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पहले हुए सौदों पर टैक्स (रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स) कानून में संशोधन के लिए सरकार विधेयक लेकर आई है, जिससे ब्रिटेन के वोडाफोन ग्रुप और केयर्न एनर्जी पीएलसी सहित 17 कंपनियों के साथ कानूनी मुकदमे खत्म हो जाएंगे। यह कानून 28 मई 2012 को यूपीए सरकार ने लागू किया था। इसमें कहा गया था कि सरकार उन मामलों में 50 साल पुराने सौदों में हुए कैपिटल गेन पर टैक्स की मांग कर सकती है, जिनमें मालिकाना हक भले ही विदेश में हुई डील से बदला हो, लेकिन उससे संबंधित संपत्तियां भारत में हों।
रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स को लेकर देश में दो सबसे चर्चित मामले वोडाफोन ग्रुप और केयर्न पीएलसी से जुड़े रहे हैं, लेकिन इसकी शुरुआत वोडाफोन मामले से हुई थी। 2007 में वोडाफोन ग्रुप ने केमन आइलैंड की एक इन्वेस्टमेंट कंपनी को खरीदा, जिसके पास हॉन्गकॉन्ग के उद्योगपति ली का शिंग के भारतीय टेलिकॉम बिजनेस यानी हचिसन एस्सार का मालिकाना हक था। भारत के टैक्स डिपार्टमेंट ने इस सौदे पर ब्रिटिश कंपनी से 200 करोड़ का टैक्स मांगा। वोडाफोन ने आखिरकार सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती दी और केस जीत गई।
इसके बाद तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की पहल पर रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स का कानून बना और वोडाफोन ग्रुप को फिर से टैक्स चुकाने का नोटिस दिया गया। केयर्न एनर्जी पीएलसी की भारत में ऑयल फील्ड में हिस्सेदारी कई इकाइयों में बंटी थी। कंपनी ने 2006 में इनका सबका केयर्न इंडिया लिमिटेड के साथ मर्जर यानी विलय किया। यह केयर्न इंडिया को शेयर बाजार में लिस्ट कराने की तैयारी थी। टैक्स डिपार्टमेंट ने दावा किया कि इस मर्जर से केयर्न एनर्जी पीएलसी को लाभ हुआ है और उसने 2015 में कंपनी से रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स की मांग की।
इनमें से एक मामला यूपीए सरकार और दूसरा एनडीए सरकार का है। केयर्न से टैक्स वसूली के लिए सरकार ने उसके शेयर जब्त करके बेच दिए और डिविडेंड से मिली रकम भी रख ली। केयर्न और वोडाफोन दोनों ही मामलों को अंतरराष्ट्रीय अदालतों में ले गईं, जहां फैसला उनके हक में आया। फिर भी भारत सरकार अड़ी रही और उसने अंतरराष्ट्रीय अदालतों के फैसलों के खिलाफ अपील की राह पकड़ी।
केयर्न ने तो इस फैसले के मुताबिक वसूली के लिए भारत सरकार की न्यूयॉर्क से लेकर पैरिस तक की संपत्तियों को जब्त करने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। इससे सरकार की फजीहत हो रही थी। ऐसे में इस विवादित कानून को खत्म करने का फैसला सही है। यूं भी एनडीए सरकार जब सत्ता में आई थी तो उसने यूपीए दौर के 'टैक्स टेररिज्म' को खत्म करने का वादा किया था। लेकिन वैश्विक निवेशकों के बीच छवि बेहतर करने के लिए उसे और भी कदम उठाने होंगे। सरकार का अभी वॉलमार्ट की कंपनी फ्लिपकार्ट के साथ ड्राफ्ट कंस्यूमर प्रोटेक्शन रेगुलेशन को लेकर विवाद चल रहा है। ऐसे ही कई विवाद अन्य विदेशी कंपनियों के साथ चल रहे हैं। केंद्र को इन झगड़ों को भी खत्म करने की पहल करनी होगी।