इस देश की मिट्टी अभी भी किसी इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प की प्रतीक्षा कर रही है- आ अब लौट चलें!

केंद्र सरकार ने हाल ही में एकल इस्तेमाल वाले प्लास्टिक से बने 19 उत्पादों पर पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत प्रतिबंध लगाया है। ऐसे उत्पादों के निर्माताओं को अब इस कानून की धरा 15 के तहत सात वर्ष तक कैद और एक लाख रुपए तक का जुर्माना भुगतना पड़ेगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि अब इस फैसले के बाद देश में प्लास्टिक के उत्पादों के निर्माण और उपयोग में कमी देखने को मिलेगी।

एकल इस्तेमाल वाले प्लास्टिक हमारे पर्यावरण को पहले ही इतना नुकसान पहुंचा चुके हैं, जिसकी भरपाई अब कोई नहीं कर सकता। इस तरह के उत्पादों का मलबा सालों तक धरती की सतह पर पड़ा रहता है, जिसकी वजह से बारिश का पानी जमीन के नीचे नहीं जा पाता। इनसे निकले जहरीले रसायन धरती के जीव-जंतुओं के मृत्यु का कारण बनते हैं। सस्ते समझे जाने वाले प्लास्टिक के उत्पादों ने हमारी अनमोल पृथ्वी को खूब क्षति पहुंचाया है।


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