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पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार ने जयराम सरकार के सामने धर्मशाला में हाई कोर्ट बेंच की स्थापना का सबसे बड़ा प्रश्र उठाकर, पिछले पांच दशकों से चल रही मांग को संबल दिया है। अब इसका संदर्भ इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि न्यायालयों की विकेंद्रीकृत पद्धति ने यह रास्ता खोल दिया है। जिला कांगड़ा के ही नूरपुर, पालमपुर व देहरा में अतिरिक्त सत्र न्यायालयों की स्थायी रूप से स्थापना से सरकार के इरादे घोषित हुए हैं और इसी से निकला तर्क शिमला स्थित हाई कोर्ट से न्याय की दूरियां घटा कर, धर्मशाला में हाई कोर्ट की बेंच का इंतजार करने लगा है। हिमाचल प्रदेश की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए पहले ही हर विभाग ने अपने ढांचे को विकेंद्रीकृत करते हुए, हर क्षेत्र में कार्यालयों की स्थापना की है। इसी दृष्टि से कालेज, विश्वविद्यालय, स्कूल, अस्पताल व मेडिकल कालेजों की संख्या में प्रसार हुआ है। कानूनी दृष्टि से इसी तरह विस्तार की जरूरत को देखते हुए वर्तमान सरकार ने कई निचली अदालतें तथा पांच अतिरिक्त सत्र न्यायालय खोले हैं, लेकिन इन्हें मुकम्मल करने के लिए अब धर्मशाला में हाई कोर्ट बेंच खोलने के लिए फैसला लेना होगा।
हाई कोर्ट बेंच की स्थापना से प्रदेश के चंबा, कांगड़ा, ऊना, हमीरपुर और मंडी तक के नागरिकों को सुविधा मिलेगी और इससे न्याय की उच्च सीढ़ी तक पहुंचने का अवसर भरमौर, पांगी, छोटा व बड़ा भंगाल जैसे ट्राइबल व दुरूह क्षेत्रों को मिलेगा। हैरानी यह है कि पचास सालों से इस मांग पर गंभीरता से विचार नहीं हुआ, जबकि इसी तरह की मांग पर कई अन्य राज्यों ने अपनी भौगोलिक जरूरत के मुताबिक हाई कोर्ट की खंडपीठ खोल दीं। मद्रास हाई कोर्ट चेन्नई और मुदरै से न्याय की प्रक्रिया को संबोधित करती है, तो राजस्थान हाई कोर्ट जयपुर व जोधपुर से अपने कार्य का निपटारा कर रही है। बेंगलुरू से चलती कर्नाटक हाई कोर्ट की धारवाड़ व गुलबर्गा में बेंच स्थापित हैं, तो मुंबई से चलती बाम्बे हाई कोर्ट की पणजी, औरंगाबाद और नागपुर में खंडपीठ स्थापित हैं। राष्ट्रीय स्तर पर भी न्याय प्रणाली के विकेंद्रीकरण पर जोर डालते हुए संघीय ढांचे को पुख्ता किया जा रहा है। चौदहवें लॉ कमीशन ने इस संदर्भ में कई सिफारिशें की हैं और जिसके अर्थों में राज्य स्तर पर कई ट्रिब्यूनल स्थापित हुए हैं। शिमला स्थित हाई कोर्ट भी अपने कार्य बोझ के कारण ऐसी राह चुन सकती है, जिसके तहत क्षेत्रीय मामलों का बंटवारा तथा कुछ श्रेणीबद्ध काम धर्मशाला में बेंच की स्थापना से आसान हो जाएंगे।
खास तौर पर जब कर्मचारी ट्रिब्यूनल जैसे कार्यों का निपटारा भी हाई कोर्ट के सुपुर्द हो, तो फाइलें किसी निचले स्तर तक सरकनी चाहिएं। निचली अदालतों से ऊपर की तरफ प्रस्थान करती शक्तियों के कारण कानून की सबसे बड़ी राहत शिमला स्थित हाई कोर्ट ही प्रदान करती है, जबकि आम जनता को न्याय देने के लिए इस प्रक्रिया को भी उलट दिशा में करते हुए, अतिरिक्त सत्र न्यायालयों की तर्ज पर हाई कोर्ट बेंच की सख्त जरूरत है। पूरे राज्य की न्याय प्रणाली को मुकम्मल करने के लिए तथा अधिकतम लोगों को उच्चतम अदालत तक पहुंचने के काबिल बनाने के लिए भी यह कदम आवश्यक है। जस्टिस डिलीवरी सिस्टम को पुख्ता करते हुए वर्तमान जयराम सरकार ने निचली अदालतों का एक सक्षम खाका बनाया है और इसी दृष्टि से धर्मशाला में हाई कोर्ट बेंच की स्थापना से आधे से अधिक हिमाचली जनता को न्याय का मूल अधिकार प्राप्त होगा। शांता कुमार की तरह चंबा, कांगड़ा, ऊना व हमीरपुर के जनप्रतिनिधियों को भी इस मांग को परिणाम तक पहुंचाना होगा। जयराम सरकार के लिए भी चुनाव पूर्व ऐसे फैसले से जनता का समर्थन हासिल होगा तथा आने वाले वक्त में यह मील पत्थर साबित होगा।
By: divyahimachal
Rani Sahu
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