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![अब जन-दक्षेस का मौका है अब जन-दक्षेस का मौका है](https://jantaserishta.com/h-upload/2020/12/02/863801-sark.webp)
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। यह नवंबर का महिना भी क्या महिना था। इस महिने में छह शिखर सम्मेलन हुए, जिनमें चीन, रुस, जापान, दक्षिण अफ्रीका और पाकिस्तान समेत आग्नेय और मध्य एशिया के देशों के नेताओं के साथ भारत के प्रधानमंत्री और उप-राष्ट्रपति ने भी सीधा संवाद किया। उसे संवाद कैसे कहें ?
सभी नेता जूम या इन्टरनेट पर भाषण झाड़ते रहे। सबने अपनी-अपनी बीन बजाई। सब कोरोना की महामारी पर बोले। सब ने अपने-अपने युद्ध-कौशल का जिक्र किया। सब ने वे ही घिसी-पिटी बातें दोहराईं, जो ऐसे सम्मेलनों में प्रायः वे बोलते रहते हैं। उन्होंने अपने विरोधी राष्ट्रों को भी घुमा-फिराकर आड़े हाथों लिया। असली प्रश्न यह है कि इन शिखर सम्मेलनों की सार्थकता क्या रही ? बेहतर तो यह होता कि भारत अपने पड़ौसी देशों से सीधा संवाद करता। इस संवाद के लिए दक्षेस (सार्क) का निर्माण हुआ था। अब से लगभग 40 साल पहले जब इसके बनने की तैयारी हो रही थी तो हम आशा कर रहे थे कि भारत और उसके पड़ौसी देश मिलकर यूरोपीय संघ की तरह एक साझा बाजार, साझा संसद, साझा सरकार और साझा महासंघ खड़ा कर लेंगे लेकिन यह सपना भारत-पाक तनाव का शिकार हो गया।
![Gulabi Gulabi](/images/authorplaceholder.jpg?type=1&v=2)