सम्पादकीय

अब कर्नाटक में बदलाव

Triveni
29 July 2021 3:39 AM GMT
अब कर्नाटक में बदलाव
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कर्नाटक में येदियुरप्पा के एक बार फिर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने और बासवराज बोम्मई के उनकी जगह लेने से राज्य में पिछले कुछ समय से जारी अनिश्चितता तो खत्म हो गई,

कर्नाटक में येदियुरप्पा के एक बार फिर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने और बासवराज बोम्मई के उनकी जगह लेने से राज्य में पिछले कुछ समय से जारी अनिश्चितता तो खत्म हो गई, लेकिन उतने ही भरोसे के साथ यह नहीं कहा जा सकता कि बीजेपी की आगे की राह की दुश्वारियां भी खत्म हो गई हैं। वैसे भी छह महीने के अंदर यह तीसरा मौका है, जब बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व के इशारे पर किसी प्रदेश में मुख्यमंत्री बदला गया है। इनमें से दो मुख्यमंत्री उत्तराखंड में बदले गए। वैसे, कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन का तर्क समझा जा सकता है। येदियुरप्पा 78 साल के हो चुके हैं। क्या पार्टी 2023 में 80 साल के नेता की अगुआई में उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा बताते हुए चुनाव में उतरती? अगर ऐसा नहीं करना था तो मुख्यमंत्री बदलने के फैसले में और देर करने की कोई वजह नहीं थी। लेकिन कोई यह बात उस नेता को कैसे समझाए, जो चार बार मुख्यमंत्री बनने के बाद भी कभी कार्यकाल पूरा नहीं कर सका। पद से हटाए जाने की टीस येदियुरप्पा के मन में गहरी है और इसकी झलक उन्होंने इस्तीफे की घोषणा के समय दिए गए अपने वक्तव्य में भी दिखला दी।

इसमें भी कोई शक नहीं है कि कर्नाटक में पार्टी को सत्ता की दहलीज तक पहुंचाने में उनका सबसे बड़ा हाथ है। अपने इस हाथ की ताकत वह न केवल खुद मानते हैं बल्कि इसे झुठलाने की कोशिश करने पर 2013 में इन्हीं हाथों से बीजेपी को सत्ता से बेदखल कर इसे रिवर्स रूप में भी दिखा चुके हैं। तब अपनी अलग पार्टी बना कर उन्होंने बीजेपी का सत्ता तक पहुंचना नामुमकिन बना दिया था। हालांकि 2018 में उनके रहते हुए भी पार्टी सत्ता तक नहीं पहुंच सकी, पर 'ऑपरेशन कमल' के जरिए सत्तारूढ़ विधायकों से इस्तीफे दिलवाकर उन्हें पार्टी में लाने और उपचुनावों में जिताकर पार्टी विधायकों की संख्या बढ़ा लेने का कमाल उन्होंने कर दिखाया। इस तरह बीजेपी बहुमत में आ गई और राज्य में उसकी सरकार बन गई। जाहिर है, इसी वजह से मुख्यमंत्री पद पर उन्होंने अपना हक माना और वह उन्हें मिला। लाख टके का सवाल यह है कि बदले हालात में उनका क्या रुख रहने वाला है? चूंकि बासवराज बोम्मई लिंगायत समुदाय से ही आते हैं और उनके करीबी भी माने जाते हैं तो संकेत यही हैं कि वह येदियुरप्पा को नाराज होने का मौका नहीं देंगे। फिर येदियुरप्पा के बेटे के राजनीतिक भविष्य का भी सवाल है। कर्नाटक में नई राजनीतिक व्यवस्था अभी तो ठीक दिख रही है, लेकिन क्या इससे बीजेपी को अगले चुनावों में समीकरण साधने में भी मदद मिलेगी? इस सवाल का जवाब तो भविष्य के गर्भ में है।


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