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Written by जनसत्ता: श्रीलंका में आर्थिक बदहाली को लेकर उपजे जनाक्रोश की आग अभी ठंडी भी नहीं पड़ी कि अब बांग्लादेश से भी ऐसी ही चिंताजनक खबरें आ रही हैं। शेख हसीना सरकार ने पेट्रोल और डीजल के दामों में पचास फीसद की भारी बढ़ोतरी कर दी है। इसे लेकर लोगों में भारी गुस्सा है। राजधानी ढाका सहित दूसरे शहरों में लोग सड़कों पर उतर आए हैं। यानी अब बांग्लादेश में भी कमोबेश वैसे ही हालात बनते दिख रहे हैं जैसे श्रीलंका में देखने को मिले। वैसे बांग्लादेश को लेकर हैरानी इसलिए नहीं है क्योंकि पिछले कुछ सालों से इस मुल्क की माली हालत भी कोई अच्छी नहीं चल रही। हालांकि सरकार इसे अब तक छिपाए रही।
इसीलिए श्रीलंका संकट सामने आने के बाद से बांग्लादेश और पाकिस्तान की आर्थिक बदहाली को लेकर भी जो आशंकाएं जाहिर की जा रही थीं, वे अब सच होती दिख रही हैं। बांग्लादेश में भी महंगाई इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि लोगों का जीना मुश्किल हो गया है। रोजमर्रा की जरूरी चीजें भी लोग नहीं खरीद पा रहे हैं। ऐसे में पेट्रोल और डीजल के दामों में अचानक भारी वृद्धि कर सरकार ने और बड़ा संकट खड़ा कर दिया। जाहिर है, लोगों का गुस्सा फूटना ही था।
बांग्लादेश के ताजा घटनाक्रम से लगता है कि यहां भी सरकार आर्थिक संकट के खतरे को नजरअंदाज करती रही। शेख हसीना सरकार भले यह कहती रहे कि मौजूदा संकट की जड़ें अंतरराष्ट्रीय बाजार में र्इंधन सहित दूसरी चीजों के बढ़ते दामों में हैं, लेकिन हकीकत में देखा जाए तो इस संकट के कारण सरकार की आर्थिक नीतियों में भी मौजूद हैं। यह कोई छिपी बात नहीं है कि बांग्लादेश ने बीस से ज्यादा परियोजनाओं के लिए चीन सहित कुछ देशों से भारी कर्ज ले रखा है। देश पर तेरह हजार करोड़ डालर से ज्यादा कर्ज पहले से है। इसमें लगातार इजाफा हो रहा है। आयात भी तेजी से बढ़ रहा है।
दूसरी ओर विदेशी मुद्रा भंडार गिरता जा रहा है। बांग्लादेशी मुद्रा टका में पिछले तीन महीने में बीस फीसद से ज्यादा गिरावट ने खतरे की घंटी बजा दी है। फिर, साढ़े सोलह करोड़ की आबादी वाले देश में सिर्फ चौहत्तर लाख ही करदाता हैं और पिछले साल इनमें से भी मात्र तेईस लाख लोगों ने कर जमा करवाया। सरकार के राजस्व प्राप्ति के स्रोत सूख गए हैं। बिजली उत्पादन नहीं होने से तेरह-तेरह घंटे बिजली कटौती हो रही है। इससे उद्योग-धंधे चौपट हो गए हैं। ये सारे संकेत इस बात का प्रमाण हैं कि बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था भी रसातल में जा रही है।
गौरतलब है कि कोरोना महामारी के दौर में बांग्लादेश उन कुछ गिने-चुने मुल्कों में से था जिनकी अर्थव्यवस्था ज्यादा प्रभावित नहीं होने की बातें कही जा रही थीं। वैसे भी पिछले कुछ सालों में यह दावा किया जाता रहा कि बांग्लादेश एशिया की उभरती आर्थिक ताकत बन रहा है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि जो मुल्क आर्थिक तरक्की के रास्ते पर चल निकलने का दावा करता दिख रहा था, वहां अचानक ऐसा क्या होने लगा कि अर्थव्यवस्था की चूलें हिलने लगीं? यह सही है कि रूस-यूक्रेन संकट की वजह से ज्यादातर देशों के सामने र्इंधन संकट गहराया है और अर्थव्यवस्था बिगड़ी है, लेकिन अंदरूनी कारणों की भी अनदेखी नहीं की जा सकती। बांग्लादेश का संकट मामूली नहीं है। अगर समय रहते सरकार ने जरूरी व्यावहारिक कदम नहीं उठाए और विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी संस्थाएं मदद के लिए आगे नहीं आर्इं तो हालात भयावह होने में देर नहीं लगेगी।