सम्पादकीय

अब महिला खिलाड़ियों को पुरुषों के समान फीस रिटेनरशिप पर भी गौर करे बीसीसीआई

Subhi
29 Oct 2022 4:41 AM GMT
अब महिला खिलाड़ियों को पुरुषों के समान फीस रिटेनरशिप पर भी गौर करे बीसीसीआई
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महिला क्रिकेट खिलाड़ियों को पुरुष खिलाड़ियों के बराबर मैच फीस देने का बीसीसीआई का फैसला न केवल महिला खिलाड़ियों का मनोबल ऊंचा करने वाला है बल्कि यह क्रिकेट में एक नए दौर की शुरुआत साबित हो सकता है।

नवभारत टाइम्स: महिला क्रिकेट खिलाड़ियों को पुरुष खिलाड़ियों के बराबर मैच फीस देने का बीसीसीआई का फैसला न केवल महिला खिलाड़ियों का मनोबल ऊंचा करने वाला है बल्कि यह क्रिकेट में एक नए दौर की शुरुआत साबित हो सकता है। ध्यान रहे बीसीसीआई ऐसा फैसला करने वाला दुनिया का दूसरा ही क्रिकेट बोर्ड है। न्यूजीलैंड क्रिकेट को छोड़ दें तो दुनिया भर में अभी भी महिला क्रिकेटरों को पुरुष क्रिकेटरों के मुकाबले कम फीस मिलती है। हालांकि समान काम के लिए कम पारिश्रमिक की व्यवस्था खिलाड़ियों के मनोबल और आत्मविश्वास के साथ-साथ उनकी गरिमा को भी चोट पहुंचाती है।

आज के दौर में जब रंग, नस्ल, जाति और धर्म पर आधारित तमाम भेदभाव दूर करने की बात हो रही है और एक-एक कर विभिन्न देश-समाज इनसे पीछा छुड़ाते चल रहे हैं, तब क्रिकेट या किसी भी पेशे में लिंग के आधार पर भेदभाव की व्यवस्था कायम रखने की कोई वजह नहीं है। उचित ही बीसीसीआई के इस फैसले का देश-विदेश में स्वागत किया जा रहा है। अगर देश में महिला क्रिकेट के नजरिए से देखा जाए तो 2006 में बीसीसीआई के अंतर्गत आने के बाद से यह बेहतरी की ओर बढ़ता हुआ दिखा है। हालांकि यह यात्रा भी उतार-चढ़ाव और जटिलताओं से भरी रही है, लेकिन उससे पहले के हालात के मुकाबले देखें तो इसमें संदेह नहीं कि बीसीसीआई ने देश में महिला क्रिकेट को पैरों के नीचे ठोस जमीन मुहैया कराई है। मगर सपनों की उड़ान आसान नहीं होती। उसके लिए हौसले पहली शर्त होते हैं। ताजा फैसला लैंगिक भेदभाव से मुक्ति तो देता ही है, बुनियादी सुविधाओं की भी काफी हद तक गारंटी देता है। इस फैसले की बदौलत देश में महिला खिलाड़ियों को पहले के मुकाबले तीन गुने से लेकर छह गुने तक ज्यादा मेहनताना मिलेगा।

महिला क्रिकेट आईपीएल की शुरुआत को भी इसी कड़ी में एक और पॉजिटिव घटनाक्रम के रूप में देखा जाना चाहिए। हालांकि यह बात भी सही है कि इन कदमों से महिला और पुरुष क्रिकेटरों की आमदनी का अंतर कम नहीं होने वाला। हर साल होने वाले मैचों की संख्या में ही इतना बड़ा अंतर है कि समान फीस होने के बावजूद महिला खिलाड़ी पुरुषों के बराबर कमाई की सोच ही नहीं सकतीं। उसके अलावा सालाना रिटेनरशिप में भी अच्छा खासा अंतर है। अगर मॉडलिंग के जरिए होने वाली कमाई की बात करें तो भी पुरुष क्रिकेटर जितने बड़े ब्रैंड बन चुके हैं, महिला क्रिकेटर अभी मुकाबले की सोच भी नहीं सकतीं। लेकिन मुद्दा सबको कमाई के एक स्तर पर लाना नहीं, बीसीसीआई के नजरिए में निहित लैंगिक पूर्वाग्रह को दूर करना है। ताजा फैसले से उसकी शुरुआत हो गई है। नजरिया पूर्वाग्रहरहित बना रहा तो भविष्य के फैसलों पर उसका असर ज्यादा से ज्यादा स्पष्ट होता जाएगा। अब जरूरत इस बात की है कि बीसीसीआई ने जो पहल की है, उससे दुनिया के अन्य क्रिकेट बोर्ड और अन्य खेलों का प्रबंधन देख रहे संस्थान भी प्रेरणा लें।


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