सम्पादकीय

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Subhi
9 Dec 2021 2:01 AM GMT
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केंद्र सरकार की ओर से भेजे गए लिखित प्रस्तावों के कुछ बिंदुओं पर बनी अनिश्चचितता दूर किए जाने के बाद अब यह तय हो गया है कि किसानों संगठन आंदोलन वापस ले लेंगे।

केंद्र सरकार की ओर से भेजे गए लिखित प्रस्तावों के कुछ बिंदुओं पर बनी अनिश्चचितता दूर किए जाने के बाद अब यह तय हो गया है कि किसानों संगठन आंदोलन वापस ले लेंगे। गुरुवार को इसका औपचारिक एलान होने के बाद पिछले एक साल से सड़कों पर बैठे किसान अपने गांव-घर को लौट जाएंगे। निश्चित रूप से यह हर किसी के लिए राहत की बात होगी। अपने खेत और घर-परिवार से दूर रहना इन किसानों के लिए आसान नहीं था। राजधानी के लोगों के लिए भी खास सड़कों का बाधित रहना कई तरह की असुविधाएं पैदा कर रहा था।

सरकार के लिए भी किसानों के आंदोलन के चलते असुविधाजनक हालात बने हुए थे। आंदोलन वापसी की यह स्थिति थोड़ी और पहले बन सकती थी। देखा जाए तो प्रधानमंत्री द्वारा तीन कृषि कानूनों की वापसी का एलान ही निर्णायक बिंदु था। उसके बाद यह स्पष्ट हो गया था कि अब बाकी बातें तय कर ली जाएंगी और आंदोलन वापस हो जाएगा। इन बातों के तय होने में हुई देर इस बात का सबूत है कि सरकार और किसान संगठनों के बीच अविश्वास काफी बढ़ा हुआ था। सरकार कह रही थी कि किसानों के खिलाफ दर्ज किए गए मामले वापस ले लिए जाएंगे, पर किसान संगठनों को उस पर यकीन नहीं हो रहा था।
किसी भी लोकतंत्र में यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण कही जाएगी। इसका कारण चाहे जो भी हो, एक लोकतांत्रिक देश में जनता के वोटों से चुनी सरकार और जनता के किसी समूह के बीच इस तरह का अविश्वास नहीं होना चाहिए। ऐसे अविश्वास की जड़ में संवादहीनता होती है। इस लिहाज से देखा जाए तो किसान आंदोलन की एक महत्वपूर्ण सकारात्मक भूमिका बनती है। एक साल तक चले इस आंदोलन ने उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से के किसानों को उनके नेताओं से जोड़ा है। अब यह नेतृत्व सरकार के साथ सतत संवाद बनाए रखते हुए सरकार और किसानों के बीच पुल का काम कर सकता है।




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