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- अब यूएन में भी बोली...
लंबे कूटनीतिक प्रयासों के बाद हाल में हिंदी, उर्दू और बांग्ला भाषाओं को संयुक्त राष्ट्र संघ में मान्यता मिल गई है। दक्षिण एशिया की इन तीनों भाषाओं को बोलने वाली विशाल आबादी दुनियाभर में फैली है और अब समय आ गया है कि उन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी वैश्विक संस्था में हैसियत दी जाए। इस आलेख में इसी विषय की पड़ताल करने की कोशिश करेंगे। आखिरकार दीर्घकालिक प्रयासों के बाद भारत की राजभाषा हिंदी संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएन) की आधिकारिक भाषा बन गई है। भारत की ओर से लाए गए हिंदी के प्रस्ताव को महासभा ने मंजूरी दे दी है। हिंदी के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए यूएन को भारत सरकार ने आठ लाख डॉलर की मदद भी की थी। हिंदी के साथ बांग्ला और उर्दू को भी इस श्रेणी में लिया गया है। अब यूएन में सभी कामकाज और जरूरी संदेश व समाचार इन तीनों भाषाओं में उपलब्ध होंगे। इन भाषाओं के अलावा मंदारिन, अंग्रेजी, अरबी, रूसी, फ्रेंच और स्पेनिश पहले से ही यूएन की आधिकारिक भाषाएं हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना 24 अक्तूबर 1945 को पचास देशों के एक अधिकार-पत्र पर हस्ताक्षर के साथ हुई थी। वर्तमान में इसके 193 देश सदस्य हैं। शुरुआत में यूएन की आधिकारिक भाषाएं 4 थीं- अंग्रेजी, रूसी, फ्रेंच और चीनी। ये भाषाएं अपनी विलक्षणता या ज्यादा बोली जाने के बावजूद यूएन की भाषाएं इसलिए बन पाई थीं क्योंकि ये विजेता महाशक्तियों की भाषाएं थीं। बाद में इनमें अरबी और स्पेनिश भी शामिल कर ली गई। यूएन में भारत के स्थाई प्रतिनिधि टीएस तिरूमती ने बताया कि हिंदी को 2018 से ही एक परियोजना के अंतर्गत बढ़ावा देने के लिए शुरुआत कर दी गई थी। इसी समय से यूएन ने हिंदी में ट्विटर-खाता और न्यूज-पोर्टल शुरू कर दिया था। इस पर प्रत्येक सप्ताह हिंदी ऑडियो बुलेटिन सेवा शुरू कर दी गई थी। हिंदी की सेवाएं यूएन के मंच से प्रसारित होना इसलिए जरूरी था, ताकि यूएन का महत्व दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी भाषा जानने वालों को पता हो। यह इसलिए भी जरूरी था ताकि यूएन से जुड़े अंतरराष्ट्रीय कानून, सुरक्षा, आर्थिक-विकास, सामाजिक-प्रगति, मानव-अधिकार और विश्वशांति से जुड़े मुद्दों को लोग जान सकें। भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसकी पांच भाषाएं विश्व की 16 प्रमुख भाषाओं में शामिल हैं। 160 देशों के लोग भारतीय भाषाएं बोलते हैं और वे 93 देशों के जीवन से जुड़ी होने के साथ, विद्यालय और विश्वविद्यालय स्तर पर पढ़ाई भी जाती हैं। चीनी भाषा मंदारिन बोलने वालों की संख्या हिंदी बोलने वालों से ज्यादा जरूर है, किंतु अपनी चित्रात्मक जटिलता के कारण इसे बोलने वालों का क्षेत्र चीन तक ही सीमित है। शासकों की भाषा रही अंग्रेजी का शासकीय व तकनीकी क्षेत्रों में प्रयोग तो अधिक है, किंतु उसके बोलने वाले हिंदी-भाषियों से कम हैं। विश्व पटल पर हिंदी बोलने वालों की संख्या दूसरे स्थान पर होने के बावजूद इसे यूएन में अब जाकर शामिल किया गया है
सोर्स- divyahimachal